हिंदू धर्म को ही सनातन धर्म कहा जाता है और सनातन धर्म सबसे पुराना धर्म माना है लेकिन क्या आप जानते हैं सनातन धर्म का अर्थ क्या है और इसका इतिहास क्या है.
बहुत से लोग हिंदू धर्म को सनातन धर्म से अगल मानते हैं उनका कहना है कि हिंदू नाम तो विदेशियों ने दिया है कुछ का कहना है पहले इसका नाम आर्य धर्म था तो कुछ कहते हैं पहले इसका नाम वैदिक धर्म था इस संबंध में विद्वानों के अलग अलग राय हैं. कोई इसे सनातन धर्म तो कोई इसे हिंदू धर्म तो कोई वैदिक धर्म कहता है लेकिन सनातन धर्म है क्या और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है आज हम आप को इस लेख में बताएंगे.
हिंदू नाम कहां से आया
आपको बता दें पाकिस्तान में एक नदी है सिंधु नदी हजारों साल पहले सिंधु नदी के आस पास जो सभ्यता विकसित हुई थी उसे सिंधु घाटी की सभ्यता कहा गया था , उस वक्त जो मुगल थे वे लोग सिंधु घाटी के उस पार रहने वाले लोगों को सिंधुस्तानी कहते थें लेकिन वे लोग सिंधु की जगह हिंदू का उच्चारण करते थें जिसके बाद से वे लोग हिंदू कहलाने लगे जानकारी के लिए बता दें इससे पहले सनातन धर्म ही था और है.
सनातन धर्म का इतिहास
सनातन धर्म के इतिहास को अगर वेदों के अनुसार देखा जाए तो जो चार वेद हैं उनमें से ऋग्वेद जो है उसमें सनातन धर्म की एक छोटी सी व्याख्या दी गई है इसमें लिखा गया है ‘ सत्यम शिवम सुंदरम’ जिसका अर्थ है यह पथ सनातन है समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति भी की है, हे मनुष्य आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता की विनिष्ट ना करें.
सनातन धर्म का अर्थ है शाश्वत
वेदों का वेद ऋग्वेद में सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो सदा के लिए सत्य जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन है. जैसे
“सत्य ही सनातन है
ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म सनातन धर्म भी सत्य है”.
अर्थात सनातन का अर्थ है सदा चलने वाला ना तो उसका आदि है ना ही अंत. सनातन का ना तो कोई प्रारंभ है ना कोई अंत सनातन वो सत्य है जो अनादि काल से चलते आ रहा है और इसका कोई अंत नहीं है बता दें सनातन का यही अर्थ है कि जो शाश्वत है जो हमेशा से सत्य था और रहेगा मोक्ष का अर्थ ही सनातन है और सनातन एक सत्य जो हमेशा से चलते आया है और चलता रहेगा इसका कोई संस्थापक नहीं है.
हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहा जाता है
हिंदू धर्म या वैदिक धर्म को सनातन धर्म कहा जाता है क्योंकि यही एक ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर आत्मा और मोक्ष को तत्व व ध्यान से जानने के मार्ग को बताया जाता है मोक्ष कांसेप्ट इसी धर्म की देन है . सनातन धर्म जन्म के साथ चलता रहता है, एक बहुत अच्छा उदाहरण भगवत गीता में दिया गया है “ना तो जल को उसकी तरलता से विलग किया जा सकता है” मतलब जैसे हम पानी को उसकी तरलता से अलग नही कर सकते तरलता पानी का सत्य है एक और उदाहरण दिया गया है. “न अग्नि को उसकी ऊष्मा से विलग किया जा सकता है”, ठीक इसी प्रकार जीव को उसके नित्य कर्म से विलग नहीं किया जा सकता है सनातन धर्म जीव का शाश्वत अंग है. सनातन सांप्रदायिक नहीं हो सकता क्योंकि उसे किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता है सनातन धर्म की कोई सीमा नहीं वो फैला हुआ है .
सनातन धर्म एक नियम है
सनातन का मतलब है शाश्वत समय से परे और धर्म का अर्थ हिंदू धर्म नहीं बल्कि नियम है और नियम से चलने को सनातन धर्म कहते हैं. आप चाहे स्कूल गए हो या ना गए हो आप एक बड़े वैज्ञानिक हो या ना हो फिर भी आप इस धरती के सभी भौतिक नियमों का पालन कर रहे हैं इसलिए आज जिंदा हैं. इसी प्रकार अलग नियम है जिसकी प्रकृति भौतिक नहीं है जो हमारे अंदर के प्रक्रिया को चलाते हैं जो नियमों से पैदा होते हैं इन नियमों से हमारा जीवन चलता है उसे सनातन धर्म कहते हैं, लेकिन कुछ समय के बाद उत्साह से भरा इंसान पैदा हुआ और अपने हिसाब से या कहें अपने फायदे के अनुसार इसमें कुछ न कुछ भरते चले गए अपने स्वार्थ के हिसाब से लोगों ने इसमें कई चीजें जोड़ी, लेकिन यह सत्य है कि मानव कभी स्थिर नहीं रह सकता क्योंकि उसमें अपने मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा बनने की इच्छा है सरल शब्दों में कहें मानव के अंदर कोई सीमा नहीं होती है वो आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं और अपने सुविधानुसार हर चीजों में बदलाव करते हैं, लेकिन सनातन धर्म को कोई बदल नहीं सकता वो शाश्वत है वो किसी एक व्यक्ति विशेष या समुदाय के लिए नहीं है उसका दायरा बहुत दूर तक फैला है. आज 21 सदी में हर चीजों को मुमकिन करने के लिए अंग्रेजी भाषा का आना बहुत जरूरी है यह एक सापेक्ष चीज है जो हो सकता है पांच सौ से हजार सालों में ये कोई दूसरी भाषा हो भाषा भी बदलती रहती है लेकिन सनातन धर्म शाश्वत नियम है जीवन के कुछ खास तत्व बुनियादी पहलू हैं जो हमेशा लागू रहेंगे सनातन धर्म का मतलब है कि हमारे पास ऐसी अंतर्दृष्टि है जो जीवन हमेशा कैसे कार्य करता है बताता है.
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सनातन को कोई नष्ट नहीं कर सकता
सनातन धर्म को सुरक्षा की जरूरत नहीं जब वो शाश्वत है तो उसको कोई नष्ट नहीं कर सकता इसकी सुरक्षा करने की जरूरत नहीं है बल्कि इसे जीवन में अपनाने की जरूरत है हम कैसे जीवन में कार्य करने है जीवन तत्वों को समझने की जरूरत है हमारी जीवन शैली ही इसे हमारे अंदर सनातन को जीवित रखेगी.
सनातन धर्म में भेद नहीं एक सत्य है
सनातन धर्म को जन्म देने वाले अलग अलग काल में ऋषि मुनि थें उन्होंने उस वक्त सत्य को जैसा देखा वैसा बताया इसलिए सभी ऋषियों की बातों में समानता है जो उस वक्त के ऋषियों की बातों को नहीं समझ पाते हैं वही भेद करते हैं लेकिन भेद भाषाओं में होती है संस्कृति में होती है, अनुवादों में होता है परंपराओं में होता है लेकिन सत्य में कभी भेद नहीं होता और सनातन एक सत्य है.
सनातन सत्य है
वेद कहते हैं ईश्वर का कोई जन्म नहीं हुआ है उन्हें जन्म लेने की आवश्यकता नहीं ईश्वर तो एक ही हैं देवी देवता अनेक हैं और उस एक ईश्वर को छोड़ कर अनेक देवी देवता का पूजा पाठ कर्मकांड, तीर्थ आदि को सनातन धर्म का अंग नहीं माना जाता है और यही सनातन सत्य है.
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सनातन धर्म विज्ञान या अंधविश्वास
विज्ञान जब अनेक वस्तु विचार और तत्वों का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के सारे विश्वाश और सिद्धांत गिरते हुए नजर आते हैं धर्म के तथ्यों पर विज्ञान यकीन नहीं करता तो वहीं दूसरी तरफ़ विज्ञान सनातन धर्म के सत्य का पता लगाने में कामयाब नहीं हो पाया है लेकिन वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा के बारे में बताया गया है उसपर विज्ञान भी सहमत दिखाई देता है.
ऋषि मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्मा ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्यों को जानकर उसे विस्तार से बताया है वेदों में भी सबसे पहले ब्रह्मा ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा उठाया गया है और मोक्ष को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है मोक्ष की महत्व को समझाया गया है मोक्ष के बिना आत्मा को कोई गति नहीं है इसलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को सनातन का मार्ग कहा है. ऐसा माना जाता है कि सनातन धर्म का मकसद लोगों में जिज्ञासा की ईच्छा को जगाना होना चाहिए ना कि अपने विचार किसी पर थोपना होना चाहिए. सनातन एक ऐसा सत्य है जिसके बारे में चिंतन करने की जरूरत है क्योंकि ये कोई धर्म विशेष नहीं जिसमें मनुष्य अपने अनुसार बदलाव कर सके यह तो एक ऐसा सत्य की राह है जो हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा.
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सनातनी कैसे बने
हम सनातनी हैं कहने से कोई सनातनी नहीं बन जाता जब कुछ ऐसे दैविक गुण हमारे अंदर प्रवेश कर जाए जैसे हम अग्नि से प्रभावित ना हो हम ना गीले को ना सूखे हमें छेदा ना जा सके और हम एक जगह स्थिर रहें जगह ना बदले तो ऐसा संभव नहीं है हम अग्नि से प्रभावित भी होते हैं गीले भी होते हैं और अपनी जगह भी बदलते हैं इसका मतलब हम सनातनी नहीं हैं. जब हम ध्यान में जाकर ईश्वर के बारे में चिंतन की अवस्था में हो जाते हैं हम उसी में विलय हो जाते हैं और दिव्यदृष्टि को खोलकर कोई महात्मा हमारे चंचल मन को एकाग्र करता है हमारे भटकते मन को शांत करता है हमें स्थिर करता है जब हम ईश्वर में समा जाते हैं उस अवस्था को सनातन कहते हैं. केवल भाषणों और धर्म के बारे में ज्ञान देने से कोई सनातनी नहीं बनता बल्कि वेदों और शास्त्रों के आधार पर सनातनी बन सकते हैं.
कुल मिलाकर यही तथ्य निकलता है कि सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसकी ना तो कोई सीमा है ना कोई आरंभ ना कोई अंत ये अनंतकाल तक चलता रहेगा.
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