जब भी किसी राज्य में शोक की घोषणा होती है तो उस राज्य को राजकीय शोक कहा जाता है. राजकीय शोक घोषित करने का कोई निश्चित समय नहीं होता है. यह दिन राज्य सरकार अपनी सुविधा के अनुसार तय करती है. उदाहरण के लिए, मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद तीन दिन का राजकीय शोक है, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु के सात दिन था. राज्य सरकार ने लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राजकीय शोक की घोषणा की है.
राजकीय शोक का ऐलान इनके द्वारा होता है
पुराने नियमों के अनुसार, पहले यह घोषणा केंद्र सरकार की सलाह पर ही राष्ट्रपति कर सकते थे, लेकिन अब बदले हुए नियमों के मुताबिक यह अधिकार भी राज्यों को दे दिया गया है. अब राज्य खुद निर्धारित कर सकते हैं कि किसे राजकीय सम्मान देना है. कभी-कभी राज्य और केंद्र सरकारें अलग-अलग राजकीय शोक घोषित करती हैं.
सार्वजनिक अवकाश को किया समाप्त
केंद्र सरकार की 1997 की अधिसूचना में कहा गया है कि राजकीय अंतिम संस्कार के दौरान कोई सार्वजनिक अवकाश आवश्यक नहीं है. इस अवधि के दौरान जरूरी सार्वजनिक अवकाश को समाप्त कर दिया गया है. अब केवल इसी स्थिति में अवकाश घोषित किया जाता है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए हो जाती है, लेकिन अक्सर वरिष्ठ नेताओं की मृत्यु के बाद भी सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है जो कार्यालय में नहीं होते हैं.
राजकीय शोक ऐसे घोषित होता है
राजकीय शोक के दौरान भारतीय ध्वज संहिता के नियमों के अनुसार विधान सभा, सचिवालय सहित महत्वपूर्ण कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहता है. इसके अलावा, राज्य में कोई औपचारिक और आधिकारिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता है और इस अवधि के दौरान समारोह और आधिकारिक मनोरंजन पर प्रतिबंध है. राजकीय शोक का एक महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय शोक भी राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार है. हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रीय या राजकीय शोक घोषित किया जाए. शहीदों का अंतिम संस्कार भी राजकीय सम्मान के साथ किया जाता है, लेकिन ऐसे अवसरों पर राजकीय शोक घोषित नहीं किया जाता है.
पहला राजकीय शोक हुआ था घोषित
भारत में शुरुआत में राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर ही ‘राष्ट्रीय शोक’ घोषित किया गया था. हालांकि, महात्मा गांधी की हत्या के बाद भारत में पहला राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था. जैसे- जैसे समय बीतता गया समय के साथ इस नियम में कई बदलाव भी किए गए. अब अन्य बड़े नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों के मामले में भी केंद्र विशेष निर्देश जारी कर राष्ट्रीय शोक घोषित कर सकता है. इसके साथ ही देश में किसी भी बड़ी आपदा की घड़ी में भी ‘राष्ट्रीय शोक’ घोषित किया जा सकता है.