आज हम आपको Parshuram Jayanti – परशुराम जयंती के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.
परशुराम का जन्म त्रेता युग के एक महान ब्राह्मण ऋषि के यहां हुआ था, जो भगवान विष्णु के उन्नीसवें अवतार हैं, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि परशुराम का जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान स्वरुप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ था. ऐसा माना जाता है, कि यह भगवान विष्णु के अवशेषवतार थे, महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था, किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र फल स्वरुप प्रदान किया तब से उनका नाम परशुराम हो गया. हम आपको बता दें कि परशुराम का नाम राम उनके पिता महर्षि भृगु द्वारा रखा गया था. आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ. तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त करके विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु अस्त्र प्राप्त किया. शिव से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच तथा स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुआ था, साथ ही चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वरदान दिया था.
परशुराम के पिता का नाम, परिवार एवं कुल वंश
हम आपको बता दें कि परशुराम सप्तऋषि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे. ऋषि जमदग्नि के पिता का नाम ऋषि ऋचिका था. तथा हिंदू ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि ऋषि ऋचिका, प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे. ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था. और वह ऋचिका ऋषि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे. अपने पूर्वजों कि तरह ऋषि जमदग्नि भी युद्ध में एक योग्य योद्धा थे. जमदग्नि के 5 पुत्र थे वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम, परंतु इन पांचों पुत्रों में से परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में निपुण माने जाते थे. साथ ही हम आपको बता दें कि हिंदू ग्रंथों के अनुसार परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु माने जाते हैं.
महर्षि परशुराम जयंती 2023, 2024 और 2025
हम आपको बता दें कि महर्षि परशुराम जयंती परशुराम जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है, हिंदू परंपरा के अनुसार महर्षि परशुराम को विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. साथ ही हम आपको बता दें कि महर्षि परशुराम जयंती के दिन अवकाश होता है, वैसे तो ये अवकाश हिन्दू पंचांग पर आधारित होती है, परंतु ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार ये अप्रैल या मई के महीने में पड़ती है. अब हम आपको ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 2023, 2024 और 2025 तक की परशुराम जयंती को बताएंगे जो इस प्रकार हैं:-
साल तारीख दिन छुट्टियां
2023-22 अप्रैल शनिवार महर्षि परशुराम जयंती
2024-10 मई शुक्रवार महर्षि परशुराम जयंती
2025-29 अप्रैल मंगलवार महर्षि परशुराम जयंती
2026-19 अप्रैल रविवार महर्षि परशुराम जयंती
परशुराम जयंती का महत्व (Parshuram Jayanti Ka Mahatva)
हम आपको बता दें कि सनातन धर्म से ही परशुराम जयंती का अपना एक विशेष ही महत्व रहा है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले किसी भी पवित्र नदी में स्नान करके विधि विधान के अनुसार भगवान परशुराम की पूजा और अर्चना करनी चाहिए. ऐसा करने से से मनोवांछित फल प्राप्त होता है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. संतान प्राप्ति के लिए भी परशुराम जयंती को महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि परशुराम जयंती के दिन भूखों को भोजन देने से संतान प्राप्ति होती है.
परशुराम मंदिर (Parshuram Mandir)
हम आपको बता दें कि भारत में कई ऐसे स्थान हैं जहां परशुराम का मंदिर स्थित है. उनमें से कुछ स्थानों का नाम नीचे निम्न रूप में दिया गया है:-
- परशुराम मंदिर, अट्टिराला, जिला कुड्डापह ,आंध्रा प्रदेश.
- परशुराम मंदिर, सोहनाग, सलेमपुर, उत्तर प्रदेश.
- अखनूर, जम्मू और कश्मीर.
- कुंभलगढ़, राजस्थान.
- महुगढ़, महाराष्ट्र.
- परशुराम मंदिर, पीतमबरा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश.
- जनपव हिल, इंदौर मध्य प्रदेश (हिंदू पुराणों के अनुसार इसको परशुराम जी का जन्म स्थल भी माना जाता है).
परशुराम जी की मृत्यु कैसे हुई? (Parshuram Ji Ki Mrityu Kaise Hui)
हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वैदिक काल के अंत के दौरान परशुराम एक योद्धा से सन्यासी के रूप में परिवर्तित हो गए थे. उन्होने कई स्थानों में अपनी तपस्या प्रारम्भ की उन सभी स्थानों में से एक ही स्थान उड़ीसा के महेन्द्रगिरी में तो आज भी उनकी उपस्थिती मानी जाती है. पुराणों में प्रसिद्ध संत व्यास, कृपा, अश्वस्थामा के साथ साथ परशुराम को भी कलियुग में ऋषि के रूप में पूजा जाता है. उन्हें आंठवें मानवतारा के रूप में सप्तऋषि के रूप में गिना जाता है. हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वह अमर थे और उनकी मृत्यु कभी हुई ही नहीं.
आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Parshuram Jayanti – परशुराम जयंती की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.
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