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नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायिनी की पूजा, जानें विधि और पढ़ें ये आरती

नवरात्रों में मां के अलग – अलग रूपों की पूजा की जाती है. मां के अलग – अलग रूपों में छठा स्वरूप मां कात्यायनी का है. ऐसे मान्यता है कि मां की पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होती है. इसके लिया आपका सुचारू रूप से पूजा करना आवश्यक है. आपका कात्यायनी मां की आरती विधि, व्रत कथा और मंत्रों के बारे में जानना जरूरी है.

पूजा की विधि

सबसे पहले आपको सुबह- सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए. फिर इसके बाद कलश की पूजा करनी चाहिए. पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथ में एक फूल लेकर माता का ध्यान करना चाहिए. इसके बाद इसे मां को अर्पित कर देना चाहिए. फिर माता को कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि चढ़ाकर सोलह श्रृंगार की वस्तुएँ अर्पित करना चाहिए. आप चाहें तो मिठाई आदि का भोग लगा सकते हैं. फिर जल चढ़ाएं और दीपक और धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके बाद मां को उनका पसंदीदा भोग यानि शहद का लगाना चाहिए, इससे माता प्रसन्न हो जाती है. साथ ही दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अंत में आरती करें और गलती के लिए मां से क्षमा मांग ले.

माँ कात्यायनी मंत्र

स्वच्छ श्री त्रिनेत्रायै नमः

ॐ देवी कात्यायनायै नमः

इदं ते मुखं सौम्यं त्रिनेत्रविभूषितम्|

सर्वभयेभ्यः पातु नो कात्यायनी नमाम्यहम्

माँ कात्यायनी की छवि

शास्त्रों के अनुसार देवी मां का रूप सोने के समान चमकीला है. माता का वाहन सिंह है. माँ की 4 भुजाएँ हैं. एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल और अभय मुद्रा और अभयमुद्रा में दो हाथ.

माँ कात्यायनी की कथा

महर्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की कई वर्षों तक तपस्या की और मां कात्यायनि को बेटी के रूप में प्राप्त किया था. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ऋषि कात्यायन के घर उनका जन्म हुआ था, जिसके बाद ऋषि कात्यायन ने 3 दिन तक पूजा-अर्चना की. देवी का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ था, इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा गया. उस समय महिषासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा दिया था. सभी देवी-देवता गंभीर संकट में पड़ गए. माँ ने महिषासुर का वध किया. यहां शुंभ निशुंभ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण किया और इंद्र का सिंहासन छीन लिया. साथ ही नवग्रहों को बंधक बना लिया. जब अग्नि और वायु की शक्ति छीन ली गई, तो देवताओं ने देवी की शरण ली, तब देवी ने सभी राक्षसों का वध किया और महिषासुर के आतंक से सभी को मुक्ति दिलाई.

सम्बंधित : – व्रत में सोना चाहिए या नहीं ?

माँ कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी

जग्मता राज्ञी जगमाता की जय

बैजनाथ आपका स्थान है

तत्र त्वां आशीर्वादं ददाति नाम नाम उच्यते

अनेकानि नामानि, अनेकानि मन्दिराणि सन्ति

एतत् स्थानम् अपि आनन्ददायकम् अस्ति

प्रत्येकं मन्दिरे भवतः प्रकाशः

क्वचित् योगेश्वरी महिमा भिन्ना

सर्वत्र उत्सवाः भविष्यन्ति

कथ्यते यत् प्रत्येकं मन्दिरं भक्ताः सन्ति

कात्यायनी देहपालिका

ग्रन्थिः प्रलापभ्रमं दंशति

मिथ्यामायाओं से मुक्ति

तस्य नाम जपन्

गुरुवार को पूजा करें

कात्यायनी का ध्यान करें

प्रत्येकं संकटं पारयिष्यति

भण्डारा प्रचुरता भविष्यति

मातरं भक्तं यः कथयति

कात्यायनी सर्वदुःखानि दूरीकरोति

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पूजा की विधि

सबसे पहले आपको सुबह- सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए. फिर इसके बाद कलश की पूजा करनी चाहिए. पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथ में एक फूल लेकर माता का ध्यान करना चाहिए. इसके बाद इसे मां को अर्पित कर देना चाहिए. फिर माता को कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि चढ़ाकर सोलह श्रृंगार की वस्तुएँ अर्पित करना चाहिए. आप चाहें तो मिठाई आदि का भोग लगा सकते हैं. फिर जल चढ़ाएं और दीपक और धूप जलाकर मां के मंत्र का जाप करें. इसके बाद मां को उनका पसंदीदा भोग यानि शहद का लगाना चाहिए, इससे माता प्रसन्न हो जाती है. साथ ही दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अंत में आरती करें और गलती के लिए मां से क्षमा मांग ले.

माँ कात्यायनी मंत्र

स्वच्छ श्री त्रिनेत्रायै नमः

ॐ देवी कात्यायनायै नमः

इदं ते मुखं सौम्यं त्रिनेत्रविभूषितम्|

सर्वभयेभ्यः पातु नो कात्यायनी नमाम्यहम्

माँ कात्यायनी की छवि

शास्त्रों के अनुसार देवी मां का रूप सोने के समान चमकीला है. माता का वाहन सिंह है. माँ की 4 भुजाएँ हैं. एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल और अभय मुद्रा और अभयमुद्रा में दो हाथ.

माँ कात्यायनी की कथा

महर्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की कई वर्षों तक तपस्या की और मां कात्यायनि को बेटी के रूप में प्राप्त किया था. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ऋषि कात्यायन के घर उनका जन्म हुआ था, जिसके बाद ऋषि कात्यायन ने 3 दिन तक पूजा-अर्चना की. देवी का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में हुआ था, इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा गया. उस समय महिषासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा दिया था. सभी देवी-देवता गंभीर संकट में पड़ गए. माँ ने महिषासुर का वध किया. यहां शुंभ निशुंभ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण किया और इंद्र का सिंहासन छीन लिया. साथ ही नवग्रहों को बंधक बना लिया. जब अग्नि और वायु की शक्ति छीन ली गई, तो देवताओं ने देवी की शरण ली, तब देवी ने सभी राक्षसों का वध किया और महिषासुर के आतंक से सभी को मुक्ति दिलाई.

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माँ कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी

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अनेकानि नामानि, अनेकानि मन्दिराणि सन्ति

एतत् स्थानम् अपि आनन्ददायकम् अस्ति

प्रत्येकं मन्दिरे भवतः प्रकाशः

क्वचित् योगेश्वरी महिमा भिन्ना

सर्वत्र उत्सवाः भविष्यन्ति

कथ्यते यत् प्रत्येकं मन्दिरं भक्ताः सन्ति

कात्यायनी देहपालिका

ग्रन्थिः प्रलापभ्रमं दंशति

मिथ्यामायाओं से मुक्ति

तस्य नाम जपन्

गुरुवार को पूजा करें

कात्यायनी का ध्यान करें

प्रत्येकं संकटं पारयिष्यति

भण्डारा प्रचुरता भविष्यति

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