मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क से एक खुशखबरी आ रही है. नामीबिया से लाई गई मादा चीता के गर्भवती होने की खबर आ रही है इस फीमेल चीते का नाम आशा है और आशा ने अब चीतों का कुनबा बढ़ाने की एक आशा जगा दी है. इस मादा चीता को आशा नाम पीएम नरेंद्र मोदी ने दिया है. चीतों की देखभाल करने वालों के मुताबिक अभी ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि आशा गर्भवती है, लेकिन इस महीने के अंत तक इसकी पुष्टि हो जाएगी आम तौर पर इसकी पुष्टि में 55 दिन का वक्त लगता है. इस संदर्भ में चीतों का संरक्षण कर रहे कुछ अधिकारियों का कहना है की आशा पहले नामीबिया के जंगलों में थी वहां उसके गर्भवती होने की संभावना है आशा पहली बार शावकों को जन्म देगी. अब उसे शांत वातावरण की जरूरत है उसके लिए एक अलग बाड़ बनाने की आवश्यकता है. फिलहाल इस उद्यान में सभी 8 चीते अच्छी हालत में हैं भैंस के मांस का भोजन कर रहे हैं और अपने बाड़ों में मौज मस्ती कर रहे हैं.
आशा में गर्भवती होने के सारे लक्षण
कूनो में चीता योजना का बारीकी से निरीक्षण कर रहे अधिकारियों ने बताया कि आशा में गर्भवती होने के सारे लक्षण नजर आ रहे हैं उसके शारीरिक, व्यवहारिक और हार्मोनल बदलाव से उसके प्रेग्नेंट होने के संकेत मिल रहे हैं हालांकि इसे सुनिश्चित करने के लिए अक्टूबर के आखिर तक का इंतजार करना होगा.
अगर आशा शावक को जन्म देती है तो उसके देखभाल में बहुत सावधानी बरती होगी क्योंकि जन्म के समय चीतों के शावकों का वजन 250 से लेकर 450 ग्राम तक होता है. इसमें 80 प्रतिशत शावक थोड़ी सी भी परवाही होने पर अपनी आन गवां देते हैं अगर आशा 4 शावकों को जन्म देती है और उसमें से 2 शावक भी बचते हैं तो इसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी.
70 साल बाद नामीबिया से लाए गए चीते
भारत में पूरे 70 साल बाद नामीबिया से कुल 8 चीते लाएं गए जिसमें मादा चीता आशा भी शामिल है. 17 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने जन्म दिन के अवसर पर खुद मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 8 चीतों को रिहा किया था. 16 सितंबर को भारत से एक जंबो जेट नामीबिया चीतों को लाने पहुंचा था और 17 सितंबर को 16 घंटों की उड़ान भर के यह विमान भारत पहुंचा विमान में बड़ी ही सावधानी से पिंजरों में रखकर चीतों को भारत तक लाया गया विमान में वेटनरी डॉक्टर भी मौजूद थें.
कैसे शुरू हुई चीतों को लाने की पहल
दरअसल केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के निर्देश पर साल 2010 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ने भारत में चीता पुनर्स्थापना के लिए कई क्षेत्रों का दौरा किया था जिसमें से मध्य प्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान चीतों के लिए सबसे उत्तम पाया गया. इसके बाद भारत में फिर से चीतों को बसाने की पहल शुरू की गई इसी के तहत सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में प्रोजेक्ट चीता को पायलट प्रोग्राम के तौर पर मंजूरी दी. उसके बाद भारत और नामीबिया के बीच चीतों के संरक्षण को लेकर MOU साइन किया गया.
क्यों नामीबिया से लाने पड़े चीते
आखिर क्यों नामीबिया से चीतों को लाने की जरूरत पड़ गई क्या इतने विशाल देश भारत में चीते नहीं थे तो आपको बता दें ऐसा नहीं है वर्तमान समय में पूरे विश्व में सिर्फ 7,000 के लगभग चीते हैं. भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था बता दें कोरिया ज़िला छत्तीसगढ़ के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 73 साल पहले एक व्यस्क चीता और दो शावकों का शिकार किया था इसकी तस्वीर उन्होंने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को भेजी थी और चीतों के साथ ये तस्वीर भारत के इतिहास में आखिरी मानी गई . और 1952 में भारत सरकार ने भारत से चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया.
बहरहाल अब भारत सरकार द्वार एक बार फिर भारत में चीतों की संख्या में इजाफा करने के लिए एक सराहनीय कदम उठाया गया है. अब ऐसे में मादा आशा अगर शावकों को जन्म देती हैं तो चीतों की संख्या में इजाफा होगा जो काफी खुशी के बात होगी.
चीतों को देखने का मौका आम लोगों को कब मिलेगा
इसमें कोई दो राय नहीं की लोग मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो नेशनल पार्क में रह रहे इन 8 चीतों को देखने के लिए बेताब हैं, लेकिन इसके लिए आम लोगों को अभी कुछ महीनों का इंतजार करना होगा. ये चीते हजारों किलोमीटर का सफर तय करके नई जगह पर आए हैं. ऐसे में इन चीतों को कूनो नेशनल पार्क को अच्छे से समझने और इसे अपना घर समझने में वक्त लग सकता है. जब ये चीते कूनो नेशनल पार्क के माहौल में अच्छी तरह से ढल जाएंगे उसके बाद से देश-विदेश के आम लोग यहां आकर चीतों को देख पाएंगे.