नवरात्रि में नवदुर्गा की पूजा करने के कारण अलग-अलग हैं. हिंदू धर्म के लोगों की यह मान्यता है, कि देवी दुर्गा ने जब महिशासुर नामक राक्षस का वध किया था. तब से मां दुर्गा को बुराई पर अच्छाई के जीत का प्रतीक माना जाने लगा और नवरात्र के रूप में मनाया जाने लगा. जबकि कुछ लोगों का यह मानना है, कि वर्ष मे यही वह 9 दिन होते है, जब मां दुर्गा अपने मायके आती है, इसलिए प्रत्येक वर्ष 9 दिन को उत्साह से मनाया जाता है.
नवरात्रि के इन 9 दिनों में देवी के 9 रूपो की पूजा भारत के कई राज्यों में बड़े ही हर्ष उल्लास और धूमधाम से की जाती है.
वर्ष 2022 में नवरात्रि कब हैं ?
नवरात्री में नौ दिनों में मां दुर्गा, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है. इस वर्ष नवरात्री 26 सितंबर से 5 अक्टूबर तक है.
मां दुर्गा के स्थापना का शुभ मुहूर्त
06:11 am से 07:51 pm तक
माता के नौ रूपों के नाम
1. शैलपुत्री
मां दुर्गा के पहले स्वरूप को ‘शैलपुत्री’ के नाम से जाना जाता है, यह नवदुर्गा में से पहली दुर्गा मानी जाती है. माता ने अपने इस रूप मे शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था, नवरात्र आरंभ होते ही प्रथम दिन इनकी पूजा उपासना श्रद्धा पूर्वक की जाती है. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए इनको वृषारूढ़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है. शैलपुत्री के दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है. यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं.
मन्त्र:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
2. ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रहमचारिणी की पूजा आराधना की जाती है. माता ने अपने इस रूप में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. ब्रह्मचारिणी देवी ने अपने इस रूप में एक हाथ मे कमंडल और दूसरे हाथ मे जप की माला धारण किए हुई है. दूसरे दिन माता को शक्कर का भोग लगाया जाता है, तथा इस दिन दान करने को भी शुभ माना जाता है. माता ब्रह्मचारिणी के इस रूप का पूजन दीर्घायु प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
मन्त्र:
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला-कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
3. चंद्रघंटा
नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है, ऐसा माना जाता है. कि यह देवी का उग्र रूप है, परंतु फिर भी देवी के इस रूप से भक्तो को सभी कष्टो से मुक्ति दिलाती है . माता के इस रूप में 10 हाथ है, तथा सभी हाथो मे माँ ने शस्त्र धारण किए हुये है. माता के इस रूप को देखकर ऐसा लगता है, कि माँ यूध्द के लिए तैयार है.
मन्त्र:
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
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4. कूष्मांडा
नवरात्र के चौथे दिन देवी कृषमांडा की पूजा आराधना की जाती है. और पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि माता के इस रूप से ही ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी. माता के इस रूप में 8 हाथ है, और उन्होने अपने इन 8 हाथो मे कमंडल, धनुष बांड, कमल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा धारण किए हुई हैं. माता के आठवे हाथ मे इच्छा अनुसार वर देने वाली जप की माला विद्यमान है, अर्थात यह माला माता के भक्तो इच्छा अनुसार वरदान प्रदान करती है.
मन्त्र:
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥
5. स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंद की पूजा आराधना की जाती है. माता के इस रूप की पूजा करने से भक्तों के सारे पाप से मुक्ति मिलती है, तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के इस दिन माता स्कंदमता को अलसी नामक औषधि अर्पण करने से मौसम मे होने वाली बीमारी नहीं होती और इसके उपयोग से इंसान स्वस्थ रहते हैं. माता अपने इस रूप में कमल पर विराजमान है. और उनकी चार भुजाएं हैं, वह अपने दो हाथों में कमल लिए हुई है, एक हाथ मे माला लिए हुये है तथा एक हाथ से भक्तो को आशीर्वाद दे रही है.
मन्त्र:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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6. कात्यायिनी
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायिनी की पूजा आराधना की जाती है, माता के इस रूप को धारण करने का कारण महिषासुर द्वारा किया जाने वाला अत्याचार था, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया. इस देवी की सर्वप्रथम पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी. इसलिए इस देवी को कात्यायिनी देवी के नाम से जाना जाता है.
मन्त्र:
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥
7. कालरात्रि
नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है. माता के इस नाम का अर्थ जिसमें हर तरह का संकट खत्म कर देने की शक्ति होती है, उसे कालरात्रि कहा जाता है. माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, यह सदैव शुभ फल ही देती है और राक्षसों का नाश करती है. माता के इस रूप की पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है. और सारी बाधाएं नष्ट हो जाती हैं.
मन्त्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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8. महागौरी
नवरात्र के आठवें दिन में माता गौरी की पूजा आराधना की जाती है. यह माता का बहुत ही सौम्य, सरल तथा सुंदर रूप होता है. माता अपने इस रूप मे वृषभ पर विराजमान है. उन्होने हाथो मे त्रिशूल और डमरू लिए हुई है, तथा अन्य 2 हाथो से वह अपने भक्तो को वरदान और अभयदान दे रही हैं. मान्यता यह है की माता के इस रूप मे भगवान शंकर ने माता का गंगाजल से अभिषेक किया था, इसलिए माता को यह गौर वर्ण प्राप्त हुआ.
मन्त्र:
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव-प्रमोद-दा॥
9. सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नौवे दिन यानी अंतिम दिन देवी सिध्दीदात्री की पूजा आराधना की जाती है. इन्ही के पूजन से नवदुर्गा की पूजा सम्पन्न होती है, और भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. माता के इस रूप मे माता कमल पर विराजमान है. पर हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि माता का वाहन सिह है. इस रूप मे माता के 4 हाथ है. इन 4 हाथो मे माता ने शंख, चक्र, गदा तथा कमल धारण किया हुआ है.
मन्त्र:
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।