सोमनाथ मंदिर गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित है, इस मंदिर को भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, यह स्थान को गुजरात का एक महत्वपूर्ण तीर्थ और पर्यटन स्थल है, प्राचीन काल में इस मंदिर को कई मुस्लिम आक्रमणकारियों और पुर्तगालियों द्वारा बार-बार ध्वस्त करने के बाद वर्तमान हिंदू मंदिर का पुनर्निर्माण वास्तुकला की चालुक्य शैली में किया गया, सोमनाथ का अर्थ है, भगवानों के भगवान जिसे भगवान शिव का अंश माना जाता है, यह मंदिर ऐसी जगह पर स्थित है, जहां अंटार्कटिका तक सोमनाथ समुद्र के बीच एक सीधी रेखा में कोई भूमि नहीं है, सोमनाथ मंदिर के प्राचीन इतिहास और इसकी वास्तुकला और प्रसिद्धि को देखने के लिए देश और विदेशों से भारी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं.
कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था, इसका उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है, इतिहासकारों का मानना है, कि गुजरात के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी, अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसके बारे में बताया है, जिससे प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने सन 1024 में अपने पांच हजार सैनिकों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और उसकी सम्पत्ति लूटकर मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था, उस दौरान सोमनाथ मंदिर के अंदर लगभग पचास हजार लोग पूजा कर रहे थे, गजनवी ने सभी लोगों का कत्ल करवा दिया और लूटी हुई संपत्ति लेकर अपने देश लौट गया.
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर अपना कब्जा किया तो सोमनाथ मंदिर को पांचवीं बार गिराया था, मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1702 में आदेश दिया कि यदि हिंदू सोमनाथ मंदिर में दोबारा से पूजा किए तो इस मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया जाएगा, आखिरकार उसने पुन 1706 में सोमनाथ मंदिर को गिरवा दिया, इस समय सोमनाथ मंदिर जिस रूप में खड़ा है, उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया था, और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इस मंदिर को राष्ट्र की संपत्ति घोषित किया था.
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी हुई कहानी
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी कथा बहुत प्राचीन एवं निराली है, किवदंतियों के अनुसार सोम या चंद्र ने राजा दक्ष की सत्ताइस पुत्रियों के साथ अपना विवाह रचाया था, लेकिन वह आपने एक ही पत्नी से सबसे ज्यादा प्यार करते थे, अपनी अन्य पुत्रियों के साथ यह अन्याय देखकर राजा दक्ष ने उन्हें श्राप दे दिया, कि आज से तुम्हारी चमक और तेज धीरे धीरे खत्म हो जाएगा, इसके बाद चंद्रदेव की चमक हर दूसरे दिन घटने लगी, राजा दक्ष के श्राप से परेशान होकर चंद्रदेव ने शिव की आराधना शुरू की, भगवान शिव ने चंद्रदेव की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें दक्ष के अभिशाप से मुक्त किया, श्राप से मुक्त होकर चंद्रदेव ने इस स्थान पर भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया और मंदिर का नाम रखा गया सोमनाथ मंदिर, तब से यह मंदिर पूरे भारत सहित विश्वभर में विख्यात है.