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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के जामनगर जिले के द्वारिका से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित है, भगवान महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 10 वे स्थान पर आता है, इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अभूतपूर्व है, यहाँ श्री द्वारकाधीश भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते थे, पुराणों के अनुसार भगवान शिव को नागों का देवता भी माना जाता है, भगवान शिव को नागेश्वर नाम से भी जाना जाता है, नागों के ईश्वर अर्थात नागेश्वर, नाग देवता हमेशा भगवान शिव के गले में हमेशा विराजमान रहते है, जो भक्त नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्रद्धापूर्वक दर्शन करता है, वह व्यक्ति अपने सारे पापों से मुक्ति पा लेता है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

प्राचीन काल की मान्यताओं के अनुसार एक धर्मात्मा और सदाचारी का सुप्रिय नामक वैश्य भगवान्‌ शिव का अनन्य भक्त था, वह प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा अर्चना और ध्यान करता था, तथा मन, वचन, कर्म से शिव भक्ति में ही तन्मय रहता था, उसी काल में एक दारुक नामक दुष्ट राक्षस रहता था, दारुक शिव भक्तों से चिड़ता था और ऊंट के पूजा में निरंतर बाधा पहुंचाता था, सुप्रिया के पूजा पाठ के कारण कई अन्य लोग भगवान की पूजा अर्चना करने लगे.

एक दिन दारुका राक्षस को पता चला कि सुप्रिय समुद्र में नाव पर सवार होकर अपने अन्य साथियो के साथ कहीं जा रही थी, तब उस अत्याचारी राक्षस से उन सभी पर आक्रमण कर दिया और सुप्रिया को पकड़कर अपने अन्य बंदियों के साथ कारागार में डाल दिया सुप्रिय कारागृह में भी शरीर पर भस्म, गले में रुद्राक्ष की माला डालकर भगवान शिव की पूजन और आराधना में रहती थी, इस कारण उनके साथी एवं कारागृह के अन्य बंदी भी शिवजी की आराधना के प्रति जागरूक होकर शिव जी की भक्ति करने लगे.

जब यह बात राक्षस दारूक को पता चली तो, वह क्रोध में तिलमिलाता हुआ कारागृह पंहुचा, उसने देखा कि कारागृह में सुप्रिय नेत्र बंद करके ध्यान लगाकर समाधि में बैठी है, उसने कठोर स्वर में कहा ‘अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहां कौन से उपद्रव और षड्यंत्र करने की बातें सोच रहा है, यह बात सुनकर सुप्रिया जरा भी विचलित नहीं हुई, तब दारुक ने क्रोध के वशीभूत होकर सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया, सुप्रिय अपने मन को एकाग्र करके अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान्‌ शिव से प्रार्थना करने लगा, अपने सच्चे भक्त की पूर्ण विश्वास से भरी प्रार्थना सुनकर भगवान्‌ शंकरजी तत्क्षण उस कारागृह में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, भगवान शिव ने पाशुपतास्त्र से दारुका और उसके सैनिकों के अस्त्र-शस्त्र को नष्ट कर उन सभी का वध कर दिया वैश्य सुप्रिय ने उस ज्योतिर्लिंग का विधिवत पूजन किया और शिवजी से इसी स्थान पर स्थित होने का आग्रह किया,भगवान शिव अपने भक्तों के इच्छा अनुसार उसी स्थान पर स्थापित हो गए, इस प्रकार ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाये और माता पार्वती भी ‘नागेश्वरी’ के नाम से विख्यात हुए हैं.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग अन्य जानकारी

स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार ने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के वर्तमान में मंदिर का पुनः निर्माण कराया था, उन्होंने इस जीर्णोद्धार का कार्य 1996 में शुरू करवाया पर उनकी हत्या हो जाने के कारण उनके परिवार ने इस मंदिर का कार्य पूरा करवाया था

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के समीप रुक्मिणी मंदिर, गोपी तालाब और बेट द्वारका आदि धार्मिक स्थल स्थित  है.

रोचक तथ्य

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