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प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

आज हम आपको मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय के बारे में बताने जा रहे हैं। कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें। और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे ।

मुंशी प्रेमचंद्र जी का जन्म सन 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था. उनका बचपन का नाम धनपतराय था. किंतु वह अपनी कहानियां उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखते थे. और हिंदी में मुंशी प्रेमचंद के नाम से, गरीब परिवार में जन्म लेने तथा अल्पआयु में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका बचपन अत्यधिक कष्ट में रहा. किंतु वह अपने साहस और परिश्रम से उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा. वह साधनहीन एवं कुशाग्रबुद्धि और परिश्रमी छात्रों के लिए प्रेरणादायक है.

प्रारंभ में ही कुछ वर्षों तक विद्यालय में अध्यापक के रूप में बच्चों को शिक्षा दिए. उसके बाद उनकी योग्यता को देखते हुए शिक्षा विभाग में उन्हें सब डिप्टी इंस्पेक्टर का पद दिए. और उसके कुछ दिनों बाद ही वह असहयोग आंदोलन से सहानुभूति रखने के कारण उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी को त्याग दिया और आजीवन साहित्य सेवा करने का फैसला किया. उन्होंने कई पत्रिका का संपादन भी किया. और उसके बाद उन्होंने स्वयं का एक पोस्ट ऑफिस खोला,  जिसमें पत्रिका का नाम “हंस” था. और उसके बाद ही सन 1936 में उनका देहांत हो गया.

साहित्यिक परिचय

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने लगभग एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानियों की रचना की है, उन्होंने माधुरी एवं मर्यादा नाम की पत्रिकाओं का संपादन किया. तथा हंस एवं जागरण नाम के पत्र भी लिखे. उनकी रचनाएं आदर्शों मुख्य यथार्थवादी थी, जिनमें सामान्य जीवन की वास्तविकता से संबंधित चित्रण किया गया था. समाज सुधार एवं राष्ट्रीयता उनकी रचनाओं के प्रमुख विषय रहे हैं.

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएं

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास जैसे ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’, ‘गगन’, ‘गोदान’ आदि थे. उनकी कहानियों का विशाल संग्रह आठ भागों में ‘मानसरोवर’ नाम से प्रकाशित है, जिसमें लगभग 300 से अधिक कहानियां संकलित की गई है. ‘करबला’, ‘संग्राम’ और ‘प्रेम की विधि’ उनके नाटक हैं. साहित्यिक निबंध कुछ विचार नाम से प्रकाशित है.उनकी कहानियों का अनुवाद संसार की अनेक भाषाओं में हुआ. जिनमें से ‘गोदान’ हिंदी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है जिसकी रचना मुंशी प्रेमचंद्र जी ने की थी.

मुंशी प्रेमचंद जी का कार्यक्षेत्र

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह माने जाते हैं। वैसे तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था, पर उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर 1915 में, ‘सौत’ नाम से प्रकाशित हुई, और 1936 में अंतिम कहानी ‘कफन’ नाम से प्रकाशित हुई। साथ ही बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। उनसे पहले हिंदी में काल्पनिक, एप्यारी और पौराणिक धार्मिक रचनाएँ ही की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरूआत की। भारतीय साहित्य का बहुत-सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा, चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य, उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’, ‘जमाना’ पत्रिका के दिसंबर 1910 में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई। कथा सम्राट प्रेमचंद का कहना था, कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई को नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है. यह बात उनके साहित्य में  प्रकाशित की गई। 1921 में उन्होंने महात्मा गाँधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने ‘मर्यादा’ पत्रिका का संपादन भार सँभाला, छह साल तक ‘माधुरी’ नामक पत्रिका का संपादन किया, 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्र ‘हंस’ शुरू किया, और 1932 के आरंभ में ‘जागरण’ नामक एक साप्ताहिक पत्र निकाला। और उन्होंने लखनऊ में 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की।

मुंशी प्रेमचंद्र जी की समालोचना

प्रेमचन्द उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे. और हिन्दी के महान लेखक बने। हिन्दी को अपना खास मुहावरा और खुलापन दिया। कहानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी परिवर्तन किए। उन्होने साहित्य में सामयिकता प्रबल आग्रह स्थापित किया। आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया और उसकी समस्याओं पर खुलकर कलम चलाते हुए उन्हें साहित्य के नायकों के पद पर बैठाया। मुंशी प्रेमचंद्र जी पहले अपने हिंदी साहित्य में राजा रानी के किस्से में अटके हुए थे, उन्होंने रहस्य और रोमांस में अपना कार्य उलझा लिया था. और प्रेमचंद्र जी ने साहित्य की सच्चाई को धरातल पर उतारने का निर्णय लिया, उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्न पर लिखा, और संप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमीदारी, खर्चखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद और आजीवनपर लेख लिखते ही रहे. मुंशी प्रेमचंद की अधिकतर रचनाएं उनकी ही गरीबी और दैन्यता की कहानी पर लिखी है। ये भी गलत नहीं है कि वे आम भारतीय रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वह नायक बने, उन्होंने सरल सहज और आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया. और अपने प्रगतिशील विचारों से दृढ़ता से देते हुए समाज के सामने उसे प्रकाशित किया। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए. उन्होंने कहा कि लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक हैं। उन्होंने हिन्दी कहानी में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की एक नई परंपरा शुरू की।

मुंशी प्रेमचंद्र की भाषा शैली

महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी की भाषा अत्यंत ही सहज, स्वाभाविक, व्यवहारिक एवं प्रभावशाली है. मुंशी प्रेमचंद्र जी पहले उर्दू के लेखक हुआ करते थे, और उर्दू से हिंदी भाषा में आने के कारण उनकी भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है. मुंशी प्रेमचंद्र जी की रचनाओं में लोकोक्तियां, मुहावरे एवं सुक्तियों के प्रयोग की बहुमूल्यता मिलती है.

साहित्य में स्थान

मुंशी प्रेमचंद्र जी का साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान है, मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का कार्य किया है. मुंशी प्रेमचंद्र जी ने हिंदी कथा साहित्य को एक नया मोड़ दिया. और साथ ही आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया. मुंशी प्रेमचंद्र अपनी रचनाओं में नायक हुए, और भारतीय समाज और अछूत को समझा.

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपने प्रगतिशील विचारों को तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया. उपन्यास के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जीत के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट के नाम से संबोधित किया. साथ ही मुंशी प्रेमचंद्र जी को रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए मंगल प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया.

मुंशी प्रेमचंद्र को प्राप्त सम्मान

1. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी के याद में भारतीय डाक तार विभाग द्वारा 30 पैसे मूल्य पर डाक टिकट जारी किया गया.

2. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र गोरखपुर की जिस स्कूल में पढ़ते थे, उस स्थान पर प्रेमचंद्र साहित्य संस्थान स्थापित किया गया.

3. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी.

मुंशी प्रेमचंद्र के उपन्यास

मुंशी प्रेमचंद्र जी के कई उपन्यास हैं, जिनमें से कुछ के नाम नीचे निम्नलिखित रुप में दिए गए हैं:-

1. सेवासदन

2. प्रेमाश्रम

3. रंगभूमि

4. निर्मला

5.कायाकल्प

6. गबन

7. कर्मभूमि

8. गोदान

9. मंगलसूत्र।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियां

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 118 कहानियों की रचना की गई आता है, जिनमें से उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम नीचे निम्नलिखित रुप में दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:-

1. दो बैलों की कथा

2. आत्माराम

3. आखिरी मंजिल

4. आखरी तोहफा

5. इज्जत का खून

6. ईदगाह

7.इस्तीफा

8. क्रिकेट मैच

9. कर्मों का फल

10. दूसरी शादी

11. दिल की रानी

12. नाग पूजा

13. निर्वाचन

14. पंच परमेश्वर

मुंशी प्रेमचंद्र की मृत्यु

सन 1936 में मुंशी प्रेमचंद्र जी का स्वास्थ्य खराब हुआ और वह बीमार रहने लगे. मुंशी प्रेमचंद्र जी बीमार रहते हुए भी अपने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में सहयोग दिए. आर्थिक कष्ट तथा अच्छे से इलाज ना कराए जाने की वजह से 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद देहांत हो गया.

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा। अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें ।

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प्रारंभ में ही कुछ वर्षों तक विद्यालय में अध्यापक के रूप में बच्चों को शिक्षा दिए. उसके बाद उनकी योग्यता को देखते हुए शिक्षा विभाग में उन्हें सब डिप्टी इंस्पेक्टर का पद दिए. और उसके कुछ दिनों बाद ही वह असहयोग आंदोलन से सहानुभूति रखने के कारण उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी को त्याग दिया और आजीवन साहित्य सेवा करने का फैसला किया. उन्होंने कई पत्रिका का संपादन भी किया. और उसके बाद उन्होंने स्वयं का एक पोस्ट ऑफिस खोला,  जिसमें पत्रिका का नाम "हंस" था. और उसके बाद ही सन 1936 में उनका देहांत हो गया.

साहित्यिक परिचय

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने लगभग एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानियों की रचना की है, उन्होंने माधुरी एवं मर्यादा नाम की पत्रिकाओं का संपादन किया. तथा हंस एवं जागरण नाम के पत्र भी लिखे. उनकी रचनाएं आदर्शों मुख्य यथार्थवादी थी, जिनमें सामान्य जीवन की वास्तविकता से संबंधित चित्रण किया गया था. समाज सुधार एवं राष्ट्रीयता उनकी रचनाओं के प्रमुख विषय रहे हैं.

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएं

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास जैसे 'सेवासदन', 'निर्मला', 'रंगभूमि', 'कर्मभूमि', 'गगन', 'गोदान' आदि थे. उनकी कहानियों का विशाल संग्रह आठ भागों में 'मानसरोवर' नाम से प्रकाशित है, जिसमें लगभग 300 से अधिक कहानियां संकलित की गई है. 'करबला', 'संग्राम' और 'प्रेम की विधि' उनके नाटक हैं. साहित्यिक निबंध कुछ विचार नाम से प्रकाशित है.उनकी कहानियों का अनुवाद संसार की अनेक भाषाओं में हुआ. जिनमें से 'गोदान' हिंदी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है जिसकी रचना मुंशी प्रेमचंद्र जी ने की थी.

मुंशी प्रेमचंद जी का कार्यक्षेत्र

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह माने जाते हैं। वैसे तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था, पर उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर 1915 में, ‘सौत’ नाम से प्रकाशित हुई, और 1936 में अंतिम कहानी ‘कफन’ नाम से प्रकाशित हुई। साथ ही बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। उनसे पहले हिंदी में काल्पनिक, एप्यारी और पौराणिक धार्मिक रचनाएँ ही की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरूआत की। भारतीय साहित्य का बहुत-सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा, चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य, उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’, ‘जमाना’ पत्रिका के दिसंबर 1910 में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई। कथा सम्राट प्रेमचंद का कहना था, कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई को नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है. यह बात उनके साहित्य में  प्रकाशित की गई। 1921 में उन्होंने महात्मा गाँधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने ‘मर्यादा’ पत्रिका का संपादन भार सँभाला, छह साल तक ‘माधुरी’ नामक पत्रिका का संपादन किया, 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्र ‘हंस’ शुरू किया, और 1932 के आरंभ में ‘जागरण’ नामक एक साप्ताहिक पत्र निकाला। और उन्होंने लखनऊ में 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की।

मुंशी प्रेमचंद्र जी की समालोचना

प्रेमचन्द उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे. और हिन्दी के महान लेखक बने। हिन्दी को अपना खास मुहावरा और खुलापन दिया। कहानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी परिवर्तन किए। उन्होने साहित्य में सामयिकता प्रबल आग्रह स्थापित किया। आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया और उसकी समस्याओं पर खुलकर कलम चलाते हुए उन्हें साहित्य के नायकों के पद पर बैठाया। मुंशी प्रेमचंद्र जी पहले अपने हिंदी साहित्य में राजा रानी के किस्से में अटके हुए थे, उन्होंने रहस्य और रोमांस में अपना कार्य उलझा लिया था. और प्रेमचंद्र जी ने साहित्य की सच्चाई को धरातल पर उतारने का निर्णय लिया, उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्न पर लिखा, और संप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमीदारी, खर्चखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद और आजीवनपर लेख लिखते ही रहे. मुंशी प्रेमचंद की अधिकतर रचनाएं उनकी ही गरीबी और दैन्यता की कहानी पर लिखी है। ये भी गलत नहीं है कि वे आम भारतीय रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वह नायक बने, उन्होंने सरल सहज और आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया. और अपने प्रगतिशील विचारों से दृढ़ता से देते हुए समाज के सामने उसे प्रकाशित किया। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए. उन्होंने कहा कि लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक हैं। उन्होंने हिन्दी कहानी में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की एक नई परंपरा शुरू की।

मुंशी प्रेमचंद्र की भाषा शैली

महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी की भाषा अत्यंत ही सहज, स्वाभाविक, व्यवहारिक एवं प्रभावशाली है. मुंशी प्रेमचंद्र जी पहले उर्दू के लेखक हुआ करते थे, और उर्दू से हिंदी भाषा में आने के कारण उनकी भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है. मुंशी प्रेमचंद्र जी की रचनाओं में लोकोक्तियां, मुहावरे एवं सुक्तियों के प्रयोग की बहुमूल्यता मिलती है.

साहित्य में स्थान

मुंशी प्रेमचंद्र जी का साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान है, मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का कार्य किया है. मुंशी प्रेमचंद्र जी ने हिंदी कथा साहित्य को एक नया मोड़ दिया. और साथ ही आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया. मुंशी प्रेमचंद्र अपनी रचनाओं में नायक हुए, और भारतीय समाज और अछूत को समझा.

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपने प्रगतिशील विचारों को तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया. उपन्यास के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जीत के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट के नाम से संबोधित किया. साथ ही मुंशी प्रेमचंद्र जी को रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए मंगल प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया.

मुंशी प्रेमचंद्र को प्राप्त सम्मान

1. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी के याद में भारतीय डाक तार विभाग द्वारा 30 पैसे मूल्य पर डाक टिकट जारी किया गया.

2. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र गोरखपुर की जिस स्कूल में पढ़ते थे, उस स्थान पर प्रेमचंद्र साहित्य संस्थान स्थापित किया गया.

3. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी.

मुंशी प्रेमचंद्र के उपन्यास

मुंशी प्रेमचंद्र जी के कई उपन्यास हैं, जिनमें से कुछ के नाम नीचे निम्नलिखित रुप में दिए गए हैं:-

1. सेवासदन

2. प्रेमाश्रम

3. रंगभूमि

4. निर्मला

5.कायाकल्प

6. गबन

7. कर्मभूमि

8. गोदान

9. मंगलसूत्र।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियां

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 118 कहानियों की रचना की गई आता है, जिनमें से उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम नीचे निम्नलिखित रुप में दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:-

1. दो बैलों की कथा

2. आत्माराम

3. आखिरी मंजिल

4. आखरी तोहफा

5. इज्जत का खून

6. ईदगाह

7.इस्तीफा

8. क्रिकेट मैच

9. कर्मों का फल

10. दूसरी शादी

11. दिल की रानी

12. नाग पूजा

13. निर्वाचन

14. पंच परमेश्वर

मुंशी प्रेमचंद्र की मृत्यु

सन 1936 में मुंशी प्रेमचंद्र जी का स्वास्थ्य खराब हुआ और वह बीमार रहने लगे. मुंशी प्रेमचंद्र जी बीमार रहते हुए भी अपने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में सहयोग दिए. आर्थिक कष्ट तथा अच्छे से इलाज ना कराए जाने की वजह से 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद देहांत हो गया.

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