हिंदू धर्म में महालक्ष्मी के व्रत का विशेष महत्व होता है, महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन होता है. महालक्ष्मी के इस व्रत को गज लक्ष्मी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, यह व्रत 16 दिन का होता है, और इस व्रत का समापन पितृपक्ष में होता है. महालक्ष्मी के इस व्रत को करने से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से महालक्ष्मी अखंड सौभाग्य होने का वरदान प्राप्त देती हैं.
Mahalaxmi Vrat 2022 कब होगा अंतिम व्रत
महालक्ष्मी का यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को शुरू होगा, यथार्थ यह शुभ व्रत 3 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. 16 दिन तक चलने वाले इस पवित्र व्रत का समापन अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होगा, यथार्थ 17 सितंबर 2022 को.
महालक्ष्मी व्रत 2022 का शुभ मुहूर्त
महालक्ष्मी के इस पवित्र व्रत का प्रारंभ 3 सितंबर 2022 को दोपहर 12 बजकर 28 मिनट पर होगा. और इसका समापन 4 सितम्बर 2022, सुबह 10 बजकर 39 पर होगा.
महालक्ष्मी व्रत महत्व
महालक्ष्मी व्रत के महत्व के बारे में स्वयं श्रीकृष्ण ने पुराण में बताया है, कि जब चौपड़ के खेल में पांडव कौरवों से हार गए थे. तो उन्हें अपना सब कुछ गंवाना पड़ा था. आर्थिक संकट होने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से धन प्राप्ति का उपाय पूछा तो भगवान कृष्ण ने उन्हें महालक्ष्मी की उपासना करने की सलाह दी. ऐसा माना जाता है, कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं, और आर्थिक संकट दूर होता है. और मां लक्ष्मी स्वयं आपके समृद्धि में बढ़ोत्तरी का वरदान भी प्रदान करती हैं.
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महालक्ष्मी व्रत की पूजन विधि
महालक्ष्मी के इस व्रत को करते समय महालक्ष्मी के धन लक्ष्मी स्वरूप और संतान लक्ष्मी स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. महालक्ष्मी की पूजा करने के लिए जिस स्थान पर पूजा करना है, उस स्थान पर हल्दी का कमल बनाएं. और फिर उस स्थान पर मां लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें, पूजा सामग्री में ध्यान से श्रीयंत्र अवश्य रखें. क्योंकि यह महालक्ष्मी का प्रिय यंत्र होता है. साथ ही पूजा सामग्री में सोने चांदी के सिक्के और फल-फूल रखें. एक स्वच्छ कलश को पूजा के स्थान पर रखें जिसमें शुद्ध जल भरे. इस कलश में पान का पत्ता भी डाल दें, और फिर उस पर नारियल रखें. मां लक्ष्मी की रोज इसी पूजा स्थान पर फल, पुष्प, अक्षत से पूजा करें. और फिर अंतिम दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का उद्यापन करें.