गन्ना की खेती कैसे करें (sugarcane farming in hindi) मीठा किसे पसंद नहीं है, हमारे रोजमर्रा की आवश्यकता में उपयोग की जाने वाली शक्कर, गुड़, राब, मिश्री आदि जैसी कई चीज़ें है, जिसका निर्माण गन्ना (Sugarcane) से होती है, हालांकि मिठास की प्राप्ति के लिए और भी कई फसल है, जैसे- ताड़ , चुकंदर और मधु(शहद) लेकिन मुख्य रूप से गन्ने का ही उपयोग किया जाता है, गन्ना एक प्रमुख व्यावसायिक फसल है, इसे नकदी फसल भी कहा जाता है, हमारे देश में गन्ना की खेती (sugarcane farming) प्राचीन काल होती आ रही है.
पूरे विश्व में चीनी के उत्पाद में ब्राजील के बाद भारत को दूसरा स्थान प्राप्त है, गन्ने की खेती (sugarcane farming) से लाखों लोगों को रोजगार मिल जाता है, विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती है, इन्हीं विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने-आप में सुरक्षित और लाभ की खेती मानी जाती है. तो आइए जानते हैं कि गन्ने की खेती कैसे करें.
- गन्ना की खेती के लिए ज़रूरी जलवायु
- खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
- गन्ने की खेती का सही समय
- खेती की तैयारी कैसे करें
- गन्ना की उन्नत किस्में
- सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
- रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें
- गन्ना की खेती में लागत और कमाई
गन्ने की खेती के लिए आवश्यक जलवायु
गन्ना आर्द्र जलवायु का पौधा है, इसकी खेती तराई वाले इलाके में खूब होती है, विषम परिस्थितियों में भी इसका पौधा आसानी से विकास कर लेता है, गन्ने के पौधे को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है, गन्ने के अनुकरण के समय नमीयुक्त मिटटी के साथ ही 21-25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है, इसके कल्ले निकलने और बढ़वार के दौरान साधारण तापमान 30 से 35 डिग्री होना जरूरी होता है.
गन्ने की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
गन्ने की खेती (sugarcane farming) के लिए उपजाऊ दोमट और काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इसकी खेती सबसे अधिक होती है, इसके अलावा पीली मिट्टी और बलुई मिट्टी भी गन्ने के लिए लाभदायक होती है.
क्षारीय और अम्लीय मिट्टी और जिस भूमि पर पानी का जमाव होता हो वहां पर गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए, इसकी खेती के लिए 5 से 8.5 पीएच मान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है.
गन्ने की खेती करने का सही समय
आमतौर पर देश में शरदकालीन या बसंतकालीन गन्ने की फसल बोई जाती है, गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर-नवम्बर है, जबकि उत्तर भारत में गन्ने की बुआई फरवरी-मार्च बसंत कालीन में लगाई जाती है.
पंजाब और हरियाणा में गन्ने की रोपाई का सबसे अच्छा समय मार्च और उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च और बिहार में जनवरी-फरवरी है, गन्ने के अच्छे अंकुरण के लिए 25 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है, उत्तर भारत में ये तापमान अक्टूबर और फरवरी मार्च के महीनों में आसानी से मिल जाता है.
खेती की तैयारी कैसे करें
गन्ना बहुवर्षीय फसल है, इसके लिए खेत की गहरी जुताई करें, इसके बाद गोबर या कंपोस्ट की खाद मिलाकर खेत को रोटावेटर और पाटा चलाकर खेत तैयार करें, गन्ने की कंद लगाने के लिए मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए इससे गन्ने की जड़े गहराई तक जाती है, और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे, पौध लगाने के लिए गन्ने की निरोगी होना चाहिए, यदि गन्ने का केवल ऊपरी भाग बीज के काम ना आए तो अधिक अंकुरित होता है, गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को काट देना है, बोने से पहले कंद को उपचारित कर लेना चाहिए.
गन्ना की उन्नत किस्में
भारत में गन्ने की कई प्रमुख किस्में है, उन्नत किस्मों के लिए गन्ना अनुसंधान केंद्र लखनऊ से संपर्क कर सकते हैं, इसके अलावा आपको गन्ने के उन्नत किस्में जिले के कृषि विज्ञान केंद्र और किसी भी विश्वविद्यालय में मिल जाते हैं
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
गन्ने की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है, फसल जमाव, कल्ले निकलने और बढवार के समय भूमि में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है, खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांधना चाहिए, फसल के पकने की अवधि लंबी होने के कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है, अत: सामान्य तौर पर बुआई से पूर्व खेत में 10-15 टन गोबर की खाद मिला देना चाहिए, इसके अलावा 250-300 किलोग्राम नाइट्रोजन 80-90 किलोग्राम फास्फोरस और 50-60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए, स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के ही समय प्रयोग करें
नाइट्रोजन की मात्रा को तीन सामान भागों में बांटे क्रमश: 30 दिन, 90 दिन और 120 दिन में इसे प्रयोग करें.
नाइट्रोजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नाइट्रोजन की उपयोगिता बढ़ जाती है, साथ ही अन्य प्रकार के जीव जंतु जैसे दीमार्को से भी सुरक्षा मिलती है.
गन्ने की फसल में रोग और कीट प्रबंधन
गन्ने के मुख्य रोगों में लाल सड़न, कुडुआ रोग और विल्ट है, इसका प्रबंधन प्रभावी ढंग से करें, लाल सड़न रोगाणुओं के प्रभाव को नियंत्रण करने के लिए गन्ने के सैट्स को थायोफेनेट मिथाइल संयोजक को 0.2% सान्द्रता से उपचारित कर सकते हैं, कंडूआ रोग से बचने के लिए गन्ने केसैट्स को कवकनाशी की 0.1% सान्द्रता में डुबोकर भाप से 50 डिग्री सेंटीग्रेड पर 2 घंटे तक उपचारित करते रहे.
यदि आप 1 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं तो उसमें 350 क्विंटल उत्पाद होता है, जिसमें लगभग 30,000 तक की लागत लग जाती है, और इसमें 100000 तक की आमदनी हो जाती है, इसमें किसानों का लगभग 70000 का मुनाफा हो जाता है, आपको बता दें कि अन्य फसलों की तुलना में गन्ने की खेती में कई गुना ज्यादा कमाई होती है.
पहले पारंपरिक तरीके से खेती की जाती थी लेकिन अब नई नई तकनीकों से की जाती है, जिससे किसानों को गन्ने की खेती में कम लागत और ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता है.