पारसी एक ऐसा समाज है वे ना तो हिंदुओं ना मुस्लिम ना तो क्रिश्चियन के रीति रिवाज मानते हैं उनका अपना ही रीति रिवाज है बेशक पारसी लोगों की संख्या कम है लेकिन देश के विकास में उनके योगदान से उनका समाज में एक अगल रुतबा है. हजारों साल पहले पारसी ईरान से पलायन कर भारत आकर बस गए और भारत में अलग-अलग धर्मों के बीच रहने बाद भी उन्होंने अपने धर्म का पूरा ख्याल रखा और सख्ती के साथ उसका पालन भी किया.
पारसी का इतिहास
10वीं सदी में पारसी ईरान से पलायन कर भारत आ गए पारसी एक ऐसी जगह की तलाश में थें जहां वे आजादी से अपने धार्मिक रीति रिवाजों का पालन कर सके पारसी ईरान से भागकर भारत के गुजरात पहुंचे और बस गए जिसके बाद से भारत के समुदायों में पारसी समाज भी एक हिस्सा बन गया.
देश के विकास में अहम योगदान
पारसी समुदाय का देश के विकास में काफी योगदान रहा है इस समुदाय के लोग देश के बड़े उद्योगपति हैं स्वतंत्रता सेनानी से लेकर सैन्य बलों में भी इसकी मौजूदगी रही है. और यही वजह है कि पारसियों को देश का हिस्सा माना गया है. पारसी समुदाय ने भारत को पहली स्टील मिल 1907 में जमशेद जी टाटा ने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी नाम से जमशेदपुर में स्थापित किया. भारत की पहली एयर लाइन एयर इंडिया भी टाटा की ही देन है उसके बाद भारत में पहला आलिशान और लग्जरी होटल ताज भी टाटा का ही है.
पारसी में शादी के नियम
पारसी समुदाय में शादी को लेकर काफी सख्त नियम हैं इनकी शादियों में दो चरण होते हैं पहले चरण में दूल्हा और दुल्हन अपने रिश्तेदारों के सामने एक मैरिज कॉन्ट्रेक्ट साइन करते हैं उसके बाद दावतों का सिलसिला शुरू होता है जिसे लोग अपने हैसियत के हिसाब से तीन से सात दिनों तक कर सकते हैं. पारसी अपने धर्म को लेकर काफी सख्त होते हैं इसलिए कोई भी लड़का या लड़की अपने धर्म से बाहर शादी करता है या करती है तो उसके लिए नियम काफी सख्त हो जाते हैं और उन्हें तुरंत धर्म से निकाल दिया जाता है सिर्फ धर्म से ही नहीं बल्कि और भी बहुत सी चीजों पर रोक लगा दी जाती हैं अगर कोई लड़की दूसरे धर्म के लड़के से शादी करती है तो वे अपने पिता की मौत पर दरमा जाकर प्रार्थना में शामिल नहीं हो सकती.
पारसियों में अंतिम संस्कार
पारसी लोगों में मौत के बाद का रीति रिवाज भी दूसरे धर्मो से बिल्कुल अगल है अगर पारसी समुदाय में किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव को टावर ऑफ साइलेंस यानि कि दरमा ले जाया जाता है. पारसियों में शव को जलाने और दफनाने का रिवाज नहीं है बल्कि शव को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर खुले में रख दिया जाता है उसके बाद प्रार्थना की जाती है प्रार्थना के बाद शव को खुले में गिद्ध और चील के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है. पारसी धर्म में किसी भी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करना माना गया है. पारसियों का मानना है कि मरने के बाद शरीर अशुद्ध हो जाता है पारसी में पृथ्वी, जल और अग्नि को काफी पवित्र माना गया है इसलिए शव को जलाना या दफनाना पारसी धर्म में गलत माना गया है . पारसियों का मानना है की शव को जलाने से अग्नि अपवित्र हो जाती है और शव को दफनाने से धरती प्रदूषित हो जाती है और पारसी शव को पानी में भी नहीं बहा सकते उनका मानना है कि जल तत्व दूषित होते हैं.
हिंदू धर्म अपना रहे हैं पारसी
जैसे जैसे इंसान तेजी से आगे बढ़ रहा है गिद्धों की संख्या कम होती जा रही है अब ऐसे में शवों को गिद्धों को खिलाने में दिक्कत आ रही है शहरों में तो गिद्ध अब ना के बराबर बचे हैं ऐसे में अब पारसी शवों को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर ना रख कर शवों को जलाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
पारसी इकलौता ऐसा समुदाय है जिसमें चाह के भी कोई पारसी नहीं बन सकता, पारसी समाज में आप धर्मांतरण नहीं कर सकते हैं ये लोग अपने धर्म को सबसे ऊपर रखते हैं इसलिए इनका धर्म किसी और धर्म को अपनाने की इजाजत नहीं देता.
पारसी समुदाय के बारे में हमारी ये जानकारी कैसी लगी आप भी कुछ कहना चाहते हैं तो हमें कमेंट कर के जरुर बताइए.