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Kalighat Mandir – कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर)

आज हम आपको Kalighat Mandir – कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.

हम आपको बता दें कि, कालीघाट मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता जिले के कालीघाट में स्थित है, यह माता काली का प्रसिद्ध मंदिर है, साथ ही हम आपको बता दें, कि कोलकाता एक ऐसा शहर है जहां भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल है. साथ ही हम आपको बता दें कि हिंदू पुराणों के अनुसार कालीघाट के माता काली के मंदिर को 18 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है, हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि माता सती के दाएं पांव की 4 उंगलियां कोलकाता राज्य के कालीघाट स्थान पर गिरी थी जिसके कारण यहां माता काली के मंदिर का निर्माण हुआ. यह भी माना जाता है कि शक्ति ‘कालिका’ व भैरव ‘नकुलेश’ हैं. साथ ही हम आपको बता दें कि इस शक्तिपीठ में माता काली की एक भव्य प्रतिमा विराजमान है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है. साथ ही इस मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं. पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) में देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है (kalighat mandir me devi kali ke prachand roop ki pratima sthapit hai)

हम आपको बता दें कि कालीघाट में माता काली का मंदिर है जिसमें माता काली के प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित की गई है. इस प्रतिमा में माता काली अपने प्रचंड रूप को धारण किए हुए भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं, साथ ही उनके गले में नर मुंडो की एक बहुत बड़ी माला है. और उनके हाथ में एक फरसा और कुछ नरमुंड है. और इतना ही नहीं उनके कमर में भी कुछ नरमुंड बांधे हुए हैं. साथ ही उनकी खून से सनी हुई जिह्वा बाहर निकली हुई है. और उनके जीभ से रक्‍त की कुछ बूंदें भी टपक रही हैं. 

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) की पौराणिक कथाएं kalighat mandir ki purani katha

हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि अंधकासुर को ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसका वध कोई भी नहीं कर सकता था. साथ ही उसका जितना ही सिर काट कर जमीन पर गिरता था. उसी जगह पर दूसरा अंधका का निर्माण हो जाता था, इसी को देखते हुए माता पार्वती ने माता काली का रूप धारण किया, और उन्‍होंने नरसंहार शुरू कर दिया. उनके मार्ग में जो भी आता‍ वह मारा जाता. उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके रास्ते पर लेट गए. देवी ने गुस्‍से में उनकी छाती पर भी पांव रख दिया. इसी दौरान उन्‍होंने शिव को पहचान लिया. इसके बाद ही उनका गुस्‍सा शांत हुआ, और उन्‍होंने नरसंहार बंद कर दिया. और माता काली की इसी प्रतिमा को कालीघाट के मंदिर में भव्य रूप से विराजमान किया गया है.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) का निर्माण किसने और कब कराया था? (kalighat mandir ka nirman kisne aur kab karvaya tha)

हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कालीघाट मंदिर का निर्माण सन 1809 के करीब कराया गया था. और कालीघाट मंदिर में माता काली की प्रतिमा की स्थापना कामदेव ब्रह्मचारी नाम के एक ब्राह्मण ने किया था. फिर 1836 को धार्मिक आस्था रखने वाले जमीदार काशीनाथ राय ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. हिंदू ग्रंथों के अनुसार यह भी माना जाता है, कि यह मंदिर अघोर साधना एवं तांत्रिक साधना के लिए समस्त विश्व में प्रख्यात था, कालीघाट के पास स्थित केवड़तला श्मशान घाट को पुराने समय में शव साधना का मुख्य बिंदु माना जाता था.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) का इतिहास (kalighat mandir ka itihaas)

हम आपको बता दें कि कालीघाट मंदिर निर्माण एक भव्य मंदिर के रूप में 200 साल पहले कराया गया था, वर्तमान संरचना 1809 में सबरन रॉय चौधरी के मार्गदर्शन में पूरी हुई. काली घाटी मंदिर के बारे में लालमोहन बिद्यानिधि के ‘संम्बन्द् निनोय’ में भी मिलता है. चन्द्रगुप्त द्वितीय के केवल दो प्रकार के सिक्के, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य में वंगा को समेकित किया, बंगाल से जाने जाते हैं. उनकी आर्चर तरह के सिक्के, जो कालीघाट में कुमारगुप्त के पाए जाने के बाद मुख्य प्रकार के सिक्के में बदल गए, यह जगह के अवशेष का प्रमाण है. 

इतिहास के अनुसार मूल मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी थी, लेकिन 16वीं शताब्दी के राजा मानसिंह ने झोपड़ी को हटाकर वहां पर एक छोटी सी मंदिर का निर्माण कराया था. वर्तमान मंदिर बनिशा के सबरन रॉय चौधरी परिवार के संरक्षण में बनाया गया था. यह 1809 में पूरा हुआ,  हालांकि हल्दर परिवार मंदिर की संपत्ति का मूल मालिक होने का दावा करता है. लेकिन यह बनिशा के चौधरी द्वारा विवादित था. 1960 के दशक में सरकार और हलधर परिवार के प्रतिनिधित्व के साथ मंदिर के प्रशासनिक प्रबंधन के लिए एक समिति का गठन किया गया था.

इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने कालीघाट मंदिर को बेहतर बनाने के लिए विचार बनाया, और आज यह मंदिर कोलकाता के पर्यटन स्थलों में आकर्षण का केंद्र है. हालांकि इसके बाद भी कुछ भक्तों ने मंदिर में सुधार के लिए कोर्ट तक भी गए हैं, जिसके बाद कोर्ट ने मंदिर को बेहतर बनाने का आदेश दिया, जिसके बाद मंदिर में बहुत सारे सुधार लाए गए हैं.

अनुश्रुतियों के अनुसार

इस मूर्त्ति के पीछे कुछ अनुश्रुतियाँ भी प्रचलित है. इस अनुश्रुति के अनुसार देवी किसी बात पर गुस्‍सा हो गई थीं. इसके बाद उन्‍होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया. उनके मार्ग में जो भी आता‍ वह मारा जाता. उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्‍ते में लेट गए. देवी ने गुस्‍से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया. इसी समय उन्‍होंने भगवान शिव को पहचान लिया. इसके बाद ही उनका गुस्‍सा शांत हुआ और उन्‍होंने नरसंहार बंद किया. और उनके इसी स्वरूप की प्रतिमा वहां स्थापित की गई है.

कालीघाट मंदिर के बारे में अन्य जानकारी      

हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि सती के दाएं पांव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था. यहाँ की शक्ति ‘कालिका’ व भैरव ‘नकुलेश’ के रूप में हुआ है.

कालीघाट मंदिर कैसे पहुंचे?

कोलकाता देश के चार प्रमुख महानगरों में से एक माना जाता है, ऐसे में यहाँ पहुँचने के लिए परिवहन के साधनों की कोई कमी नहीं होती, कालीघाट मंदिर से कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की दूरी लगभग 25 किलोमीटर (किमी) है.

प्रसिद्ध हावड़ा जंक्शन, कालीघाट मंदिर से मात्र 10 किमी दूर है. कोलकाता पहुँचने के बाद मंदिर पहुँचना अत्यंत ही सरल है, और माना जाता है कि कोलकाता जाकर भी अगर दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर और कालीघाट की यात्रा न की तो यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Kali Ghati Mandir – कालीघाट मंदिर की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.

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हम आपको बता दें कि, कालीघाट मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता जिले के कालीघाट में स्थित है, यह माता काली का प्रसिद्ध मंदिर है, साथ ही हम आपको बता दें, कि कोलकाता एक ऐसा शहर है जहां भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल है. साथ ही हम आपको बता दें कि हिंदू पुराणों के अनुसार कालीघाट के माता काली के मंदिर को 18 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है, हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि माता सती के दाएं पांव की 4 उंगलियां कोलकाता राज्य के कालीघाट स्थान पर गिरी थी जिसके कारण यहां माता काली के मंदिर का निर्माण हुआ. यह भी माना जाता है कि शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' हैं. साथ ही हम आपको बता दें कि इस शक्तिपीठ में माता काली की एक भव्य प्रतिमा विराजमान है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है. साथ ही इस मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं. पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) में देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है (kalighat mandir me devi kali ke prachand roop ki pratima sthapit hai)

हम आपको बता दें कि कालीघाट में माता काली का मंदिर है जिसमें माता काली के प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित की गई है. इस प्रतिमा में माता काली अपने प्रचंड रूप को धारण किए हुए भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं, साथ ही उनके गले में नर मुंडो की एक बहुत बड़ी माला है. और उनके हाथ में एक फरसा और कुछ नरमुंड है. और इतना ही नहीं उनके कमर में भी कुछ नरमुंड बांधे हुए हैं. साथ ही उनकी खून से सनी हुई जिह्वा बाहर निकली हुई है. और उनके जीभ से रक्‍त की कुछ बूंदें भी टपक रही हैं. 

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) की पौराणिक कथाएं kalighat mandir ki purani katha

हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि अंधकासुर को ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसका वध कोई भी नहीं कर सकता था. साथ ही उसका जितना ही सिर काट कर जमीन पर गिरता था. उसी जगह पर दूसरा अंधका का निर्माण हो जाता था, इसी को देखते हुए माता पार्वती ने माता काली का रूप धारण किया, और उन्‍होंने नरसंहार शुरू कर दिया. उनके मार्ग में जो भी आता‍ वह मारा जाता. उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके रास्ते पर लेट गए. देवी ने गुस्‍से में उनकी छाती पर भी पांव रख दिया. इसी दौरान उन्‍होंने शिव को पहचान लिया. इसके बाद ही उनका गुस्‍सा शांत हुआ, और उन्‍होंने नरसंहार बंद कर दिया. और माता काली की इसी प्रतिमा को कालीघाट के मंदिर में भव्य रूप से विराजमान किया गया है.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) का निर्माण किसने और कब कराया था? (kalighat mandir ka nirman kisne aur kab karvaya tha)

हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कालीघाट मंदिर का निर्माण सन 1809 के करीब कराया गया था. और कालीघाट मंदिर में माता काली की प्रतिमा की स्थापना कामदेव ब्रह्मचारी नाम के एक ब्राह्मण ने किया था. फिर 1836 को धार्मिक आस्था रखने वाले जमीदार काशीनाथ राय ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. हिंदू ग्रंथों के अनुसार यह भी माना जाता है, कि यह मंदिर अघोर साधना एवं तांत्रिक साधना के लिए समस्त विश्व में प्रख्यात था, कालीघाट के पास स्थित केवड़तला श्मशान घाट को पुराने समय में शव साधना का मुख्य बिंदु माना जाता था.

कालीघाट मंदिर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर) का इतिहास (kalighat mandir ka itihaas)

हम आपको बता दें कि कालीघाट मंदिर निर्माण एक भव्य मंदिर के रूप में 200 साल पहले कराया गया था, वर्तमान संरचना 1809 में सबरन रॉय चौधरी के मार्गदर्शन में पूरी हुई. काली घाटी मंदिर के बारे में लालमोहन बिद्यानिधि के ‘संम्बन्द् निनोय’ में भी मिलता है. चन्द्रगुप्त द्वितीय के केवल दो प्रकार के सिक्के, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य में वंगा को समेकित किया, बंगाल से जाने जाते हैं. उनकी आर्चर तरह के सिक्के, जो कालीघाट में कुमारगुप्त के पाए जाने के बाद मुख्य प्रकार के सिक्के में बदल गए, यह जगह के अवशेष का प्रमाण है. 

इतिहास के अनुसार मूल मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी थी, लेकिन 16वीं शताब्दी के राजा मानसिंह ने झोपड़ी को हटाकर वहां पर एक छोटी सी मंदिर का निर्माण कराया था. वर्तमान मंदिर बनिशा के सबरन रॉय चौधरी परिवार के संरक्षण में बनाया गया था. यह 1809 में पूरा हुआ,  हालांकि हल्दर परिवार मंदिर की संपत्ति का मूल मालिक होने का दावा करता है. लेकिन यह बनिशा के चौधरी द्वारा विवादित था. 1960 के दशक में सरकार और हलधर परिवार के प्रतिनिधित्व के साथ मंदिर के प्रशासनिक प्रबंधन के लिए एक समिति का गठन किया गया था.

इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने कालीघाट मंदिर को बेहतर बनाने के लिए विचार बनाया, और आज यह मंदिर कोलकाता के पर्यटन स्थलों में आकर्षण का केंद्र है. हालांकि इसके बाद भी कुछ भक्तों ने मंदिर में सुधार के लिए कोर्ट तक भी गए हैं, जिसके बाद कोर्ट ने मंदिर को बेहतर बनाने का आदेश दिया, जिसके बाद मंदिर में बहुत सारे सुधार लाए गए हैं.

अनुश्रुतियों के अनुसार

इस मूर्त्ति के पीछे कुछ अनुश्रुतियाँ भी प्रचलित है. इस अनुश्रुति के अनुसार देवी किसी बात पर गुस्‍सा हो गई थीं. इसके बाद उन्‍होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया. उनके मार्ग में जो भी आता‍ वह मारा जाता. उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्‍ते में लेट गए. देवी ने गुस्‍से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया. इसी समय उन्‍होंने भगवान शिव को पहचान लिया. इसके बाद ही उनका गुस्‍सा शांत हुआ और उन्‍होंने नरसंहार बंद किया. और उनके इसी स्वरूप की प्रतिमा वहां स्थापित की गई है.

कालीघाट मंदिर के बारे में अन्य जानकारी      

हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि सती के दाएं पांव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था. यहाँ की शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' के रूप में हुआ है.

कालीघाट मंदिर कैसे पहुंचे?

कोलकाता देश के चार प्रमुख महानगरों में से एक माना जाता है, ऐसे में यहाँ पहुँचने के लिए परिवहन के साधनों की कोई कमी नहीं होती, कालीघाट मंदिर से कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की दूरी लगभग 25 किलोमीटर (किमी) है.

प्रसिद्ध हावड़ा जंक्शन, कालीघाट मंदिर से मात्र 10 किमी दूर है. कोलकाता पहुँचने के बाद मंदिर पहुँचना अत्यंत ही सरल है, और माना जाता है कि कोलकाता जाकर भी अगर दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर और कालीघाट की यात्रा न की तो यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Kali Ghati Mandir - कालीघाट मंदिर की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.

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