बाबा बैद्यनाथ एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इस स्थान को भगवान शिव का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. आपक बता दें यह एक ज्योतिर्लिंग है जो एक शक्तिपीठ भी है. शिव का एक नाम ‘बैद्यनाथ’ भी है, इसलिए लोग इसे ‘बैद्यनाथ धाम’ कहते हैं.
बाबा बैद्यनाथ धाम का महत्व
मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. सावन में इस स्थान का विशेष महत्व होता है. यह लिंग रावण की भक्ति का प्रतीक है. इस स्थान को लोग ” बाबा बैजनाथ धाम” के नाम से भी जानते हैं. श्रावणी मेला यहां पूरे एक महीने तक लगता है. सावन के महीने में दूर-दूर से लोग कांवड़ लेकर बाबा के धाम पहुंचते हैं और गंगाजल चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
बाबा बैद्यनाथ धाम की कहानी
भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी ही अनोखी है. ऐसा कहा जाता है कि दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तपस्या कर रहा था. वह एक-एक करके उनके सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने ही वाला था तो भोलेनाथ प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी अनोखी है. पौराणिक कथा के मुताबिक़ दशानन रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तपस्या कर रहा था. वह एक-एक सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण अपना दसवां सिर काटने ही वाला था तो भोलेनाथ प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. तब रावण ने ही ‘कामना लिंग’ को लंका ले जाने का वरदान मांगा. सोने की लंका के अलावा रावण के पास तीनों लोकों पर शासन करने की शक्ति थी, साथ ही उसने कई देवताओं, यक्षों और गंधर्वों को लंका में कैद कर लिया था. इस कारण रावण ने इच्छा प्रकट की कि भगवान शिव कैलाश छोड़कर लंका में निवास करें. महादेव ने उनकी इच्छा पूरी की, परन्तु एक शर्त रखी. उन्होने कहा कि रास्ते में कहीं भी शिवलिंग रख दोगे तो मैं वहीं रहूंगा और नहीं उठूंगा. रावण ने शर्त मान ली.
इधर भगवान शिव के कैलाश छोड़ने का समाचार सुनकर सभी देवता चिंतित हो गए. इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए. तब श्रीहरि ने लीला रचाई. भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के माध्यम से रावण के पेट में प्रवेश करने के लिए कहा, इसलिए जब रावण शिवलिंग लेकर श्रीलंका की ओर आया तो उसे देवघर के पास एक छोटा सा संदेह हुआ. ऐसे में रावण एक ग्वाल को शिवलिंग देकर छोटा सा संदेह करने के लिए उसके पास गया। कहा जाता है कि भगवान विष्णु बैजू नामक ग्वाले के रूप में थे. इस कारण भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से प्रसिद्ध है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण को कई घंटों तक छोटी-छोटी शंकाएं होती रहीं, जो आज भी देवघर में एक तालाब के रूप में मौजूद है. यहां बैजू ने शिवलिंग को धरती पर रखकर स्थापित कर दिया