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मध्य प्रदेश के राजकीय प्रतीक चिन्ह | Madhya Pradesh Ke Rajkiya Pratik Chinh

मध्य प्रदेश सरकार ने 1 नवंबर सन 1981 को प्रदेश की रजत जयंती अवसर पर राजकीय प्रतीक अधिनियम 1981 पारित कर राज्य के प्रतीक चिन्ह जैसे राजकीय पशु, राजकीय वृक्ष, राजकीय फूल, राजकीय पक्षी आदि के नामों को घोषित किया तो आज हम आपको अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मध्य प्रदेश के राजकीय प्रतीकों के बारे में बताएंगे:-

मध्य प्रदेश के राजकीय प्रतीक :-

मध्य प्रदेश का राजकीय पुष्प

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लिलि को राज्य का राजकीय पुष्प घोषित किया गया है इसे सफेद लिलि के नाम से भी जाना जाता है यह बहुत ही सुंदर फूल है लिलि का फूल त्वचा के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है लिलि पुष्प का प्रयोग सजावट के लिए किया जाता है, औषधी की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी पुष्प है. लिलि के फूल की लगभग 100 से भी अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, यह फूल अधिकांश बसंत ऋतु में खिलते हैं, लिलि का मूल निवास दक्षिण पूर्व एशियाअमेरिका है.

लिलि के पौधे की आयु करीब 5 वर्ष की होती है, इसके पौधे की लंबाई 2 से 7 फिट की होती है, यह प्रजातियों के अनुसार लिलि के फूल अलग-अलग रंग के पाए जाते हैं, टाइगर लिली इसकी प्रमुख की प्रजाति है ,और यह नारंगी रंग की होती है इस पर टाइगर की भांति भूरे रंग के धब्बे होते हैं सफेद लिली को ईस्टर लिली के नाम से जाना जाता है लिली के एक फूल में 6 पंखुड़ियां होती हैं लिली के फूल का रस , नेक्टर ,कहलाता है सफेद और टाइगर लिली में ही सुगंध पाई जाती है बाकी लिली के फूल में सुगंध नहीं पाए जाते हैं. लिली का फूल बिल्लियों के लिए घातक होता है.

मध्यप्रदेश का राजकीय गान  

मध्यप्रदेश का राजकीय गान “मेरा मध्यप्रदेश” है, इस गान के लेखक महेश श्रीवास्तव गायक – शान वा संगीतकार – आदेश श्रीवास्तव है. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस गान को वर्ष 2010 में राजकीय गान के रूप में घोषित किया गया था. इस गान के अंतर्गत मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक, विरासत, इतिहास के साथ-साथ विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन किया गया है.

सुख का दाता, सब का साथी, शुभ का यह संदेश है,

मां की गोद, पिता का आश्रय, मेरा मध्यप्रदेश है।

विंध्याचल सा भाल, नर्मदा का जल जिसके पास है,

यहां ताप्ती और बेतवा का पावन इतिहास है।

उर्वर भूमि, सघन वन, रत्न सम्पदा जहां अशेष है,

स्वर-सौरभ-सुषमा से मंडित, मेरा मध्यप्रदेश है।

सुख का दाता, सब का साथी, शुभ का यह संदेश है,

मां की गोद, पिता का आश्रय, मेरा मध्यप्रदेश है।

क्षिप्रा में अमृत घट छलका, मिला कृष्ण को ज्ञान यहां,

महाकाल को तिलक लगाने, मिला हमें वरदान यहां।

कविता, न्याय, वीरता, गायन, सब कुछ यहां विशेष है,

हृदय देश का यह, मैं इसका, मेरा मध्यप्रदेश है।

सुख का दाता, सब का साथी, शुभ का यह संदेश है,

मां की गोद, पिता का आश्रय, मेरा मध्यप्रदेश है।

चंबल की कल-कल से गुंजित, कथा तान, बलिदान की,

खजुराहो में कथा कला की, चित्रकूट में राम की।

भीमबैठका आदिकला का, पत्थर पर अभिषेक है,

अमृतकुंड अमरकंटक में, ऐसा मध्यप्रदेश है।

सुख का दाता, सब का साथी, शुभ का यह संदेश है,

मां की गोद, पिता का आश्रय, मेरा मध्यप्रदेश है।

मध्यप्रदेश की राजकीय मछली 

मध्यप्रदेश की राजकीय मछली महाशीर है, राज्य सरकार ने सन 2011 में इस मछली को मध्यप्रदेश राज्य की राजकीय मछली के रूप में घोषित किया था, यह मध्यप्रदेश की संरक्षित मछली है, यह मछली नर्मदा नदी में मुख्यतः पाई जाती है पहले नर्मदा नदी में इसकी संख्या 28 से 30% थी. जो अब घटकर 4% के करीब ही रह गई है, इसकी कुल लंबाई 2 मीटर और भारत 50 किलोग्राम होता है. 

सुनहरे रंग की यह मछली मीठे पानी में अधिक मजबूत होती है, यह प्रदूषण को रोकने व पानी को स्वच्छ करने में बहुत सहायता करती है. यह स्वच्छ पानी की मछली है, किसी नदी में इस मछली का पाया जाना उसके जल की स्वच्छता पर निर्धारित होता है, नदियों के पानी का दूषित होना भी इस मछली की घटती जनसंख्या का कारण है. भारत के अतिरिक्त यह मछली मलेशिया, इंडोनेशिया में मुख्य रूप से पाई जाती है. यह मछली बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण संकटग्रस्त है, और इसके लुप्त होने का भी डर है.

मध्यप्रदेश का राजकीय पेड़ 

मध्यप्रदेश का राजकीय वृक्ष बरगद का पेड़ हैं, इसे वट वृक्ष भी कहते हैं. इस पेड़ का धार्मिक महत्व  के साथ ही साथ पर्यावरणीय महत्व भी हैं. यह एक औषधी वृक्ष भी हैं. बता दे यह मध्य प्रदेश का राजकीय वृक्ष होने के साथ ही भारत का भी राष्ट्रीय वृक्ष हैं. 1 नवंबर 1981 को राजकीय प्रतीक अधिनियम पारित करके वट वृक्ष को मध्यप्रदेश का राजकीय वृक्ष चुना गया था. यह वृक्ष अपनी तनों में से लटकने वाली जड़ों के कारण अलग ही नजर आता है. बता दे यह एक ऐसा वृक्ष है जो सबसे अधिक मात्रा में हमें ऑक्सीजन प्रदान करता है, इस पौधे को धार्मिक महत्व से भी जोड़ा गया है. जिसके कारण स्त्रियां स्थित पूजा भी करती है.

मध्यप्रदेश का राजकीय पक्षी

मध्यप्रदेश का राजकीय पक्षी सुल्ताना बुलबुल है, सन 1985 में सुल्ताना बुलबुल को राजकीय पक्षी घोषित किया गया था. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत 1972 में संकट ग्रस्त प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया. एक वयस्क दूधराज के पंखों का फैलाव 90 से 92 सेंटीमीटर तक का होता है, सुल्ताना बुलबुल का आकार लगभग 18 से 22 सेंटीमीटर का होता है. और नर दूधराज पक्षी की पूछ की लंबाई 20 से 24 सेंटीमीटर तक होती है. 

सुल्ताना बुलबुल उत्तर भारत में सफेद रंग का पाया जाता है, अन्य स्थानों पर भूरे और काले रंग के पाए जाते हैं. तथा दक्षिण भारत और श्रीलंका में इसकी मूल प्रजातियां पाई जाती है. सुल्ताना बुलबुल मध्यप्रदेश में बहुत कम पाए जाते हैं यह काफी शोर करने वाले पक्षी हैं और यह अधिक घने जंगलों में पाए जाते हैं.  इनका प्रजनन काल मार्च से जुलाई के बीच होता है सुल्ताना बुलबुल सर्दियों में अपना घोंसला बनाना शुरू करते हैं सुल्ताना बुलबुल नर एवं मादा दोनों मिलकर घोंसला बनाते हैं, मादा एक बार में 3 से 5 अंडे देती है, 13 से 18 दिन तक अंडे देने के बाद इसमें बच्चे निकलते हैं.

मध्यप्रदेश का राजकीय फल  

मध्यप्रदेश का राजकीय फल आम है. आम को मध्यप्रदेश ने अपना राजकीय फल घोषित किया है मध्यप्रदेश के जबलपुर को मैंगो डिस्ट्रिक्ट के नाम से भी जाना जाता है, राज्य के अलीराजपुर जिले में 3 से 4 किलोग्राम के नूर जहां किस्म का आम पाया जाता है यहां के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में यह आम मुख्य रूप से पाया जाता है. आम को फलों का राजा भी कहा जाता है. देशभर में इसे सर्वजीत पसंद किया जाता है यह एक रसीला और बेहद स्वादिष्ट फल होता है. पहले यह सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता था. परंतु धीरे-धीरे या पूरे विश्व में फैल गया है, इसका सर्वाधिक उत्पादन भारत में किया जाता है, भारत आम के कुल वैश्विक उत्पादन का 41% उत्पादन करता है. आम का पेड़ बांग्लादेश का राष्ट्रीय पेड़ है. आम का फल भारत-पाकिस्तान व फिलीपींस का भी राष्ट्रीय फल है.

आम की प्रमुख प्रजातियां

मुंबई, बनारसी, दशहरी, फजली, चौसा, अलफांजो, आम्रपाली, रत्ना, मल्लिका, लंगडा, हिमसागर, केसर, मालगोवा, गुलाब खास, सफेदा लखनऊ, रूमानी, वनराज, रत्ना, सिंधु, बादाम, नीलम, मूलगोवा, तोतापरी, सुपर्ण रेखा, सुंदरी, राजपुरी इत्यादि.

मध्यप्रदेश की राजकीय नदी  

मध्य प्रदेश की राजकीय नदी नर्मदा है, नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है. नर्मदा नदी को मध्यप्रदेश की प्रमुख नदियों की सूची में प्रथम स्थान पर रखा गया है. क्योंकि यह मध्यप्रदेश के लगभग 1077 किलोमीटर में फैली हुई है. नर्मदा नदी को मध्य प्रदेश में रेवा नदी के नाम से भी जाना जाता है, यह राज्य की सबसे बड़ी नदी है. यह भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवी सबसे लंबी नदी मानी जाती है, नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1312 किलोमीटर है. नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अनूपपुर जिले के अमरकंटक को माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यही से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है. यह नर्मदा कुंड विद्यांचल और सतपुड़ा पर्वत की श्रेणियों के पूर्व संधि स्थल पर स्थित है. बता दे यहां उत्तर और दक्षिण भारत के बीच की पारंपरिक सीमा भी बनती है. नर्मदा नदी अपने उद्गम स्थल से निकलकर 1312 किलोमीटर का सफर तय करके यह गुजरात के भरूच जिले के खंभात की खाड़ी में मिल जाती है.

मध्यप्रदेश का राजकीय खेल  

मध्यप्रदेश का राजकीय खेल मलखंब है मलखंब को मध्यप्रदेश ने अपने राजकीय खेल के रूप में घोषित किया है, यह मैदान में एक खंभा गाड़ कर उस पर करतब दिखाने का खेल है. इस खेल को एक बेहतरीन व्यायाम और कसरत वाला खेल माना जाता है. इस खेल को भारत का एक पारंपरिक खेल माना जाता है. इससे शरीर बलवान, लचीला और संतुलित होता है. यह खेल न्यूनतम समय में पूरे शरीर का अधिकतम व्यायाम करवा देता है, मलखंब का प्राचीनतम साक्ष्य चोल काल में 1835 ईस्वी को मिलता है, साथ ही बता दे कि भारतीय क्रांतिकारी तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने भी यह खेल खेला है. इसमें लकड़ी का एक मजबूत खंभा होता है, यह खंभा शीशम या सागौन की लकड़ी का बना हुआ होता है. इसकी लंबाई 8 फिट होती है इस खंभे में अरंडी का तेल लगाया जाता है जिससे खंभे में पहलवान की मजबूत, पकड़, ताकत, संतुलन और लचीलापन बना रहता है, जिससे कि वह बेहतरीन करतब का प्रदर्शन दिखा सकता है.

मध्यप्रदेश का राजकीय पशु

मध्यप्रदेश का राजकीय पशु बारहसिंघा है और इसे दलदल के मृग के नाम से भी जाना जाता है यह हिरण का एक दुर्लभ प्रजाति है जो कि गंगा के मैदानों में बहुतायत में पाए जाते हैं, यह राज्य के कान्हा किसली राष्ट्रीय पार्क में भी देखने को मिलते हैं, देश में यह उत्तर भारत और मध्य भारत के अतिरिक्त दक्षिण पश्चिमी नेपाल में भी पाए जाते हैं.

बारहसिंघा का तात्पर्य बारहसिंघा से नहीं दरअसल इनके सिंह विकसित होकर 1 से 2 शाखाओं में बढ़ते रहते हैं. इस प्रक्रिया के माध्यम से नर में इनकी अधिकतम 10 से 14 साखाएं हो जाती है,जिसके कारण इन्हें बारहसिंघा कहा जाता है.

गुजरात से बारहसिंघा के 1,000 पुराने अवशेष मिले हैं इससे यह पता चलता है कि बारहसिंघा तराई क्षेत्रों के दलदली इलाके और मध्य भारत के बनो के समीप घास के मैदानों में पाए जाते हैं, पूर्व क्षेत्र में असम के मुख्यता काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं.

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