Supreme Court ने पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया था. एक हिंदू परिवार की बेटियों को अपने भाइयों या किसी अन्य परिजन की तुलना में पिता की संपत्ति में बराबर हक दिया जाएगा. उनके हक को हमेशा से मारा जाता है. उन्हें अपने परिवार का हिस्सा नहीं माना जाता, पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब बेटियों में खुशी की लहर देखने को मिली है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि अगर एक पिता ने वसीयत नहीं बनाई है और अगर उसकी कभी भविष्य में मृत्यु हो जाती है, तो उसके बेटे और बेटियों को विरासत में मिली संपत्ति दोनों में समान बटेगी. इससे दोनों का अपना बराबर का हक मिलेगा. साथ ही Supreme Court के इस नए कानून से बेटियों का आत्मगौरव आगे बढ़ेगा.
भाई के ना होने पर बेटी का ज्यादा हक होगा…
मिताक्षरा कानून में लिखा है कि “सहदायिक और उत्तरजीविता की अवधारणा के तहत, एक हिंदू व्यक्ति की मृत्यु के बाद, उसकी संपत्ति केवल पुरुषों में Distribute की जाएगी और यदि कोई पुत्र नहीं है, तो Joint Family के पुरुषों के बीच संपत्ति को विभाजित किया जाएगा. इस कानून की अवहेलना करते हुए अदालत ने नए कानून बनाए है, अब यदि किसी हिंदू व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं है और वह बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी बेटी का उसकी वसीयत और स्व-अर्जित संपत्तियों पर अधिकार उसके चचेरे भाई से अधिक होगा.
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क्या लिखित है इन कानूनों में
सहभागिता : एक Hindu Joint Family में ये रिवाज है कि संपत्ति साझा करने के अधिकार का मतलब है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति उसकी विधवा पत्नी या बेटी को कोई अधिकार नहीं मिलेगा. उसकी संपत्ति पर उसके पुत्रों का ही सिर्फ अधिकार होगा. यदि मृतक का कोई पुत्र नहीं है, तो उसके भाई के पुत्रों को यह अधिकार प्राप्त होगा.
उत्तरजीविता: कहा गया है कि वारिस समान होना चाहिए और वंश को आगे बढ़ाना चाहिए. आदमी का वारिस आदमी होगा, क्योंकि बेटियाँ शादी के बाद दूसरों के घर चली जाती हैं, वो पराई हो जाती है. उनका पिता की संपत्ति पर कोई हक नहीं होता. वो पराया धन होती है. ऐसे में पिता की संपत्ति पर पुत्रों का ही अधिकार हो सकता है, पुत्रियों का नहीं.
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