आज हम आपको Somvati Amavasya – सोमवती अमावस्या कब है? के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.
वह अमावस्या जो सोमवार के दिन पड़ती है, उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं, सोमवती अमावस्या वर्ष में सिर्फ एक से दो बार ही आती है. हिंदू धर्म के अनुसार सोमवती अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है और इसे बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है. सोमवती अमावस्या के दिन स्त्रियां अपने पतियों के दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती है. इस दिन मौन व्रत रहने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है, साथ ही शास्त्रों में इसे अश्वत्थ (पीपल वृक्ष) प्रदक्षिणा व्रत का स्थान भी प्रदान किया गया है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन विवाहित स्त्रियों को पीपल के वृक्ष की पूजा दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से करती है, और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा लगाती है, साथ ही कुछ और अन्य परंपराओं में इसे भंवरी के नाम से भी जाना जाता है धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे नियमानुसार तुलसी के पेड़ पर चढ़ाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों को नहाने से पुण्य की प्राप्ति होती है, ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था, कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से हमेशा मुक्त रहेगा. क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पितरों की आत्माओं को शांति मिलती है, जिस कारण घर में भी सुख और समृद्धि बनी हुई रहती है.
सोमवती अमावस्या पर क्या करें? (Somvati Amavasya par kya kare)
ऐसा माना जाता है कि सोमवती अमावस्या के दिन शनि जयंती का सहयोग होता है. ऐसे में भगवान शिव के साथ शनिदेव की पूजा करने को महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि शनिदेव की पूजा करने से शनि दोष से पीड़ित लोगों को राहत मिलती है, इस दिन शनिदेव की पूजा करना विशेष रुप से अधिक फलदायी माना जाता है.
शनि दोष से मुक्ति के लिए पीपल के पेड़ के नीचे सरसों का तेल का दीपक जलाएं और ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः और ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें.
सोमवती अमावस्या के दिन अन्य और शनिदेव से संबंधित चीजों का दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, साथ ही आप अपनी श्रद्धा अनुसार चावल, उड़द दाल, काले वस्त्र, काले चने, नमक, काली तिल का दान कर सकते हैं.
जिनके माता-पिता की मृत्यु हो गई हो और वह परलोक सिद्धार गए हो, उन्हें सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करते हुए जल और तिल मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर तिल और जल अर्पित करना चाहिए, इससे उनके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
हम आपको बता दें कि सोमवती अमावस्या उन व्यक्तियों के लिए विशेष होती है जिनकी कुंडली में सर्प दोष पाया जाता है जिनकी कुंडली में सर्प दोष होता है उन्हें अवश्य सोमवती अमावस्या तिथि के दिन पाठ करना चाहिए, इससे उनका सर्प दोष टल जाता है, साथ ही जिनकी कुंडली में चंद्र कमजोर है, तो वह सोमवती अमावस्या के दिन गाय को दही और चावल खिलाएं. इससे कुंडली में चंद्र दोष कम होता है.
सोमवती अमावस्या 2022 शुभ मुहूर्त- (Somvati Amavasya 2022 shubh muhurat)
पहली – 31 जनवरी, दूसरी – 30 मई
ब्रह्म मुहूर्त – 04:03 AM से 04:43 AM
अभिजित मुहूर्त – 11:51 AM से 12:46 PM
विजय मुहूर्त – 02:37 PM से 03:32 PM
गोधूलि मुहूर्त – 07:00 PM से 07:24 PM
सर्वार्थ सिद्धि योग – 07:12 AM से 05:24 AM
सोमवती अमावस्या 2023 तारीखें (Somvati Amavasya 2023 shubh muhurat)
क्रमांक | तारीख | दिन | माह |
1. | 20 फरवरी 2023 | सोमवार | फाल्गुन अमावस्या |
2. | 17 जुलाई 2023 | सोमवार | श्रावण अमावस्या |
3. | 13 नवम्बर 2023 | सोमवार | कार्तिक अमावस्या |
सोमवती अमावस्या व्रत कथा (somvati amavasya vrat katha)
सोमवती अमावस्या व्रत कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार था, उस ब्राह्मण परिवार में पति-पत्नी एवं उसकी एक बेटी रहती थी. उनकी पुत्री समय के साथ – साथ धीरे – धीरे बड़ी होने लगी. उस पुत्री में बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित सगुणों का विकास हो रहा था. वह कन्या सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी, परंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था.
एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज आए, साधु महाराज उस कन्या के हाथों का बना भोजन खाकर और उसके स्वभाव से प्रसन्न होकर, कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए, साधु ने कहा कि इस कन्या के हाथ में विवाह योग्य रेखा नहीं है.
तब ब्राह्मण ने साधु से उसका उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें की उसके हाथ में शादी की रेखा बन जाए, साधु महाराज ने कुछ देर सोचने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि में ध्यान करके बताया, कि कुछ ही दूरी पर एक गांव में सोना नाम की एक धोबिन महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार – विचार एवं संस्कार संपन्न तथा पति परायण है.
अगर सुकन्या उस धोबिन की सेवा करें और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर इस सुकन्या के मांग में लगा दे, तो इस कन्या का वैधव्य योग नष्ट हो सकता है. साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं बाहर आती – जाती नहीं है.
साधु महाराज की यह बात सुनकर ब्राह्मण ने अपनी बेटी को धोबिन की सेवा करने के लिए कहा. अगले दिन से ही कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई एवं अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आने लगी.
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है, कि तुम तो सुबह ही उठकर अपने सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता.
बहू ने मां जी से कहा कि मैं तो सोच रही थी. कि आप सुबह ही उठकर अपने सारे काम कर लेती होंगी, और मैं तो देर से उठती हूँ. यह सब जानकार दोनों सास-बहू घर की निगरानी करने लगी कि कौन है, जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है.
तब दोनों सास बहू देखने लगी कि कौन आता है और इतना सुबह सारा काम करके चला जाता है कई दिनों बाद धोबीन ने देखा कि एक कन्या आती है, और सारे काम करके चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, और पूछने लगी कि आप कौन है. और इस तरह छुपकर मेरे घर का सारा काम क्यों कर जाती हैं.
तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण स्त्री थी, अतः उसमें तेज था. वह तैयार हो गई, सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, सोना धोबिन का पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी.
उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के मृत शरीर में वापस जान आ गई, धोबिन का पति फिर से जीवित हो उठा.
आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Somvati Amavasya – सोमवती अमावस्या कब है? की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.
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