भाद्रपद की पूर्णिमा और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पितृ पक्ष कहा जाता है. वर्ष 2022 में पितृ पक्ष 10 सितंबर शनिवार से आरंभ होकर 25 सितंबर 2022 रविवार तक रहेगा. ब्रह्मपुराण के अनुसार पितृपक्ष में मनुष्य को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए, और उनका तर्पण करना चाहिए, शास्त्रों के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा ही चुकाया जा सकता है. कहा जाता है, कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न रहते हैं, पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान किया जाता है. पितृपक्ष में दान, श्राद्ध और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, इससे पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है. पितृपक्ष 15 दिन तक चलते हैं, और श्राद्ध तिथि के अनुसार ही करना चाहिए, लेकिन पितृपक्ष में पितृतर्पण करने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और भूलकर भी ये गलतियां नहीं करनी चाहिए, आइए जानते हैं क्या हैं वो कार्य –
- श्राद्ध पक्ष में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं करना चाहिए, श्राद्ध पक्ष के कारण इन दिनों में किसी भी प्रकार की नई चीजों को नहीं खरीदना चाहिए.
- श्राद्ध पक्ष में घर पर सात्विक भोजन बनाना चाहिए, श्राद्ध पक्ष के दिनों में तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए, और अगर आपको पितरों की मृत्यु की तिथि याद है, तो तिथि के अनुसार पिंडदान करना उत्तम माना जाता है.
- श्राद्ध के दौरान लोहे से बने बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. क्योंकि पितृपक्ष में लोहे के बर्तन इस्तेमाल करने से परिवार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. श्राद्ध पक्ष में पीतल धातु या तांबे से बने बर्तनों का ही उपयोग करना चाहिए.
- पितृपक्ष में जो भी श्राद्ध कर्म करते हैं, उनको पितृपक्ष माह में बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए, बाल और दाढ़ी कटवाने से धन की हानि होती है.
- अगर आपके घर में किसी स्वर्गवासी व्यक्ति का श्राद्ध किया जा रहा है तो इस दौरान तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए, श्राद्ध पक्ष में लहसुन, प्याज से बना भोजन नहीं करना चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को भोजन करवाना शुभ माना जाता है.
- श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना उचित माना जाता है, पुराणों के अनुसार संध्या काल का समय श्राद्धकर्म निषिद्ध माना जाता है क्योंकि शाम का समय राक्षसों का होता है.
- श्राद्ध का कार्य कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए, जैसे अगर आप अपने किसी रिश्तेदार के घर हैं और श्राद्ध चल रहे हैं, तो आपको वहां पर श्राद्ध करने से बचना चाहिए, अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध ही फलदायी होता है, हालांकि पुण्य तीर्थ या मन्दिर या अन्य पवित्र स्थान दूसरे की भूमि नहीं माने जाते, लिहाजा आप पवित्र स्थानों पर श्राद्ध कार्य कर सकते है.
- श्राद्ध कर्म में गाय का दूध, घी या दही का उपयोग करना चाहिए.
- श्राद्ध में तुलसी और तिल का प्रयोग करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं, परिणाम स्वरूप श्राद्ध के भोजन आदि में तुलसी और तिल का उपयोग जरूर करना चाहिए.
- श्राद्ध के दिन चांदी के बर्तनों का उपयोग और दान बड़ा ही पुण्यदायी माना गया है, और अगर हो सके तो चांदी के बर्तनों में ही ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए.
- श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को भोजन अवश्य रूप से कराना चाहिए, अगर कोई व्यक्ति बिना ब्राह्मण को भोजन कराए श्राद्ध कर्म करता है, तो उसके घर में पितर भोजन ग्रहण नहीं करते है, और ऐसा करने से व्यक्ति पाप का भागी होता है.
- श्राद्ध के एक दिन पहले ही ब्राह्मणों को खाने के लिये आमंत्रित कर दें, अगले दिन खाने में पूड़ी, सब्जी, खीर और अपने पितरों की मनपसंद भोजन ब्राह्मणों को कराना चाहिए.
- आपके जिस भी पूर्वज का स्वर्गवास है, उसी के अनुसार ब्राह्मण या ब्राह्मण की पत्नी को निमंत्रण देकर आना चाहिए, जैसे अगर आपके स्वर्गवासी पूर्वज एक पुरुष हैं, तो पुरुष ब्राह्मण को और अगर महिला है, तो ब्राह्मण की पत्नी को भोजन खिलाना चाहिए. साथ ही ध्यान रखें कि अगर आपका स्वर्गवासी पूर्वज़ कोई सौभाग्यवती महिला थी, तो किसी सौभाग्यवती ब्राह्मण की पत्नी को भी भोजन के लिये आमंत्रित करें.
- ब्राह्मण को खाना खिलाते समय दोनों हाथों से खाना परोसना चाहिए और ध्यान रहे श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन एक सुपात्र ब्राह्मण को ही कराना चाहिए.
- ब्राह्मणों को भोजन आसन में बैठाकर कराना चाहिए या फिर ऊनी कपड़े, कुश या कंबल के आसन में बैठाकर कराना चाहिए लोहे से बने आसनों का उपयोग बिल्कुल भी ना करें.
- ब्राह्मण भोज के बाद अपनी इच्छा अनुसार दक्षिणा और कपड़े भी देने चाहिए.
- श्राद्ध के दिन बनाए गए भोजन में से गाय, कौओं, कुत्तों और चींटियों को भी खिलाना चाहिए.
- ब्राह्मण भोज के बाद ही घर के अन्य सदस्यों को भोजन ग्रहण करना चाहिए.
- श्राद्ध के दिन अगर कोई गरीब या जरूरमंद आपके घर आता है तो उसे आदरपूर्वक भोजन जरूर कराना चाहिए.
- श्राद्ध के भोजन में जौ, मटर, कांगनी और तिल का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। कहते हैं तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं, साथ ही श्राद्ध के कार्यों में कुशा का भी महत्व है। इसके अलावा श्राद्ध के दौरान चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बांसी अन्न निषेध है । आपको इन सब बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
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