आज हम आपको जानिए मोहनदास करमचंद गांधी की प्रेरक जीवनी के बारे में बताने जा रहे हैं। कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें। और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे।
गांधी जी की जन्म
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पास स्थित पोरबंदर क्षेत्र में हुआ था. गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में ही हुई. पोरबंदर में उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा ग्रहण की इसके बाद उन्होंने अपनी बची हुई पढ़ाई राजकोट में की. सन 1887 में राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आगे पढ़ाई करने के लिए भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन कुछ कारणों की वजह से और स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह वापस पोरबंदर चले गए. उसके बाद 4 सितंबर 1988 को लंदन के लिए निकल पड़े. लंदन जाने के बाद उन्होंने लंदन वेजीटेरियन सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसकी कार्यकारी सदस्य बन गए. साथ ही पत्रिका में लेखन करने लगे. सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए गांधी जी ने इंग्लैंड में पढ़ाई की पढ़ाई के समय उन्हें कई प्रकार के अपमान से सामना करना पड़ा. फिर भी वह अपने रास्ते अडिग रहें. सन 1888 से 1891 तब तक लंदन में रहकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की पढ़ाई के पूरी होने के बाद 1891 में उन्हें वापस पोरबंदर लौट गए.
महात्मा गांधी का जन्म स्थान और परिवार
महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था. गांधी जी का जन्म भारत के गुजरात राज्य के समीप पोरबंदर क्षेत्र में हुआ था. गांधी जी के पिता का नाम श्री करमचंद गांधी था. और गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था. और यह धार्मिक महिला थी. गांधीजी एक गुजराती फैमिली से संबंधित थे. गांधी जी के पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी था. और गांधी जी के चार बेटे भी थे. हरिलाल, रामदास, मणिलाल, देवदास.
गांधी जी की मृत्यु
मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली में स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गई थी. वह रोज शाम को वह ईश्वर से प्रार्थना करने जाया करते थे. तभी नाथूराम गोडसे उनके पैर छूने का अभिनय करते हुए उनके सामने गए, और उनपर बेरीटा पिस्तौल से 3 गोली उनके सीने पर मार दी. उस समय गांधी जी अनुचारों से गिरे हुए थे।
इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया। इन आठों लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगंबर बढ़ग, विनायक दामोदर सावरकर, में से दिगंबर बढ़ग के सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने से अदालत ने उन्हें मुक्त कर दिया। अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से तीन -गोपाल गोडसे,माधवलाल पहाबा और विष्णु रामकृष्ण को आजीवन कारावास हुआ. और- नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी के फंदे में चढ़ा दिया गया।
गांधी जी को मारने के लिए किए गए प्रयास
बिड़ला भवन में प्रार्थना सभा के दौरान गान्धी पर 10 दिन पहले भी हमला हुआ था। मदनलाल पाहवा नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने गान्धी को निशाना बनाकर बम फेंका था. लेकिन उस वक्त गान्धी बाल-बाल बच गए। बम सामने की दीवार पर फटा जिससे दीवार टूट गयी। गान्धी ने दिल्ली में अपना पहला आमरण अनशन शुरू किया था. जिसमें साम्प्रदायिक हिंसा को तत्काल समाप्त करने और पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिये कहा गया था। गान्धी को डर था, कि पाकिस्तान में अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और बढ़ जायेगा, तथा सीमा पर हिंसा फैल जायेगी। गान्धी की जिद को देखते हुए सरकार ने इस रकम का भुगतान कर दिया, लेकिन हिन्दू संगठनों को लगा, कि गान्धी मुसलमानों को खुश करने के लिये चाल चल रहे हैं। बम ब्लास्ट की इस घटना को गान्धी के इस फैसले से जोड़कर देखा गया. नाथूराम गोडसे इससे पहले भी बापू के हत्या की तीन बार (मई 1934 और सितम्बर 1944 में) कोशिश कर चुका था, लेकिन असफल होने पर वह अपने दोस्त नारायण आप्टे के साथ वापस बम्बई (मुंबई) चला गया। इन दोनों ने दत्तात्रय परचुरे और गंगाधर दंडवते के साथ मिलकर बैरेटा (Beretta) नामक पिस्टल खरीदी। असलहे के साथ ये दोनों 29 जनवरी 1948 को वापस दिल्ली आए और दिल्ली स्टेशन के रिटायरिंग रूम नम्बर 6 में रुके।
गांधीजी की सुरक्षा
गान्धी कहा करते थे कि उनकी जिन्दगी ईश्वर के हाथ में है और यदि उन्हें मरना हुआ तो कोई बचा नहीं सकता। उन्होंने एक बार कहा था-“जो खुद को बचाना चाहते हैं उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं है।” बिड़ला भवन के गेट पर एक पहरेदार जरूर रहता था जो कि इन्हें गृह मंत्री सरदार पटेल ने चौकीदार के रूप में रखा था, एक हेड कांस्टेबल और चार कांस्टेबलों की तैनाती के आदेश दिये थे। गान्धी की प्रार्थना के वक्त बिड़ला भवन में सादे कपड़ों में पुलिस तैनात रहती थी जो हर संदिग्ध व्यक्ति पर नजर रखती थी। हालांकि पुलिस ने सोचा कि एहतियात के तौर पर यदि प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने के लिए आने वाले लोगों की तलाशी लेकर उन्हें बिड़ला भवन के परिसर में घुसने की इजाजत दी जाये तो बेहतर रहेगा। लेकिन गान्धी को पुलिस का यह विचार पसन्द नहीं आया। पुलिस के डीआईजी पद के एक अफसर ने भी गान्धी से इस बारे में बात की और कहा कि उनकी जान को खतरा हो सकता है लेकिन गान्धी नहीं माने।
बापू की हत्या के बाद नन्दलाल मेहता द्वारा दर्ज़ एफआईआर के मुताबिक़ उनके मुख से निकला अन्तिम शब्द ‘हे राम’ था। लेकिन स्वतन्त्रता सेनानी और गान्धी के निजी सचिव के तौर पर काम कर चुके वी० कल्याणम् का दावा है कि यह बात सच नहीं है। उस घटना के वक़्त गान्धी के ठीक पीछे खड़े कल्याणम् ने कहा कि गोली लगने के बाद गान्धी के मुँह से एक भी शब्द निकलने का सवाल ही नहीं था। हालांकि गान्धी अक्सर कहा करते थे, कि जब वह मरेंगे तो उनके होठों पर राम का नाम ही होगा। यदि वह बीमार होते या बिस्तर पर होते तो उनके मुँह से जरूर ‘राम’ नाम निकलता। गान्धी की हत्या की जाँच के लिये गठित आयोग ने उस दिन राष्ट्रपिता के सबसे करीबी लोगों से पूछताछ नहीं की। यह दुनिया भर में मशहूर हो गया. कि गान्धी के मुँह से निकले आखिरी शब्द ‘हे राम’ थे। लेकिन इसे कभी साबित नहीं किया, जा सका इस बात की भी कोई जानकारी नहीं मिलती कि गोली लगने के बावजूद उन्हें अस्पताल ले जाने के बजाय बिरला हाउस में ही वापस क्यों ले जाया गया.
ऐसा भी माना जाता है कि महात्मा गांधी की एक पारिवारिक मित्र मंडली थी जो उनकी अस्थियां लगभग 62 साल तक छुपा के एक जगह पर रख दी थी, जिसे 30 जनवरी 2010 को डरबन के समुद्र में प्रवाहित कर दिया गया था।
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