18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिकमास चलेगा। कुछ स्थानों पर, भगवान विष्णु को प्रिय इस महीने को कुछ कारणों से मलमास भी कहा जाता है। लेकिन कुछ विद्वान इसे गलत मानते हैं। हम इस कहानी से जानते हैं कि अधिकमास को मलमास नहीं कहना सही है या मलमास के अधिकमास बनने की वजह।
ऐसे मलमास को समझिए
धार्मिक ग्रंथों में सूर्य संक्रांति नहीं होने वाले महीने को निकृष्ट या मलिन माना जाता है। यही कारण है कि इसे मलमास कहा जाता है। सूर्य संक्रांति अधिकमास में भी नहीं होती, इसलिए इसे पहले मलमास माना जाता है। इसलिए इस महीने कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होंगे। किंतु यह महीना धार्मिक कार्यों, पूजा-पाठ और जप-तप के लिए विशेष रूप से शुभ है। जप-तप को दूसरे समय में पूजा करने से अधिक पुण्य मिलता है।
अधिकमास का अर्थ क्या है?
11 दिन प्रत्येक सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में कुछ घंटे का अन्तर होता है। तीन वर्ष में यह अंतर एक महीने से अधिक हो जाता है। हिंदी कैलेंडर हर तीसरे वर्ष एक महीने बढ़ाता है। इसे अधिकमास कहा जाता है। भगवान विष्णु का प्रिय महीना हर तीन वर्ष में एक बार आता है। यही कारण है कि इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस महीने सूर्य संक्रांति नहीं होगी।
अधिकमास के दौरान क्या करना उचित है?
हिंदू लोग अधिकमास में व्रत, उपवास, पूजा, ध्यान, भजन, कीर्तन और मनन को अपनी दिनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस माह में यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण और अन्य पुराणों का सुनना, पढ़ना और सोचना बहुत फायदेमंद होता है। यह समय अधिकमास का अधिष्ठाता है, इसलिए विष्णु मंत्रों का जाप बहुत फायदेमंद है। माना जाता है कि भगवान विष्णु अधिक समय तक विष्णु मंत्र का जाप करने वालों को स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों को दूर करते हैं और उनकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
16 अगस्त तक अधिकमास होगा
कैलेंडर में हर तीसरे वर्ष आने वाले अधिकमास 18 जुलाई को शुरू होता है और 16 अगस्त तक चलता है। यह महीना सावन में 19 साल बाद पड़ा है, इसलिए इसका महत्व बढ़ा है।
मलमास की उत्पत्ति की कहानी
एक कहानी कहती है कि जब एक अतिरिक्त महीने बनाया गया, कोई ग्रह इसका स्वामी बनने को तैयार नहीं हुआ। देवताओं ने भी इसका विरोध करना शुरू किया। मलमास इस अपमान से दुखी होकर भगवान विष्णु को अपनी पीड़ा सुनाई। उसने कहा कि हर जगह उसकी निंदा, अनादर और कोई उसे स्वीकार नहीं करता। इसलिए कोई उसका मालिक नहीं है। जिससे वह दुखी है।
तब भगवान विष्णु ने उसे गोलोक में श्रीकृष्ण के पास ले गया। यहां श्रीकृष्ण ने जब अधिकमास ने अपनी पीड़ा बताई और बताया कि उसे हर जगह अनादर मिला, तो उन्होंने कहा कि अब से मैं संसार का तुम्हारा स्वामी हूँ। कोई तुम्हारी निंदा नहीं करेगा और मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ।
भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास को अपना नाम देकर कहा कि अब इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाएगा। तप गोलोक धाम में पाने की इच्छा रखने वाले मुनि ज्ञानी को इस माह में अनुष्ठान, पूजन और पवित्र स्नान से ही मिलेगा। यही कारण है कि पुरुषोत्तम महीने में स्नान, ध्यान और अनुष्ठान हमें ईश्वर के निकट ले जाते हैं।
पितृ पक्ष की तरह शुभ समय का इंतजार करना चाहिए
यह भी कहा गया कि अधिकमास में पितृ पक्ष की तरह कोई मुहूर्त नहीं होगा। यही कारण है कि अगर कोई नवरात्र में अपनी नई दुकान, घर, वाहन या अन्य मांगलिक कार्य को शुरू करने पर विचार कर रहा है तो उसे अभी तक इंतजार करना चाहिए।
इस महीने इस मंत्र का जाप करें
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।
ऐसे खरमास जानें
हिंदी कैलेंडर के अनुसार, एक वर्ष में बारह संक्रांति होती हैं; दूसरे शब्दों में, सूर्य हर महीने एक अलग राशि में बदल जाता है। इस बदलाव को उसी राशि के नाम से संक्रांति कहा जाता है। धनु संक्रांति और मीन संक्रांति में सूर्य देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु और मीन में प्रवेश करता है। जैसा कि आप जानते हैं, सूर्य धनु व मीन राशि में रहते समय मलिनमास या खरमास कहलाता है। इसमें शुभ और मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए।