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जानिए कैसे हैं। भारत और इजरायल के संबंध| India and Israel Relationship in Hindi

आज हम आपको जानिए कैसे हैं. भारत और इजरायल के संबंध के बारे में बताने जा रहे हैं। कृपया पूर्ण जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अवश्य पढ़ें। और अन्य जानकारी के लिए नव जगत के साथ बने रहे।

भारत-इज़राइल सम्बन्ध, भारत तथा इजराइल के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को दर्शाते हैं. 1992 तक भारत और इजरायल के बीच किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं था इसके मुख्यतः दो कारण थे, पहला भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो कि पूर्व सोवियत संघ का समर्थन करता था। यहाँ तक की 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नामक संगठन का निर्माण किया परन्तु 1989 में  कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर-कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इज़राइल के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने पर जोर दिया और 1992 से नया दौर शुरू हुआ।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पराजय के पश्चात भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इज़राइल के मध्य सहयोग बढ़ा और दोनों राजनितिक दलों की इस्लामी कट्टरपंथ के प्रति एक जैसे- मानसिकता होने के कारण से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह से भारत और इज़राइल के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। आज इजराइल एक ऐसा देश है जो रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक देश है।

भारत और इजराइल का इतिहास

गैर-मान्यता 1948-50

इजरायल राज्य की जब स्थापना हुई तब भारत की स्थित कई कारकों से प्रभावित थी. जिसमें धार्मिक आधार पर भारत का अपना विभाजन और अन्य देशों के साथ भारत के संबंध शामिल थे। भारतीय स्वतंत्रता नेता महात्मा गांधी का मानना ​​था, कि यहूदियों के पास इज़राइल के लिए एक अच्छा मामला और एक पूर्व दावा था, लेकिन धार्मिक या अनिवार्य शर्तों पर इज़राइल के निर्माण का विरोध किया। गांधी का मानना ​​था कि अरब फिलिस्तीन के असली कब्जेदार थे, और उनका विचार था कि यहूदियों को अपने मूल देशों में लौट जाना चाहिए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने भारत को यहूदी राज्य की स्थापना का समर्थन करने के लिए मनाने के लिए 13 जून, 1947 को  जवाहरलाल नेहरू को चार पन्नों का एक पत्र लिखा था। हालाँकि, नेहरू आइंस्टीन के अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सके, और उनकी दुविधा को यह कहते हुए समझाया कि राष्ट्रीय नेताओं को “दुर्भाग्य से” ऐसी नीतियों का पालन करना पड़ता है जो “अनिवार्य रूप से स्वार्थी” हैं। भारत ने 1947 की फिलिस्तीन योजना के विभाजन के विरुद्ध मतदान किया और 1949 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के प्रवेश के विरुद्ध मतदान किया। 

अनौपचारिक मान्यता 1950-91

17 सितंबर 1950 को भारत ने आधिकारिक तौर पर इजराइल राज्य को यह मान्यता दी, कि भारत द्वारा इजराइल को मान्यता दिए जाने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा, हमने इजराइल को मान्यता बहुत पहले ही दे दी है क्योंकि इजराइल एक सच्चा देश है और हमने अरब देशों में अपने दोस्तों की भावनाओं को ठेस ना पहुंचाने की अपनी इच्छा के कारण परहेज किया. 1956 में इजरायल को मुंबई में एक बार दूतावास प्रारंभ करने की अनुमति दी गई थी. परंतु नेहरू सरकार इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंधों को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे. क्योंकि यह भारत के 15 कारणों का समर्थन किया था, और यह मानता था कि इजरायल नई दिल्ली में एक दूतावास प्रारंभ करने की अनुमति देने में अरब दुनिया के साथ संबंध खराब हो जाएंगे।

घनिष्ठता 1992–वर्तमान

दशकों गुट निरपेक्ष और समर्थक नीति के बाद भारत एक औपचारिक रूप से इजरायल के साथ संबंध बना चुका था. और जब उसने जनवरी 1992 में तेल अवीव में एक दूतावास प्रारंभ किया. तब दोनों देशों के बीच संबंध और घनिष्ठ होने लगे और मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और सुरक्षा खतरों के कारण ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक को ऑपरेशन का गठन किया गया. जिसमें कथित तौर पर भारतीय मुसलमानों की भावनाओं की अपेक्षा की और पाकिस्तान द्वारा भारत को में शामिल होने से रोकने को इस कूटनीतिक बदलाव का कारण माना जाता है राजनयिक स्तर पर दोनों देशों में इजराइल की सैन्य कार्रवाई भारत की बार-बार कड़ी निंदा के बावजूद स्वस्थ संबंध बनाए रखने में कामयाब रहे. जो विश्लेषकों द्वारा भारत में मुस्लिम वोटों के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपी) सरकार की इच्छा से प्रेरित किया गया.

मोदी की 2017 की इज़राइल यात्रा

जुलाई 2017 में नरेंद्र मोदी ने इजराइल का डोर करने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. यह अनुमान लगाया गया था, कि प्रधानमंत्री मोदी यात्रा के दौरान फिलिस्तीन नहीं गए थे, क्योंकि वह सम्मेलन से टूट गए थे. और केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के एकमात्र अपवाद के साथ, भारतीय मंत्रियों और राष्ट्रपति मुखर्जी की पिछली यात्राओं में इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के द्वार का मौका मिला इसलिए भारतीय मीडिया ने इस कदम को दोनों राज्यों के साथ भारत के संबंधों का निराकरण करना सही बताया।

आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको जानिए कैसे हैं भारत और इजरायल के संबंध की पूर्ण जानकारी प्रदान करने में समर्थ रहा। अन्य महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी के लिए हमारे अन्य ब्लॉग को अवश्य पढ़ें।

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