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पृथ्वी की गतियां Prithvi Ki Gatiyan

आज हम आपको पृथ्वी की गतियां के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.

जैसा कि आप सभी जानते हैं, कि पृथ्वी की घूर्णन गति का हमें आभास नहीं होता, परंतु हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है, साथ ही यह सूर्य की परिक्रमा भी लगाती रहती है. उदाहरण – पृथ्वी अपनी धुरी पर नहीं घूमती तो एक हिस्से पर हमेशा दिन रहता तथा दूसरे हिस्से पर हमेशा रात रहती है. इसके अतिरिक्त पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूर्णन करने से ही मौसम परिवर्तित होते हैं. इसलिए इन सभी प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है, कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर तथा अपनी धुरी पर सतत् रूप से घूमती है. अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी अपने अक्ष पर लगातार घूमती रहती है. पृथ्वी अपने अक्ष के सहारे घूर्णन करती है. ‘अक्ष’ उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा है. हमारी पृथ्वी के परिक्रमण कक्ष से निर्मित तथा पृथ्वी के केंद्र से गुजरने वाले तल को ‘कक्षातल’ अथवा ‘कक्षीयसतह’ कहा जाता है.और हम आपको बता दें कि पृथ्वी का आकार गोलाकार (अंडाकार) है. और यही कारण है कि पृथ्वी के आधे भाग पर ही सूर्य का प्रकाश पड़ता है जहां सूर्य का प्रकाश पड़ता है वहां दिन रहता है, और जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता उस समय वहां रात रहती है, क्योंकि वहां सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता है. क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1/2° झुकी हुई है तथा इसका अक्ष इसके कक्षातल से 66 1/2° का कोण बनाता है. इसलिए पृथ्वी पर दिन और रात को विभाजित करने वाले व्रत को ‘प्रदीप्ति व्रत’ कहा जाता है.

पृथ्वी की परिक्रमण और परिभ्रमण गति

पृथ्वी का अपने अक्ष के सापेक्ष पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लट्टू की तरह घूमना ही ‘पृथ्वी का घूर्णन’ कहलाता है. और इसी को ही ‘परिभ्रमण गति’ भी कहते हैं. पृथ्वी पश्चिम से पूर्व लगभग 1,670 किमी, प्रति घंटे की चाल से 23 घंटे, 56 मिनट व 4 सेकंड में एक घूर्णन पूरा करती है.

पृथ्वी की वार्षिक गति को क्या कहते हैं?

जैसा कि आप सभी जानते ही हैं, पृथ्वी अपने कक्ष पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर चक्कर भी लगाती है, जो एक अंडाकार मार्ग होता है, इस मार्ग पर वह 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 4,009 सेकंड में एक चक्कर पूरा करती है, इस गति को परिक्रमा या वार्षिक गति कहा जाता है.

पृथ्वी गति न करती तो क्या होता?

अगर पृथ्वी गति ना करती तो पृथ्वी पर जीवन संभव ही ना होता. पृथ्वी की सतह 465 मीटर प्रति सेकंड पर घूम रहा है. जैसे-जैसे आप ध्रुव के करीब जाते हैं, यह गति धीरे-धीरे कम होती जाती है

पृथ्वी केंद्र बिंदु कहां माना जाता है?

पृथ्वी का केंद्र बिंदु इजराइल को माना जाता है. वर्तमान समय में भी इजराइल ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु माना जा रहा है. क्योंकि यह तीन बड़े धर्म की पवित्र भूमि है, यहां क्रिस्चियन, यहूदी और मुस्लिम तीनों धर्म के लोग रहते हैं. साथ ही कुछ विद्वानों का यह भी मानना है, कि पृथ्वी पर पहला मनुष्य आदम की उत्पत्ति इजराइल में ही हुई थी.

मौसम परिवर्तन

पृथ्वी ना केवल अपने अक्ष पर घूमती है, बल्कि यह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार में परिक्रमा भी लगाती है. अत: सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की परिस्थितियां बदलती रहती हैं. पृथ्वी की परिक्रमण गति के कारण इसकी स्थितियां बदलती रहती हैं, जिसके कारण ऋतुओं में भी परिवर्तन होता है.

21 मार्च को सूर्य की लम्बवत किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत चमकती हैं. अत: उत्तरी एवं दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में दिन व रात की लम्बाई बराबर होती हैं. दोनों गोलार्द्धों में दिन एवं रात की लम्बाई समान होने के कारण दोनों गोलार्द्धों को समान तापमान मिलता है. और यही कारण है कि 21 मार्च को पूरे पृथ्वी पर एक समान मौसम होता है. जब 21 मार्च को सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत चमकता है, तब पृथ्वी पर बसंत ऋतु होती है.

21 मार्च को सूर्य उत्तरायण होने लगता है जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की लम्बाई बढ़ने लगती है. जैसे-जैसे हम उत्तर की ओर जाते है, उत्तरी गोलार्द्ध पर दिन की लम्बाई बढ़ती जाती है. उत्तरी गोलार्द्ध पर इस कारण 6 महीने का दिन होता है. इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन छोटे होते हैं, और इसके साथ यहां सूर्य की किरण भी तिरछी पड़ती है जिसके कारण यहां शीत ऋतु होती है.

21 जून को सूर्य की लम्बवत किरणें कर्क रेखा पर चमकती हैं. इस स्थिति को कर्क संक्रांति कहते हैं.

21 जून के बाद पुन: सूर्य विषुवत रेखा की ओर लौटने लगता है. 23 सितम्बर को पुन: दोनों गोलार्द्धों पर सूर्यातप की समान मात्रा प्राप्त होती है. अत: पूरे पृथ्वी पर मौसम समान रहता है. इस स्थिति को शरद विषुव कहते हैं.

23 सितम्बर के बाद सूर्य दक्षिणायन होने लगता है, और 22 दिसंबर तक आते-आते सूर्य की लम्बवत किरणें मकर रेखा पर पड़ने लगती हैं. इसके चलते दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन की बड़ा होता है और रात छोटी होती है.

22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सूर्य के लम्बवत चमकने के कारण यहाँ ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है. उत्तरी गोलार्द्ध में इस समय ठीक विपरीत स्थिति देखी जाती है. इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटे और रातें लम्बी होती हैं. इसके साथ ही सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण यहाँ शीत ऋतु होता है. 22 दिसम्बर के बाद सूर्य फिर से विषुवत रेखा की ओर उन्मुख हो जाता है इसके कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में धीरे-धीरे ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति होने लगती है.

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको पृथ्वी की गतियां की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.

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पृथ्वी की परिक्रमण और परिभ्रमण गति

पृथ्वी का अपने अक्ष के सापेक्ष पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लट्टू की तरह घूमना ही 'पृथ्वी का घूर्णन' कहलाता है. और इसी को ही 'परिभ्रमण गति' भी कहते हैं. पृथ्वी पश्चिम से पूर्व लगभग 1,670 किमी, प्रति घंटे की चाल से 23 घंटे, 56 मिनट व 4 सेकंड में एक घूर्णन पूरा करती है.

पृथ्वी की वार्षिक गति को क्या कहते हैं?

जैसा कि आप सभी जानते ही हैं, पृथ्वी अपने कक्ष पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर चक्कर भी लगाती है, जो एक अंडाकार मार्ग होता है, इस मार्ग पर वह 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 4,009 सेकंड में एक चक्कर पूरा करती है, इस गति को परिक्रमा या वार्षिक गति कहा जाता है.

पृथ्वी गति न करती तो क्या होता?

अगर पृथ्वी गति ना करती तो पृथ्वी पर जीवन संभव ही ना होता. पृथ्वी की सतह 465 मीटर प्रति सेकंड पर घूम रहा है. जैसे-जैसे आप ध्रुव के करीब जाते हैं, यह गति धीरे-धीरे कम होती जाती है

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21 मार्च को सूर्य उत्तरायण होने लगता है जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की लम्बाई बढ़ने लगती है. जैसे-जैसे हम उत्तर की ओर जाते है, उत्तरी गोलार्द्ध पर दिन की लम्बाई बढ़ती जाती है. उत्तरी गोलार्द्ध पर इस कारण 6 महीने का दिन होता है. इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन छोटे होते हैं, और इसके साथ यहां सूर्य की किरण भी तिरछी पड़ती है जिसके कारण यहां शीत ऋतु होती है.

21 जून को सूर्य की लम्बवत किरणें कर्क रेखा पर चमकती हैं. इस स्थिति को कर्क संक्रांति कहते हैं.

21 जून के बाद पुन: सूर्य विषुवत रेखा की ओर लौटने लगता है. 23 सितम्बर को पुन: दोनों गोलार्द्धों पर सूर्यातप की समान मात्रा प्राप्त होती है. अत: पूरे पृथ्वी पर मौसम समान रहता है. इस स्थिति को शरद विषुव कहते हैं.

23 सितम्बर के बाद सूर्य दक्षिणायन होने लगता है, और 22 दिसंबर तक आते-आते सूर्य की लम्बवत किरणें मकर रेखा पर पड़ने लगती हैं. इसके चलते दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन की बड़ा होता है और रात छोटी होती है.

22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सूर्य के लम्बवत चमकने के कारण यहाँ ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है. उत्तरी गोलार्द्ध में इस समय ठीक विपरीत स्थिति देखी जाती है. इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटे और रातें लम्बी होती हैं. इसके साथ ही सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण यहाँ शीत ऋतु होता है. 22 दिसम्बर के बाद सूर्य फिर से विषुवत रेखा की ओर उन्मुख हो जाता है इसके कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में धीरे-धीरे ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति होने लगती है.

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको पृथ्वी की गतियां की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.

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