आज हम आपको रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन परिचय के बारे में बताने जा रहे हैं। कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें। और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे।
रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन 1861 में कोलकाता राज्य में हुआ था. रविंद्र नाथ टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार और दार्शनिक भी थे. रविंद्र नाथ टैगोर जी एशिया के प्रथम ऐसे व्यक्ति थे. जिन्हें नोवल जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार से विभूषित किया गया था. वह अपने माता पिता की तरह भी संतान तो बचपन में उन्हें प्यार से रही बुलाया जाता था 8 वर्ष की उम्र में उन्हें अपनी मां पर पहली कविता लिखी. 16 साल की इतनी कम उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था. अपने जीवन में उन्होंने 1000 कविताएं, 8 उपन्यास, 8 कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर अनेकों लेख लिखे हैं इतना ही नहीं रविंद्र नाथ टैगोर संगीत प्रेमी थे. और उन्होंने मात्र 51 वर्ष की आयु में ही 2000 से अधिक गीतों की रचना की थी जिनमें से दो गीत आज भी भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान है. मात्र 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां और सफलताएं केवल कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित रहें इन 54 वर्ष के उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड जा रहे थे, समुद्री मार्ग में भारत से इंग्लैंड जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल अपना समय काटने के विचार से उन्होंने, गीतांजलि का अनुवाद करना प्रारंभ किया. उन्होंने एक नोटबुक में अपने हाथों से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद किया. लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र एक सूटकेस को ही भूल गया. जिसमें वह नोटबुक रखी थी. इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्त होना नहीं लिखा था. वह सूट के जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उस सूटकेस को रविंद्र नाथ टैगोर तक अगले दिन ही पहुंचा दिया. लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेस्टीन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रविंद्र नाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जताई और गीतांजलि पढ़ने के बाद रोथेस्टीन मन मुग्ध हो गए उन्होंने अपने मित्र डब्लू. बी. इस गीतांजलि के बारे में बताया और वही नोटबुक उन्होंने भी पड़ी और उनको पढ़ने के लिए दी इसके बाद जो हुआ है. वह इतिहास है. इसने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल प्रमाण की प्रस्तावना लिखी और सितंबर सन 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसाइटी के सहयोग से प्रकाशित की गई. लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को संबोधित कर लिया. पहली बार भारतीय मनीषा की झलक जगत ने देखी गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रविंद्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार से विभूषित किया गया. टैगोर सिर्फ महान रचना धर्मी ही नहीं थे बल्कि वह पहले ऐसे इंसान थे, जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु बनाने का कार्य किया था. रविंद्र नाथ टैगोर जी केवल भारत के ही नहीं बल्कि समूचे विश्व के साहित्य कला और संगीत के महान प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रसिद्ध थे. जो स्तंभ अनंत काल तक प्रकाशमान रहेगा.
रविंद्र नाथ टैगोर जी के कुछ दार्शनिक सिद्धांत
- आदर्शवाद- रविंद्र नाथ टैगोर जी ने अपनी आदर्शवादी भावना से प्रेरित होकर टैगोर ने भौतिकवादी प्रगति के संबंध में विचार दर्शाते हुए. कहा कि मनुष्य भौतिक वस्तुओं को पाने की लालसा के लिए व्याकुल है जिससे कि वह अमर सत्य को पाने से असमर्थ हो गया है इनका विचार है कि ईश्वर की विश्व में रहकर प्राप्त की जा सकता है.
- प्रकृतिवाद- रविंद्र नाथ टैगोर जी शुरू से ही प्रकृति और प्रकृति के सौंदर्य के प्रेमी रहे हैं वह जब अप्रकृतिक वातावरण से रहित विश्वविद्यालय में गए तो उन्हें उसकी अस्वाभाविकता महसूस हुई और वह उसके विरुद्ध प्रतिक्रियाशील हो उठे और रूसो की तरह पुकार उठे “प्रकृति की ओर चलो ‘ अपने प्रतिवादी दर्शन में प्रकृति को महान शिक्षक माना है. उन्होंने मानव प्रकृति को समझने एवं अपने आपको समाजिककृत करके आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया है, कि टैगोर ने प्रकृति को एक ऐसा केंद्र बिंदु बताया है, जहां पर सभी मनुष्य की इच्छा, आकांक्षाएं और अभिलाषआएं एक होती हैं.
- यथार्थवादी- रविंद्र नाथ टैगोर जी ने अपने जीवन में भारतीय यथार्थवाद और पाश्चात्य यथार्थवाद के बीच अद्वितीय समन्वय स्थापित किया है. इस समन्वय के आधार पर उन्होंने भारत के लिए एक ऐसी संस्कृति का विकास के लिए बल दिया है. जिसमें एक और नैतिक, चारित्रिक और शाश्वत मूल्य एवं शक्तियों का समावेश हो. टैगोर जी ने इस यथार्थवाद के सामने आते, ही भारत एक ग्रामीण देश कहा, और यह भी कहा की किसी देश की जनता तभी प्रगति कर सकती है, जब उसके देश में जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं एवं साधनों की अधिक अत्यधिक उत्पादन किया जाए. प्रत्येक ग्राम में ऐसे शिक्षा संस्थान स्थापित किए जाएं जहां पर सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त कृषि एवं ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए विज्ञान की सहायता ली जाए.
आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको रविंद्र नाथ टैगोर की जीवनी की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा। अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.
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