प्राचीन समय में जब मंदिरों का निर्माण किया जाता था, तो वास्तु और खगोल विज्ञान का ध्यान रखा जाता था. इसके अलावा प्राचीन काल के राजा-महाराजा अपना खजाना छुपाकर उस जगह के ऊपर मंदिर बना देते थे. और उस खजाने तक पहुंचने के लिए एक अलग से गुप्त द्वार बनाते थे. लेकिन इन सबके अलावा भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जिनका संबंध न तो वास्तु से है, न खगोल विज्ञान से और न ही खजाने से है, इन मंदिरों के रहस्य का पता आज तक कोई भी नहीं लगा पाया है, आज हम कुछ ऐसे ही रहस्यमई मंदिरों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. वैसे तो भारत में हजारों रहस्यमई मंदिर स्थित है लेकिन आज हम कुछ खास 10 प्रसिद्ध रहस्यमई मंदिरों के बारे में आपको बताएंगे.
- कैलाश मानसरोवर मंदिर
कैलाश मानसरोवर मंदिर में साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं, कैलाश मानसरोव को धरती का केंद्र माना जाता है. दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश मानसरोवर के समीप ही कैलाश पर्वत और थोड़ा आगे मेरू पर्वत स्थित है. इस संपूर्ण क्षेत्र को शिव और देवलोक कहा जाता है, रहस्य और चमत्कार से परिपूर्ण इस जगह की महिमा वेद और पुराणों में भी की गई है. कैलाश पर्वत समुद्र की सतह से लगभग 22068 फुट ऊंचा है, तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र तिब्बत में स्थित है, क्योंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीनी क्षेत्र में आता है, जो चार धर्मों- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म का आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है. कैलाश पर्वत की चारों दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज व करनाली.
- कन्याकुमारी मंदिर
समुद्र के तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर स्थित है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप की पूजा की जाती है. मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र को उतारना पड़ता है, प्रचलित कथाओं के अनुसार देवी का विवाह न हो पाने के कारण बचे हुए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए थे. आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर भारी मात्रा में देखने को मिलते हैं. कन्याकुमारी अपने सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध माना जाता है, कन्याकुमारी में सुबह का सूर्योदय देखने के लिए सभी होटलों के छतों पर पर्यटकों की भारी भीड़ जमा हो जाती है. साथ ही शाम को अरब सागर में सूर्यास्त को देखना भी काफी यादगार होता है. उत्तर दिशा की ओर करीब 2 से 3 किलोमीटर दूर एक सनसेट पॉइंट भी उपस्थित है.
- करनी माता मंदिर
करनी माता का यह मंदिर बीकानेर (राजस्थान) में उपस्थित एक अनोखा मंदिर है, इस मंदिर में लगभग 20 हजार काले चूहे पाए जाते हैं, यहां लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति करने के लिए आते हैं. करनी देवी, जिन्हें मां दुर्गा का अवतार भी माना जाता है, माता करणी के इस मंदिर को चूहे वाला मंदिर भी कहा जाता है. यहां चूहों को काबा कहा जाता है, तथा इन चूहों को प्रतिदिन भोजन भी कराया जाता है, और इनकी सुरक्षा का भी भरपूर ध्यान रखा जाता है, यहां चूहों की मात्रा इतनी अधिक है कि आपको पांव घिसटकर चलना पड़ेगा माना जाता है कि अगर एक भी चूहा आपके पैरों के नीचे आ जाता है तो इसे अपशकुन माना जाता है, और अगर एक भी चूहा आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो आप पर देवी की कृपा हो गई समझो और अगर आपने सफेद चूहा देख लिया तो समझो आपकी मनोकामना हो गई.
- शनि शिन्ग्नापुर मंदिर
भारत देश में सूर्य पुत्र शनि देव के अनेकों मंदिर हैं, उन्हीं मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर में स्थित है, विश्व में प्रसिद्ध शनि देव के इस मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है, कि यहां स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बिना किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है. शिगणापुर शहर में भगवान शनि देव महाराज का भय इतना ज्यादा है, कि शहर के अधिकतर घरों में खिड़की, दरवाजे और तिजोरी नहीं पाई जाती हैं. घरों में दरवाजों की जगह में पदों का इस्तेमाल किया गया है, ऐसा इसलिए, क्योंकि शिगणापुर शहर में चोरी नहीं होती है. यहां तक कि यह भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति चोरी करता है, उसे शनि महाराज स्वयं सजा देते हैं. इसके अनेक को प्रत्यक्ष उदाहरण देखे जा चुके हैं, शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति के लिए यहां पर विश्व भर से प्रत्येक शनिवार लाखों-करोड़ों लोग आते हैं.
- सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है. प्राचीन समय में सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग हवा में झूलता था, लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया था माना जाता है कि 24 शिवलिंग की स्थापना की गई थी. उन शिवलिंग ओ में सोमनाथ का शिवलिंग बीचो बीच था. इन शिवलिंगों में मक्का स्थित काबा का शिवलिंग भी शामिल है. इन शिवलिंग ओ में से कुछ शिवलिंग आकाश में स्थित कर्क रेखा के नीचे आते हैं. गुजरात शहर के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में उपस्थित इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था. इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है, इस जगह को सबसे अधिक रहस्यमई माना गया है. यदुवंशियों के लिए यह स्थान प्रमुख था. इस मंदिर को अब तक 17 से अधिक बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया है. भगवान श्री कृष्ण ने इसी जगह में अपना देह त्याग किया था. श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे से तीर मार दिया था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ के लिए प्रस्थान किया था. इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है
- कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर को तांत्रिकों का गढ़ कहा जाता है, माता के 51 शक्तिपीठों में से एक इस पीठ को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. यह मंदिर असम के गुवाहाटी में स्थित है, यहां त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमा मुख्य रूप से विराजित है. दूसरी ओर 7 अन्य रूपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में विराजित की गई है, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए है. पौराणिक मान्यता के अनुसार साल में एक बार अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं, और मां भगवती की गर्भगृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर 3 दिनों तक जल-प्रवाह के जगह से रक्त प्रवाह होता है. इस मंदिर के चमत्कार और रहस्यों के बारे में कई किताबें भरी पड़ी हैं. इस मंदिर के कई ऐसे किस्से हैं जिससे चमत्कारिक और रहस्यमय होने का पता चलता है.
- अजंता-एलोरा के मंदिर
अजंता-एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं, इन गुफाओं का निर्माण बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर किया गया है, 29 गुफाएं अजंता में तथा 34 गुफाएं एलोरा में हैं. इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया गया है. इनका निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा किया गया था. इन रहस्य के बारे में आज भी शोध किया जा रहा है इस जगह में ऋषि-मुनि और भुक्षि गहन तपस्या करते थे. सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं. घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यधिक प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की हैं, इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात तक के बौद्ध धर्म का पूर्ण चित्रण किया गया है. इन गुफाओं में हिन्दू, जैन और बौद्ध 3 धर्मों के प्रति दर्शाई गई आस्था के त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है. दक्षिण की ओर 12 गुफाएं बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएं हिन्दू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं.
- खजुराहो का मंदिर
आखिर ऐसा क्या कारण था कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी किसी ने नहीं सुलझा पाया है. खजुराहो मंदिर वैसे तो भारत के मध्य प्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा सा कस्बा है, परंतु फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमने जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है, तो वह है खजुराहो मंदिर, खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल कायम करता है. चंदेल शासकों ने खजुराहो मंदिर का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के मध्य करवाया था. इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है. कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों को बनवाया था, लेकिन 84 मंदिरों में से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों का ही खोज हो पाई है. ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित हैं.
- श्री काल भैरव मंदिर, उज्जैन
श्री काल भैरव मंदिर के बारे में सभी जानते होंगे, क्योंकि यहां की काल भैरव की प्रतिमा मदिरापान करती है, इसीलिए श्री काल भैरव मंदिर में प्रसाद के जगह पर मदिरा चढ़ाई जाती है, यही सब यहां प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटी जाती है, कहा जाता है कि काल भैरव नाथ इस शहर के रक्षक हैं, इस मंदिर के बाहर साल के 12 महीने और 24 घंटे शराब उपलब्ध रहती है.
- माता ज्वाला जी मंदिर
ज्वालादेवी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी दूर स्थित है, यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है, यहां माता की जीभ गिरी थी. कई हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है. इस मंदिर की खोज पांडवों द्वारा की गई थी. इस जगह में एक अन्य आकर्षक करने वाला तांबे का पाइप है, जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है, इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग 9 लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह मृत ज्वालामुखी की अग्नि हो सकती है. हजारों साल पुराने मां ज्वालादेवी के मंदिर में जो 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हैं, वे 9 देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं. कहा जाता है कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर का निर्माण कराया था. जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से इस रहस्यमई मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.