हिंदुओं के सबसे बड़े धर्म गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया. उन्होंने 99 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिलें के अपने आश्रम में अंतिम सांस ली. काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थें. बता दें उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लेकर जेल भी जा चुके थे. राम मंदिर निर्माण को लेकर काफी लंबे समय तक कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.
9 साल की उम्र में छोड़ा घर
जगत गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने महज 9 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और सारे धर्म स्थलों के भ्रमण करने के बाद काशी पहुंचे और वहीं पर उन्होंने करपात्री महाराज से वेद वेदांग और शास्त्रों के बारे में सारी शिक्षा दीक्षा ली. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के माता पिता ने उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. उनका जन्म सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था.
आजादी की लड़ाई में हुए थें शामिल
कम लोगों को ही पता होगा की आजादी की लड़ाई में शंकराचार्य ने भी हिस्सा लिया था और उसी के चले उन्हें वाराणसी की जेल में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटनी पड़ी थी उस वक्त वे सिर्फ 19 साल के थें. इस दौरान वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल रामराज्य के अध्यक्ष भी थें. स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए. और 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि दी गई. स्वामी स्वरूपानंद स्वामी के 98वें जन्मदिन के अवसर पर सर्व ब्राह्मण समाज कोटे गांव ने उनका 98 फिट लंबे तिरंगे से सम्मान किया था. क्योंकि शंकराचार्य स्वरूपानंद स्वामी एक स्वतंत्रता सेनानी भी थें.
सम्बंधित : – ॐ नमः शिवाय
राम मंदिर निर्माण पर दिया था बयान
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बड़ा बयान दिया था. और इस बयान के बाद खूब विवाद गहराया था. मीडिया से बातचीत करते हुए शंकराचार्य ने कहा था कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर नहीं बन रहा है वहां आने वाले दिनों में विश्व हिंदू परिषद का कार्यालय बनेगा. मंदिर वह बनाते हैं, जो राम को मानते हैं. राम को आराध्य मानते हैं.राम को महापुरुष मानने वाले लोग मंदिर नहीं बनाते. तो वहीं शंकराचार्य स्वरूपानंद स्वामी ने अयोध्या में राम मंदिर भूमि के मुहूर्त पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वेदों में कहा गया है भूमि पूजन शुभ मुहूर्त पर होना चाहिए इस वक्त देव शयन पर हैं कुछ शुभ काम नहीं करना चाहिए, ये काम दो महीने बाद भी हो सकता था. उम्र के इस पड़ाव में भी शंकराचार्य राजनीतिक को लेकर काफी सजग थें वे रोज अखबार पढ़ते थें और राजनीतिक हलचल पर नजर रखते थें. शंकराचार्य होते हुए भी उन्हें कई बार विवादों में घेरा गया कभी उन्हें राम मंदिर विरोधी तो कभी कांग्रेस समर्थक शंकराचार्य कहा गया.
जगत गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उन्हें उनके दिए हुए योगदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. हिंदुओं के सबसे बड़े धर्म गुरु के चले जाने पर पीएम समेत तमाम बड़े नेताओं ने शोक जताया है.
सम्बंधित : – तिरुपति बालाजी का मंदिर कहां है?