आज हम आपको Gama Pehlwan – गामा पहलवान के बारे में बताने जा रहे हैं. कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें. और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे.
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो गामा पहलवान को नहीं जानता होगा, चाहे कुश्ती हो या पहलवानी दोनों में ही गामा पहलवान का नाम पहले आता है. गामा पहलवान का वास्तविक नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था. गामा पहलवान भारत के एक ऐसे पहलवान थे. जिन्होंने अपने पूरे जीवन काल में कभी कोई कुश्ती नहीं हारे थे.कहा जाता है, कि मार्शल आर्ट ब्रूसली भी गामा पहलवान को अपना प्रेरणास्रोत और आदर्श मानते थे. गामा पहलवान को रुस्तम-ए-हिंद (भारत चैंपियन) और रुस्तम-ए-ज़माना (विश्व चैंपियन) के नाम से भी जाना जाता है.अपने 50 साल के करियर में गामा पहलवान अजेय रहे है. वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक माने जाते थे. 1947 में भारत के विभाजन के बाद वह पाकिस्तान के नवगठित राज्य चले गए.
गामा पहलवान का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Gama Pehlwan ka janm aur prarambhik jiwan)
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) का जन्म 22 मई 1878 में अमृतसर के जब्बोवाल गाँव के एक कश्मीरी गुर्जर परिवार में हुआ था. गामा पहलवान के पिता का नाम मुहम्मद अजीज था. यह भी एक मशहूर पहलवानों में से एक थे. यह पंजाब के एक ऐसे कुश्ती परिवार में आते थे. जो विश्व स्तरीय पहलवानों को पैदा करने के लिए जाने जाते थे. इतिहासकारों के द्वारा बख्श परिवार को कश्मीरी ब्राह्मण (बुट्टा) भी माना जाता है, जो कश्मीर में मुस्लिम शासन के दौरान इस्लाम में परिवर्तित कर दिए गए थे.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) की शादी, पत्नी और बच्चे (Gama Pehlwan ki shadi , patni aur bacche)
गामा पहलवान अपने जीवन काल में दो बार शादियां की थी, इनकी पहली पत्नी का नाम वजीर बेगम था. वजीर बेगम के अलावा भी गामा पहलवान की एक और पत्नी थी. गामा पहलवान की एक पत्नी पाकिस्तान में और दूसरी बड़ोदा गुजरात में रहती थी. गामा पहलवान के पांच बेटियां और चार बेटे थे. और उनकी पोती कलसूम नवाज, नवाज शरीफ की बेगम है. कलसूम की बहन सायरा बानो गामा पहलवान की पोती भी है. और झारा पहलवान की पत्नी हैं.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) के कुश्ती करियर की शुरुआत (Gama Pehlwan ki kushti ki shuruaat)
जब गामा छः साल के थे. तो उनके पिता मौहम्मद अज़ीज़ बख्श का निधन हो गया. उसके बाद उनके नानाजी नुन पहलवान ने उनका पालन – पोषण किया. बाद में नुन पहलवान के निधन के बाद उनके मामाजी इड़ा पहलवान जो एक अन्य पहलवान थे, उन्होंने गामा का पालन पोषण एक पहलवान की तरह किया, और गामा को कुश्ती में अपना पहला प्रशिक्षण दिया था. और उनकी ही देखरेख में गामा ने पहलवानी की शिक्षा प्रारंभ की थी. गामा ने अपने पहलवानी करियर के शुरुआत महज़ 10 वर्ष की आयु से की थी. सन 1888 में जब जोधपुर में भारतवर्ष के बड़े-बड़े नामी पहलवानों को बुलाया जा रहा था, तब उनमें से एक नाम गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) का भी था. यह प्रतियोगिता अत्याधिक थकाने वाले व्यायाम की थी. जिसमें लगभग 450 पहलवानों ने हिस्सा लिया था. और 450 पहलवानों के बीच 10 वर्ष के गामा पहलवान प्रथम 15 में आए थे. इसी कारण जोधपुर के महाराज ने उस प्रतियोगिता का विजेता गामा पहलवान को घोषित कर दिया, इसके बाद में दतिया के महाराज ने गामा पहलवान का पालन पोषण किया.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) की शिक्षा व खुराक (Gama Pehalwan ki shiksha aur khurak)
कुश्ती हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है, इस संपूर्ण काया में आने के लिए एक अच्छी तरह से अनुशासित दिनचर्या की आवश्यकता होती है, और जब आहार की बात आती है, तो व्यक्ति को अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है. गामा पहलवान ने अपने आहार के मामले में अपने लिए एक खास जगह बनाई है. गामा पहलवान की डाइट ऐसी थी. जिसे सुनकर आपको यकीन नहीं होगा. सूत्रों के अनुसार उनके दैनिक आहार में 2 गैलन (7.5 लीटर) दूध, 6 देसी मुर्गियां और एक पाउंड से अधिक कुचले हुए बादाम के पेस्ट को टॉनिक पेय में शामिल किया गया था. गामा रोज़ तीस से पैंतालीस मिनट में, सौ किलो कि हस्ली पहन कर पाँच हजार बैठक लगाते थे, और उसी हस्ली को पहन कर उतने ही समय में तीन हजार दंड लगाते थे । वे रोज़
- डेढ़ पौंड बादाम मिश्रण (बादाम पेस्ट)
- दस लीटर दूध
- मौसमी फलों के तीन टोकरे
- आधा लीटर घी
- दो देसी मटन
- छः देसी चिकन
- छः पौंड मक्खन
- फलों का रस
एवं अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ अपनी प्रतिदिन कि खुराक के रुप में लिया करते थे.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) का वर्कआउट रूटीन –
एक अच्छे शरीर के निर्माण के लिए संतुलित और उचित डाइट बहुत जरूरी होता है. गामा पहलवान अपने दैनिक कसरत के प्रति बहुत सख्त थे.यह उनके वर्कआउट में उनके अथक प्रयासों के कारण ही वे दुनिया के महान पहलवानों में से एक बन गए.एक रिपोर्ट के मुताबिक, गामा पहलवान रोजाना ट्रेनिंग के दौरान कोर्ट में अपने 40 साथी पहलवानों से भिड़ जाया करते थे. गामा रोज़ तीस से पैंतालीस मिनट में, सौ किलो कि हस्ली पहन कर पाँच हजार बैठक लगाते थे, और उसी हस्ली को पहन कर उतने ही समय में तीन हजार दंड लगाते थे. गामा पहलवान 95 किलो डोनट के आकार की व्यायाम डिस्क के साथ स्क्वाट किया करते थे. डिस्क को अब पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) की लाइफ का टर्निंग पॉइंट (Gama Pehlwan ki life ka turning point)
गामा पहलवान के करियर की असली शुरुआत 1895 से हुई जब कश्मीर में रहने वाले गुजरांवाला के नामचीन पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला से उनका सामना हुआ था. इस चुनौती की सबसे बड़ी विशेषता यह थी, कि एक तरफ रहीम बख्श सुल्तानीवाला जोकि एक अधेड़ उम्र का पहलवान था. जिसकी लंबाई तकरीबन 7 फीट थी. और दूसरी ओर गामा पहलवान जिनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी, और ऊंचाई 5 फुट 7 इंच थी.शुरुआत में तो गामा पहलवान रक्षणार्थ लड़ते रहे, लेकिन दूसरी पाली में आक्रमणकारी हो गए. दोनों पहलवानों के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ. लेकिन इसी बीच गामा पहलवान की नाक, मुंह और सिर से खून बहने लगा. फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी, और वे लगातार रहीम बख्श सुल्तानी से लड़ते रहे, आखिर में यह मुकाबला बराबरी पर रोक दिया गया. परंतु इसी द्वंद्व से गामा पहलवान का नाम पूरे देश में विख्यात हो गया था. सन 1910 तक में रहीम बख्श सुल्तानी वाला को छोड़कर, गामा पहलवान ने उन सभी प्रमुख भारतीय पहलवानों को हराया था. जिन्होंने उनका सामना किया, अपनी घरेलू सफलताओं के बाद, गामा ने अपना ध्यान बाकी दुनिया पर केंद्रित करना शुरू कर दिया.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) की चुनौती (Gama Pehlwan ki chunauti)
लंदन में होने वाले टूर्नामेंट से पहले गामा पहलवान को केवल यह कहकर मना कर दिया, कि उनकी लंबाई बहुत छोटी है. इस पर गामा पहलवान ने यह घोषणा कर दी वे केवल आधे घंटे के अंदर ही किन्ही तीन पहलवानों को जो कि किसी भी भार-वर्ग के हो, उन्हें हरा कर अखाड़े से फेंक सकते हैं. शुरू में तो सबको यही लगा कि यह एक मजाक है, और काफी समय तक कोई पहलवान सामने नहीं आया, परंतु बाद में गामा पहलवान ने एक और शर्त रखी जिसमें उन्होंने फ्रैंक गॉच और स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को को चुनौती दे दी, कि वे या तो उन्हें इस द्वंद्व में हरा देंगे या फिर स्वयं हारकर उन्हें इनाम की राशि देकर वापस घर चले जाएंगे. इस पर सबसे पहले बेंजामिन रोलर नामक अमेरिकी पहलवान ने उनकी चुनौती स्वीकार किया परंतु गामा पहलवान ने पहली पाली में ही अमेरिकी पहलवान बेंजामिन रोलर को 1 मिनट 40 सेकंड में ही धरती में पटक दिया, और दूसरी पाली में 9 मिनट 10 सेकंड में ही उसे पराजित कर दिया. अगले दिन गामा पहलवान ने 12 पहलवान को हराकर लंदन में होने वाले टूर्नामेंट में प्रवेश लिया.
गामा पहलवान (ग़ुलाम मुहम्मद बख्श) और विश्व चैंपियन जॉन बुल की कुश्ती प्रतियोगिता (Gama Pehlwan aur vishwa champion john bull ki kushti pratiyogita)
10 सितंबर 1910 को, लंदन के ‘जॉन बुल बैल्ट’ विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में गामा पहलवान ने विश्व चैंपियन ‘स्टेनिस्लस ज़िबेस्को’ से मुकाबला किया. कुश्ती मैच का पुरस्कार £250 (₹22000) था. लगभग तीन घंटों तक कुश्ती होने के बाद ज़िबेस्को और गामा के बीच यह मुकाबल बराबरी का रह गया. और जब दूसरे दिन ज़िबेस्को और गामा पहलवान के बीच मुकाबला होने वाला था, तो ज़िबेस्को गामा पहलवान के डर के वजह से मैदान में ही नहीं आया, तब गामा पहलवान को विजेता घोषित कर दिया गया. 1927 तक गामा पहलवान का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी. लेकिन जल्द ही यह घोषणा की गई कि गामा पहलवान और स्टेनिस्लस ज़िबेस्को के बीच फिर से मुकाबला होगा. जनवरी 1928 में पटियाला में हुए मुकाबले में गामा पहलवान ने 1 मिनट के अंदर ही स्टेनिस्लस ज़िबेस्को को हराकर विश्व कुश्ती चैंपियन बन गए. मुकाबले के बाद ज़िबेस्को ने गामा पहलवान को बाघ के नाम से कहा, तब से गामा पहलवान को भाग का टाइटल मिल गया.
गामा पहलवान के द्वारा बनाया गया रिकॉर्ड (Gama Pehlwan ke dwara banaya gaya records)
कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए गामा पहलवान ने बड़ौदा (वडोदरा ) राज्य के दौरे में 1200 किलोग्राम से भी अधिक भजन वाले पत्थर को उठाए थे. आज भी उस पत्थर को बड़ौदा राज्य के संग्रहालय में रखा गया है.
गामा पहलवान के कुश्ती के अंतिम चरण की शुरुआत (Gama Pehlwan ki kushti ka antim charan ki suruat)
गामा पहलवान ने अपने करियर की आखिरी कुश्ती फरवरी 1929 में जेसी पीटरसन के साथ लड़ी थी. इस मुकाबले में गामा पहलवान ने मात्र डेढ़ मिनट में ही जेसी पीटरसन को हराकर विजेता बन गए थे. सन 1940 में हैदराबाद के निजाम के निमंत्रण में गामा पहलवान ने सभी लड़ाकों को हरा दिया. उसके बाद निजाम ने उन्हें पहलवान बलराम हीरामन सिंह यादव से लड़ने के लिए चुनौती दिया. कभी ना हारने वाले गामा पहलवान ने पहलवान बलराम हीरामन सिंह यादव को नहीं हरा पाए, यह मुकाबला बराबरी का था.
गामा पहलवान की सेवानिवृत्ति (Gama Pehlwan ki seva nivrutti)
1952 में गामा पहलवान की रिटायरमेंट तक गामा के टक्कर का कोई भी पहलवान नहीं मिला, गामा पहलवान अपनी सेवानिवृत्ति के बाद अपने भतीजे भोलू पहलवान को पहलवानी के लिए प्रशिक्षित किया. जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक पाकिस्तान कुश्ती चैंपियन को आयोजित किया.
गामा पहलवान की मृत्यु (Gama Pehlwan ki mrityu)
गामा पहलवान को अपने अंतिम दिनों में पुरानी बीमारियों का सामना करना पड़ा. साथ ही उनको अपना इलाज कराने के लिए बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा, उनकी सहायता करने के लिए, उद्योगपति और कुश्ती प्रशंसक जीडी बिड़ला ने ₹2,000 और ₹300 की मासिक पेंशन का दान दिया. साथ ही पाकिस्तान सरकार ने भी गामा पहलवान की मृत्यु तक उनके चिकित्सा का खर्चा उठाया.
गामा पहलवान के बारे में मुख्य तथ्य (Gama Pehalwan ke bare mein aur bhi jankari)
नाम ( Name) | गुलाम हुसैन बख्श बट |
निक नेम (Nick Name ) | रुस्तम-ए-हिंद, रुस्तम-ए-जमां, द ग्रेट गामा |
अखाड़ा में नाम (Ring Name) | गामा पहलवान |
जन्म (Birth) | 22 मई 1878 |
उम्र (Age) | 82 साल (मर्त्यु के समय ) |
जन्म स्थान (Birth Place) | गांव जब्बोवाल अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु तिथि (Date of Death ) | 23 मई 1960 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | दिल की और अस्थमा की पुरानी बीमारी के कारण |
गृहनगर (Hometown) | अमृतसर, पंजाब, भारत |
राशि (Zodiac Sig) | मिथुन राशि |
नागरिकता(Nationality) | भारतीय |
धर्म (Religion) | इस्लाम |
जाति (Cast ) | कश्मीरी |
शारीरिक माप (Body Measurements) | छाती: 46 इंचकमर: 34 इंचबाजु : 22 इंच |
वजन (Weight ) | 110 कि० ग्रा० |
कद (Height) | 5 फुट 8 इंच |
आंखों का रंग (Eye Colour) | काला |
बालों का रंग (Hair Colour) | काला |
पेशा (Profession) | पूर्व भारतीय पहलवान |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको Gama Pehlwan – गामा पहलवान की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा. अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें.
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