त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर जिले में स्थित है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है, इस शक्तिपीठ को देवी तालाब मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह मंदिर एक पवित्र तलाव के बीच में स्थित है, इस स्थान पर देवी सती के छाती का हिस्सा गिरा था, इस शक्तिपीठ को स्तनपीठ के नाम से भी जानते हैं.
किस प्रकार हुआ इस शक्तिपीठ का निर्माण
महादेव की पत्नी देवी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई, जब सब शिवजी को यह सब पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया, बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे, जिस स्थान पर माता सती के अंग और आभूषण गिरे थे वह स्थान शक्तिपीठों में निर्मित हो गए, यदि पौराणिक कथाओं की मानें तो उनके अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जिसे भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें से 51 शक्तिपीठों का ज्यादा महत्व माना गया है.
त्रिपुरमालिनी
देवी भागवत पुराण में सभी शक्तिपीठों के बारे में बताया गया है, पंजाब के जालंधर में उत्तर में छावनी स्टेशन से मात्र 1 किलोमीटर दूर देवी तलाब जहां माता का बायां वक्ष गिरा था, इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी और शिव या भैरव को भीषण कहा जाता है, इस शक्तिपीठ की ख्याति देवी तालाब मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है, यह मंदिर एक तालाब के बीचो बीच स्थित है, इसे ‘स्तनपीठ’ एवं ‘त्रिगर्त तीर्थ’ भी कहा जाता है, प्राचीन जालंधर से त्रिगर्त प्रदेश, जिसमें ‘कांगड़ा शक्ति त्रिकोणपीठ’ की तीन जाग्रत देवियां- ‘चिन्तापूर्णी’, ‘ज्वालामुखी’ तथा ‘सिद्धमाता विद्येश्वरी’ विराजमान है, यहां की अधिष्ठात्री देवी त्रिशक्ति काली, तारा व त्रिपुरा हैं, फिर भी स्तनपीठाधीश्वरी श्रीव्रजेश्वरी ही मुख्य देवी मानी जाती है जिन्हें विद्याराजी के नाम से भी जानते हैं, वशिष्ठ, व्यास, मनु, जमदग्नि, परशुराम आदि महर्षियों ने इस स्थान पर आकर पूजा आराधना करते थे, इसके अलावा एक बार भगवान शिव ने जालंधर नाम के राक्षस का वध भी किया था, उसी समय से इस जगह का नाम जालंधर रखा गया.
इस मंदिर का शिखर सोने का बनाया गया है, देवी के धातु से बने मुख के दर्शन भक्तों को कराए जाते हैं, मुख्यता देवी के मंदिर में तीन मूर्तियां हैं, इन तीनों मूर्तियों में देवी भगवती के साथ देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती भी विराजमान है, परिक्रमापथ परिसर की लंबाई करीब 400 मीटर है, समय-समय पर मंदिर परिसर में मां के जगराते और नवरात्रों में बड़ी भीड़ रहती है,और यहां एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है.