आज हम आपको Buddha Purnima – बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है? के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.
भगवान बुद्ध का जन्म ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था. इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी. साथ ही हम आपको बता दें कि, बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 180 करोड़ से भी अधिक लोग हैं, और यही कारण है कि इसे एक त्यौहार के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध विष्णु भगवान के 90 अवतार थे, और यही कारण है, कि हिंदुओं के लिए यह दिन इतना पवित्र माना जाता है. यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में बड़े ही हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है.
भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति bhagwan buddha ko buddhatva ki prapti
हम आपको बता दें कि बिहार में स्थित बोधगया नामक स्थान हिंदुओं व बौद्ध धर्म के लोगों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज में 7 वर्षों तक बन में यूंही भटकते रहे, परंतु उन्हें सत्य कहीं नहीं मिला, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्होंने बुद्धत्व ज्ञान को प्राप्त किया. उसी दिन से पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने लगा. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है. यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने श्रद्धा के साथ आते हैं. इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है साथ ही हम आपको बता दें कि इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित हुआ है. विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 5.1 मीटर लंबी मूर्ति है. जिसका निर्माण लाल बलुई मिट्टी के द्वारा हुआ है. और साथ ही हम आपको बता दें कि इसका निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहां से यह मूर्ति निकाली गई थी. विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है. यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था. यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है.
भगवान बुद्ध की पूजा करने की विधि bhagwan buddha ki puja karne ki vidhi
श्रीलंका व अन्य दक्षिण – पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को ‘वेसाक’ उत्सव के रूप में मनाते हैं. जो ‘वैशाख’ शब्द का अपभ्रंश है. इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं. और फूलों से घरों को सजाते हैं. विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं. और प्रार्थनाएँ करते हैं. इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है, और साथ ही हम आपको बता दें, बिहार के सभी घरों में बुद्ध की मूर्ति पर प्रसाद के रूप में फल और फूल चढ़ाया जाता है. और दीपक जलाकर पूजा की जाती है. साथ ही भगवान बुद्ध के साथ बोधि वृक्ष की भी पूजा की जाती है. और बोधि वृक्ष की शाखाओं को हरा व रंगीन पातकाओ से सजाया जाता है. वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है. और हम आपको बता दें कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन किए गए इन्हीं सभी कार्यों से विशेष फल की प्राप्ति होती है. और अगर आपने पिंजरो से पक्षियों को मुक्त कराया है व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किया हैं. उन्हें विशेष फल की प्राप्ति होती है. साथ ही हम आपको बता दें कि दिल्ली में स्थित बुध संग्रहालय में इस दिन बुध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है जिससे कि बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्ति वहां आकर बौद्ध धर्म की अस्थियों से प्रार्थना कर सकें
बुद्ध पूर्णिमा का क्या महत्व है? buddha purnima ka kya mahatva hai
भगवान बुद्ध का जन्म ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था. इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी. साथ ही हम आपको बता दें कि, बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 180 करोड़ से भी अधिक लोग हैं, और यही कारण है, कि इसे एक त्यौहार के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.
बुद्ध पूर्णिमा कैसे बनाई जाती है? buddha purnima kaise manaye jati hai
हम आपको बता दें कि बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार मनाने के लिए इस दिन घर-घर में खीर बनाई जाती है और भगवान बुध को प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है क्योंकि हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद खीर पीकर अपना व्रत खोला था, साथ ही यह माना जाता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन बाध्य मंदिरों को अच्छे से सजाया जाना चाहिए और वहां पर बौद्ध प्रार्थना ओं का भी आयोजन किया जाना चाहिए साथ ही गरीबों को वस्त्र एवं अन्य का दान किया जाना चाहिए इससे भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है.
बौद्ध धर्म के पूजा स्थल को क्या कहते हैं? buddha dharma ke puja sthal ko kya kehte
हम आपको बता दें कि हिंदू ग्रंथों के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा बौद्ध तीर्थ स्थल हैं, जिनमें से कुछ मुख्य तीर्थ स्थलों के नाम नीचे निम्न रूप में दिए गए हैं:-
विहार
पगोडा
स्तूप
चैत्य
गुफा
बुद्ध मुर्ती
आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Buddha Purnima – बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है? की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.
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