इस बार धनतेरस का त्योहार दो दिन का होगा.. धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण और धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा है. शास्त्रों के अनुसार इससे घर में सुख-समृद्धि आती है. माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.
धनतेरस की पूजा विधि
धनतेरस के दिन घर की सफाई कर सुबह स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहन लें.
इसके बाद षोडशोपचार विधि से देवता धनवंतरी देव की पूजा करें. साथ ही, माता लक्ष्मी की पूजा करें.
इसके बाद भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की आरती करें और प्रसाद सभी में बांटें.
शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दीये जलाना न भूलें.
तिथि और मूहर्त
शुभ मुहूर्त
22 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 02 मिनट पर प्रारंभ हो रही हैं और अगले दिन यानी 23 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 03 मिनट पर खत्म हो जाएगी
हिंदू कैलेंडर के अनुसार धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाई जाती है. धनतेरस पर लक्ष्मी पूजा त्रयोदशी तिथि के दौरान प्रदोष काल में करने का विधान होता है. इस साल कार्तिक महीने की कृष्ण त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 02 मिनट पर प्रारंभ हो रही हैं और अगले दिन यानी 23 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 03 मिनट पर खत्म हो जाएगी फिर चतुर्दशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी. हिंदू धर्म में कोई भी व्रत या त्योहार उदया तिथि के आधार ही मनाई जाती है. ऐसे में त्रयोदशी की उदया तिथि 23 अक्टूबर को है.
धनतेरस की पौराणिक कथा
ऐसा कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आए हुए थे. उस समय लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का अनुरोध किया. तो विष्णु जी ने कहा कि यदि तुम मेरी एक बात मानोगी तो फिर मेरे साथ चल सकती हो. तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गई और भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी पर आ गईं. कुछ समय के बाद एक स्थान पर पहुंचने के बाद भगवान विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से बोला कि मैं जब तक नहीं आता तुम यहीं रहना.
मैं दक्षिण की ओर जा रहा हूँ, तुम वहाँ पर मत आना. विष्णु के जाने पर लक्ष्मी को उत्सुकता हुई कि दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है कि मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए. जैसे ही भगवान आगे बढ़े, लक्ष्मी भी उनके पीछे-पीछे चलीं. थोड़ा आगे जाने पर उसे सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें बहुत सारे फूल थे. सरसों की सुंदरता देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गई और फूल तोड़कर श्रृंगार कर आगे बढ़ गई. आगे जाकर लक्ष्मी जी ने गन्ने के खेत से गन्ना तोड़ा और रस चूसने लगी. उसी क्षण विष्णु जी आए और लक्ष्मी जी पर क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप दिया कि मैंने तुम्हें यहां आने से मना किया था, लेकिन तुमने नहीं सुनी और किसान के चोरी का अपराध किया. अब आप इस किसान की इस जुर्म के लिए 12 साल सेवा करें. यह कहकर प्रभु उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए. तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर में रहने लगी.
एक दिन लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से कहा कि स्नान करने के बाद पहले मेरे द्वारा बनाई गई इस देवी लक्ष्मी की पूजा करो, फिर रसोई बनाओ, फिर तुम जो मांगोगे वह तुम्हें मिलेगा. किसान की पत्नी ने भी ऐसा ही किया. पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से दूसरे दिन से ही किसान का घर अन्न, धन, रत्न, सोना आदि से भर गया. लक्ष्मी ने किसान को पैसे और अनाज से पूरा किया. किसान के 12 वर्ष बड़े हर्षोल्लास के साथ बीते. फिर 12 साल बाद लक्ष्मीजी जाने को तैयार हो गईं.
जब विष्णु लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया. तब भगवान ने किसान से कहा कि उन्हें कौन जाने देना चाहता है, वे चंचल हैं, वे कहीं ठहरतीं नहीं हैं. कोई उन्हें रोक नहीं सका. वह मेरे द्वारा शापित थी, इसलिए वह 12 वर्षों से आपकी सेवा कर रही थी. आपकी 12 वर्ष की सेवा पूर्ण हो चुकी है. किसान ने हठपूर्वक कहा कि नहीं, अब मैं लक्ष्मीजी को जाने नहीं दूंगा. तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान, तुम मुझे रोकना चाहते हो, तो जो मैं कहती हूं वह करो. कल तेरस है. आप कल घर को लीप- पोतकर साफ करें. रात को घी का दीपक जलाकर, शाम को मेरी पूजा करके और तांबे के कलश में धन मेरे लिए रखना. मैं उस कलश में निवास करूंगी, लेकिन मैं पूजा के समय तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी. मैं इस एक दिन की आराधना करके पूरे वर्ष तुम्हारे घर से बाहर नहीं निकलूंगी. यह कहकर वह दीपों के प्रकाश से दसों दिशाओं में फैल गई. अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी की कथा के अनुसार पूजा की. उनका घर धन से भर गया. इसी वजह से हर साल तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती थी.