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मृदा कितने प्रकार की होती है और भारत में कौन कौन सी मृदा पाई जाती है

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद {ICAR} के अनुसार भारत में 8 तरह की मृदा पाई जाती हैं।

1 जलोढ़ मिट्टी

2 काली मिट्टी

3 लाल मिट्टी

4 लैटेराइट मिट्टी

5 पर्वतीय मिट्टी

6 मरूस्थलीय मिट्टी

7 लवणीय या क्षारीय मिट्टी

8 जैविक मिट्टी

भारत में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चार मृदा है।

1 जलोढ़ मिट्टी 43 से 45% तक।

2 लाल मिट्टी 18 से 20% तक।

3 काली मृदा 14 से 16% तक।

4 लेटराइट मृदा 3 से 4% तक।

भारत में पाई जाने वाली सभी मृदा में  मुख्यता 3 तत्वों की सबसे ज्यादा कमी पाई जाती है।

1 फास्फोरस।

2 नाइट्रोजन।

3 ह्यूमस।

मृदा के 8 प्रकार – 

जलोढ़ मिट्टी :- जलोढ़ मिट्टी को हम दोमट मिट्टी में भी कह सकते हैं। भारत के क्षेत्रफल में सबसे ज्यादा जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। भारत की कुल क्षेत्रफल में लगभग 43 से 44% तक पाई जाती है। दोमट मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेप से किया गया है। लेकिन जलोढ़ या दोमट मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है। जिन स्थानों पर जलोढ़ मिट्टी अधिक मात्रा में पाई जाती है। उस जगह में फसल उत्पादन के लिए यूरिया खाद को डालना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। जलोढ़ या दोमट मिट्टी में चुना और पोटाश की मात्रा भी कम पाई जाती है। लेकिन गेहूं की खेती के लिए जलोढ़ मिट्टी बहुत ज्यादा उपयोगी मानी जाती है। गेहूं के अलावा जलोढ़ मिट्टी में धान और आलू की खेती भी की जा सकती है। जलोढ़ मिट्टी की खोज बलुई मिट्टी और चिकनी मिट्टी के मिलने से हुई है। जलोढ़ मिट्टी हल्का धूसर रंग की होती है।

काली मिट्टी :- भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद सबसे अधिक पाई जाने वाली मृदा काली मृदा है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद काली मिट्टी का दूसरा स्थान है। काली मिट्टी का उपयोग सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और गुजरात में खेती के लिए किया जाता है। काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के फटने के कारण निर्माण होने वाली चट्टानों से हुआ है। दक्षिण भारत में काली मिट्टी को रेगूर मृदा के नाम से भी जाना जाता है। केरल में इसको ‘शाली’ के नाम से जाना जाता है। और उत्तरी भारत में ‘केवाल’ नाम से जाना जाता है। जलोढ़ मिट्टी की तरह काली मिट्टी में भी नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। क्योंकि इसमें चूना लोहा मैग्नीशियम एवं एलुमिनियम की मात्रा अधिक होती है। काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी कम पाई जाती है। काली मिट्टी का सर्वाधिक उपयोग कपास की खेती करने में किया जाता है। काली मिट्टी में धान का उत्पादन भी अच्छा होता है।

लाल मिट्टी :- लाल मिट्टी को क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत में या तीसरे नंबर पर आती है। भारत में 5 लाख वर्ग किलोमीटर पर लाल मिट्टी पाई जाती है। लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों के टूटने के कारण हुआ था। लाल मिट्टी तमिल नाडु राज्य में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती है। ज्यादातर खनिज लाल मिट्टी के नीचे ही पाए जाते हैं। लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा कम ही पाई जाती है। लाल मिट्टी का रंग लाल होने का कारण इस में उपस्थित आयरन ऑक्साइड है। लेकिन यह मृदा फसल उत्पादन के लिए लाभदायक नहीं मानी जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज की खेती की जा सकती है। जैसे ज्वार, बाजरा, मूंगफली, अरहर, इन सबके अलावा धान की खेती भी की जा सकती है।

लैटेराइट मिट्टी :- इस मिट्टी को भारत की क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से देखा जाए। तो लैटेराइट मिट्टी का स्थान चौथा है। लैटेराइट मिट्टी भारत के एक लाख से भी ज्यादा वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। लैटेराइट मिट्टी में भी नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और चूना एवं कार्बनिक तत्व कम पाए जाते हैं। लेकिन लौह और एलुमिनियम ऑक्साइड ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। यह मिट्टी चाय की पत्ती और कॉफी उत्पादन के लिए बहुत ही लाभदायक मानी गई है। यह मिट्टी भारत के असम कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में अधिक मात्रा में पाई जाती है। चाय और कॉफी के साथ-साथ इस मृदा में काजू की फसल भी की जा सकती है। यह मिट्टी ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है।

पर्वतीय मिट्टी :- पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ और पत्थर की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस मिट्टी में भी अन्य मृदा की तरह ही पोटाश फास्फोरस और चूने की कमी पाई जाती है। यह मिट्टी पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है। जिसके कारण इसका नाम पर पर्वतीय मिट्टी पड़ गया है। यह मिट्टी खेती के लिए उपयोगी नहीं होती है। इसलिए इन मिट्टियों में गरम मसालों की खेती की जाती है।

मरूस्थलीय मिट्टी :- मरुस्थलीय मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है। जिसमें घुलनशील लवण और फास्फोरस की मात्रा बहुत ही ज्यादा पाई जाती है। लेकिन मरुस्थली मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक तत्व कम पाए जाते हैं। इस मिट्टी में तिलहन का उत्पादन बहुत ही ज्यादा होता है। यह मिट्टी सभी प्रकार की फसलों के उत्पादन के लिए लाभदायक मानी जाती है। इस मिट्टी में ज्वार बाजरा कि फसल का अच्छा पैदावार होता है। लेकिन सिंचाई का माध्यम आपके पास उपस्थित होना चाहिए।

लवणीय या क्षारीय मिट्टी :- लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी और उसर मिट्टी भी कहा जाता है। जिस क्षेत्र में जल निकास की उचित सुविधा नहीं पाई जाती हैं। उसी स्थान में क्षारीय मिट्टी पाई जाती है। ऐसे क्षेत्रों की मिट्टी में सोडियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसी कारण से मिट्टी छारीय हो जाती है। समुद्री तटों में लवणीय मिट्टी का निर्माण अधिक किया जाता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा भी कम पाई जाती है। भारत में यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और केरल के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मृदा में नारियल की खेती अच्छी मानी जाती है।

जैविक मिट्टी :- जैविक मिट्टी को पीट-मिट्टी या दलदली मिट्टी भी कहा जाता है। दलदली मिट्टी केरल उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पाई जाती है। दलदली मिट्टी में फास्फोरस और पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। लेकिन जैविक मिट्टी में लवण की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। खेती की दृष्टि से जैविक मिट्टी भी फसल के लिए अच्छी मानी जाती है।

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद {ICAR} के अनुसार भारत में 8 तरह की मृदा पाई जाती हैं।

1 जलोढ़ मिट्टी

2 काली मिट्टी

3 लाल मिट्टी

4 लैटेराइट मिट्टी

5 पर्वतीय मिट्टी

6 मरूस्थलीय मिट्टी

7 लवणीय या क्षारीय मिट्टी

8 जैविक मिट्टी

भारत में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चार मृदा है।

1 जलोढ़ मिट्टी 43 से 45% तक।

2 लाल मिट्टी 18 से 20% तक।

3 काली मृदा 14 से 16% तक।

4 लेटराइट मृदा 3 से 4% तक।

भारत में पाई जाने वाली सभी मृदा में  मुख्यता 3 तत्वों की सबसे ज्यादा कमी पाई जाती है।

1 फास्फोरस।

2 नाइट्रोजन।

3 ह्यूमस।

मृदा के 8 प्रकार - 

जलोढ़ मिट्टी :- जलोढ़ मिट्टी को हम दोमट मिट्टी में भी कह सकते हैं। भारत के क्षेत्रफल में सबसे ज्यादा जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। भारत की कुल क्षेत्रफल में लगभग 43 से 44% तक पाई जाती है। दोमट मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेप से किया गया है। लेकिन जलोढ़ या दोमट मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है। जिन स्थानों पर जलोढ़ मिट्टी अधिक मात्रा में पाई जाती है। उस जगह में फसल उत्पादन के लिए यूरिया खाद को डालना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। जलोढ़ या दोमट मिट्टी में चुना और पोटाश की मात्रा भी कम पाई जाती है। लेकिन गेहूं की खेती के लिए जलोढ़ मिट्टी बहुत ज्यादा उपयोगी मानी जाती है। गेहूं के अलावा जलोढ़ मिट्टी में धान और आलू की खेती भी की जा सकती है। जलोढ़ मिट्टी की खोज बलुई मिट्टी और चिकनी मिट्टी के मिलने से हुई है। जलोढ़ मिट्टी हल्का धूसर रंग की होती है।

काली मिट्टी :- भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद सबसे अधिक पाई जाने वाली मृदा काली मृदा है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद काली मिट्टी का दूसरा स्थान है। काली मिट्टी का उपयोग सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और गुजरात में खेती के लिए किया जाता है। काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के फटने के कारण निर्माण होने वाली चट्टानों से हुआ है। दक्षिण भारत में काली मिट्टी को रेगूर मृदा के नाम से भी जाना जाता है। केरल में इसको ‘शाली’ के नाम से जाना जाता है। और उत्तरी भारत में ‘केवाल’ नाम से जाना जाता है। जलोढ़ मिट्टी की तरह काली मिट्टी में भी नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। क्योंकि इसमें चूना लोहा मैग्नीशियम एवं एलुमिनियम की मात्रा अधिक होती है। काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी कम पाई जाती है। काली मिट्टी का सर्वाधिक उपयोग कपास की खेती करने में किया जाता है। काली मिट्टी में धान का उत्पादन भी अच्छा होता है।

लाल मिट्टी :- लाल मिट्टी को क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत में या तीसरे नंबर पर आती है। भारत में 5 लाख वर्ग किलोमीटर पर लाल मिट्टी पाई जाती है। लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों के टूटने के कारण हुआ था। लाल मिट्टी तमिल नाडु राज्य में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती है। ज्यादातर खनिज लाल मिट्टी के नीचे ही पाए जाते हैं। लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा कम ही पाई जाती है। लाल मिट्टी का रंग लाल होने का कारण इस में उपस्थित आयरन ऑक्साइड है। लेकिन यह मृदा फसल उत्पादन के लिए लाभदायक नहीं मानी जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज की खेती की जा सकती है। जैसे ज्वार, बाजरा, मूंगफली, अरहर, इन सबके अलावा धान की खेती भी की जा सकती है।

लैटेराइट मिट्टी :- इस मिट्टी को भारत की क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से देखा जाए। तो लैटेराइट मिट्टी का स्थान चौथा है। लैटेराइट मिट्टी भारत के एक लाख से भी ज्यादा वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। लैटेराइट मिट्टी में भी नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और चूना एवं कार्बनिक तत्व कम पाए जाते हैं। लेकिन लौह और एलुमिनियम ऑक्साइड ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। यह मिट्टी चाय की पत्ती और कॉफी उत्पादन के लिए बहुत ही लाभदायक मानी गई है। यह मिट्टी भारत के असम कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में अधिक मात्रा में पाई जाती है। चाय और कॉफी के साथ-साथ इस मृदा में काजू की फसल भी की जा सकती है। यह मिट्टी ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है।

पर्वतीय मिट्टी :- पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ और पत्थर की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस मिट्टी में भी अन्य मृदा की तरह ही पोटाश फास्फोरस और चूने की कमी पाई जाती है। यह मिट्टी पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है। जिसके कारण इसका नाम पर पर्वतीय मिट्टी पड़ गया है। यह मिट्टी खेती के लिए उपयोगी नहीं होती है। इसलिए इन मिट्टियों में गरम मसालों की खेती की जाती है।

मरूस्थलीय मिट्टी :- मरुस्थलीय मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है। जिसमें घुलनशील लवण और फास्फोरस की मात्रा बहुत ही ज्यादा पाई जाती है। लेकिन मरुस्थली मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक तत्व कम पाए जाते हैं। इस मिट्टी में तिलहन का उत्पादन बहुत ही ज्यादा होता है। यह मिट्टी सभी प्रकार की फसलों के उत्पादन के लिए लाभदायक मानी जाती है। इस मिट्टी में ज्वार बाजरा कि फसल का अच्छा पैदावार होता है। लेकिन सिंचाई का माध्यम आपके पास उपस्थित होना चाहिए।

लवणीय या क्षारीय मिट्टी :- लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी और उसर मिट्टी भी कहा जाता है। जिस क्षेत्र में जल निकास की उचित सुविधा नहीं पाई जाती हैं। उसी स्थान में क्षारीय मिट्टी पाई जाती है। ऐसे क्षेत्रों की मिट्टी में सोडियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसी कारण से मिट्टी छारीय हो जाती है। समुद्री तटों में लवणीय मिट्टी का निर्माण अधिक किया जाता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा भी कम पाई जाती है। भारत में यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और केरल के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मृदा में नारियल की खेती अच्छी मानी जाती है।

जैविक मिट्टी :- जैविक मिट्टी को पीट-मिट्टी या दलदली मिट्टी भी कहा जाता है। दलदली मिट्टी केरल उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पाई जाती है। दलदली मिट्टी में फास्फोरस और पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। लेकिन जैविक मिट्टी में लवण की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। खेती की दृष्टि से जैविक मिट्टी भी फसल के लिए अच्छी मानी जाती है।