महाराष्ट्र राज्य में स्थित त्रंबकेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां पर श्रद्धालुओं के अलावा पुरानी समय के वास्तुकला एवं नक्काशी प्रेमी भी आया करते हैं, क्योंकि इस मंदिर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के शिवलिंग के अलावा इस मंदिर की नक्काशी भी काफी खूबसूरत तरीके से की गई है, काले पत्थर से निर्मित यह त्रंबकेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं के लिए काफी ज्यादा महत्व रखती है, आज के इस आर्टिकल में हम इस त्रंबकेश्वर मंदिर के पूरी जानकारी को विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे.
त्रयंबकेश्वर मंदिर की इतिहास
त्र्यंबकेश्वर नामक यह मंदिर भारत देश के राज्य महाराष्ट्र के जिला नासिक में स्थित एक पौराणिक मंदिर है, यह मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित हिंदू धर्म से जुड़ी एक पौराणिक धार्मिक स्थल है, इतिहासकारों द्वारा बताया जाता है, कि इस मंदिर को 18 वीं शताब्दी में ब्रह्मागिरी की पहाड़ियों में पेशवा नाना साहब द्वारा निर्मित किया गया था, जो एक मराठा शासक थे.
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की वास्तुकला
18 वीं शताब्दी में निर्मित यह त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बनाया गया है, मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड है, जिसे गोदावरी नदी का स्रोत भी कहा जाता है, इस मंदिर के मुख्य विशेषता भगवान ब्रह्मा, रुद्र और विष्णु के प्रतीक के लिए काफी प्रमुख है, इस मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा के लिंग को स्थापित किया गया है, इस मंदिर में पौराणिक समय के सुंदर नक्काशी काफी ज्यादा आकर्षक लगती है.
त्र्यंबकेश्वर की कथा
इस प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और यहां उसी स्थान पर तपस्या करते थे, क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे, और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे, एक बार सभी रिसीव ने मिलकर गौतम ऋषि पर गौ हत्या का एक आरोप लगा दिया, सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा, गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरु कर दी, ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए, भगवान ने वरदान मांगने को कहा, तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा, देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर बात करेंगे, तभी वह भी यहां रहेगी, गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वास करने को तैयार हो गए और गंगा नदी गौतमी के रूप में वह बहने लगी गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है.