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विवाहित व अविवाहित सभी महिलाओं को सामान गर्भपात का अधिकार : Supreme Court

हमारे देश में महिलाओं को अपने ही गर्भ पर हक नहीं दिया जाता है. आज भी बहुत से लोग है जो उनके साथ दुष्कर्म करते है. महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें अपने अनचाहे गर्भ को जारी रखना पड़ता है. वैसे तो भारत सरकार समय-समय पर राज्य सरकारों को महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदमों और विशेष रूप से उनके खिलाफ अपराध की घटनाओं को रोकने के लिए और उपाय करने के संबंध में परामर्श जारी करती रही है. वहीं अब गर्भपात की समस्या पर रोकथाम लगाने के लिए देश में गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसला सुनाया है.

महिलाओं को गर्भपात पर मिला अधिकार 

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि हमारे देश में भी MTP एक्ट के तहत अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार है. मेडीकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत, सभी महिलाओं को, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित, को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित गर्भपात का कानूनी अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा इस अधिकार में यह जरूरी नहीं है कि महिला विवाहित है या फिर अविवाहित.

सम्बंधित : – भारत की 10 सबसे अमीर महिलाएं जानिए कुल संपत्ति

इसलिए सुनाया SC ने ये फैसला

दरअसल, कोर्ट ने यह फैसला 25 वर्षीय महिला की याचिका पर दिया है. महिला अपने साथी के साथ अपनी मर्जी से रह रही थी. परंतु बाद में उसने अपने साथी के साथ शादी से मना कर दिया. गर्भवती महिला का कहना है कि वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है, इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए. दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला को इसकी इजाजत नहीं दी. इसके बाद महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची.

इस फैसले पर किया था हस्तक्षेप

इस साल अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात अधिनियम के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई भी भेदभाव महिला की व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन है. उस समय जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा था कि वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट और उससे जुड़े नियमों में दखल देगी और देखेगी कि क्या अविवाहित महिलाओं डॉक्टरी सलाह के अनुसार 24 हफ्ते तक गर्भ को गिराने की इजाजत दी गई थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए एमटीपी अधिनियम और नियमों की एक दूरंदेशी व्याख्या होनी चाहिए. “

एमटीपी एक्ट की जानकारी होना है जरूरी 

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए दिया. एमटीपी अधिनियम के अनुसार – केवल बलात्कार पीड़ितों, नाबालिगों, महिलाओं, जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई है, मानसिक रूप से बीमार महिलाओं या भ्रूण विकृतियों वाली महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति है. कानून के मुताबिक आपसी सहमति से 20 हफ्ते तक ही गर्भ गिराया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

गर्भपात कानून पर कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि एक महिला को 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को इस आधार पर गर्भपात करने से मना नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हर महिला को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है, चाहे उसकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो.

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इस फैसले पर किया था हस्तक्षेप

इस साल अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात अधिनियम के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई भी भेदभाव महिला की व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन है. उस समय जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा था कि वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट और उससे जुड़े नियमों में दखल देगी और देखेगी कि क्या अविवाहित महिलाओं डॉक्टरी सलाह के अनुसार 24 हफ्ते तक गर्भ को गिराने की इजाजत दी गई थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए एमटीपी अधिनियम और नियमों की एक दूरंदेशी व्याख्या होनी चाहिए. "

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