त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है. हर तरफ त्योहारों की धूम मची हुई है. त्योहार लोगों के जीवन में पल भर की ही सही, लेकिन अपने साथ खुशियां लेकर आते है. आज हम आपको भाई दूर त्योहार के बारे में बताएंगे. दरहसल,भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. रक्षाबंधन की तरह यह त्योहार भी भाई-बहन के लिए बहुत खास होता है. लोग इस त्योहार को भाई दूज, भाई टीका, यम द्वितीया भी कहते है. भाई दूज के दिन भाई को तिलक लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को टीका लगाती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं. यह प्रथा सदियों साल पुरानी है. ऐसा कहते हैं यदि भाई दूज त्योहार के दिन विधि-विधान से पूजा की जाए तो जीवन भर यमराज का डर नहीं रहता और भाई-बहनों की अकाल मृत्यु नहीं होती. भाई दूज के दिन तिलक लगाने से भाई को लंबी आयु के साथ सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस साल भाई दूज का त्योहार कब मनाया जाएगा और इसे मनाने के क्या नियम हैं.
भाई दूज पर को तिथि और मूहर्त
इस बार 26 अक्टूबर 2022 भाई दूज की पूजा का शुभ मुहूर्त है, इसलिए इस दिन बहनें अपने भाइयों का टीकाकरण करें तो शुभ रहेगा.
वहीं, पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 26 अक्टूबर 2022 को पड़ रही है.
द्वितीया तिथि प्रारंभ- 26 अक्टूबर दोपहर 02.42 बजे से प्रारंभ होगी
दूसरी तिथि समाप्त- 27 अक्टूबर दोपहर 12:45 बजे समाप्त होगी.
उदय तिथि के अनुसार भाई दूज 27 अक्टूबर 2022 को भी मनाया जा सकता है.
भाई दूज टीका का शुभ पूजा मुहूर्त – 26 अक्टूबर, दोपहर 01:18 बजे से 03.33 बजे तक
भाई दूज त्योहार की पूजा विधि
हिंदू धर्म में भाई दूज का त्योहार बेहद खास माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह त्योहार भाई-बहनों के बीच समर्पण का प्रतीक है. भाई दूज के दिन सबसे पहले बहनों को भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए. फिर भाई को टीका करने के लिए आपको पहले एक थाली तैयार कर लेनी चाहिए. उस थाली में रोली, अक्षत और गोला रखना चाहिए. फिर भाई का तिलक करना चाहिए और भाई को गोला देना चाहिए. उसके बाद भाई को उसके मनपसंद का भोजन का भोग लगाना चाहिए. फिर भाइयों को भी अपनी बहन से आशीर्वाद लेना चाहिए और उसे उपहार के रूप में कुछ उपहार देना चाहिए. वहीं, दूसरी तरफ ये मान्यता भी है कि यदि भाई-बहन यमुना नदी के किनारे बैठकर भोजन करते हैं, तो जीवन में सुख- समृद्धि आती है.
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भाई दूज की पौराणिक कथा
भगवान सूर्यदेव की पत्नी छाया थी, उनके गर्भ से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब चिलचिलाती धूप को सहन न कर पाने के कारण परछाई उत्तरी ध्रुव में रहने लगी. छाया के साथ यमराज और यमुना भी रहने लगे. कुछ समय बाद यमराज ने अपनी नगरी यमपुरी को बसाया और यमुना गोलोक में रहने लगी, लेकिन दोनों के बीच प्यार हमेशा बना रहा. यमुना हमेशा अपने भाई यमराज को अपने पसंदीदा दोस्तों के साथ भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित करती थी, लेकिन यमराज उनसे बचते रहे. कार्तिक शुक्ल द्वितीया का दिन आया और यमुना ने फिर यमराज को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया और इस बार अपने भाई से वचन लिया. यमराज ने सोचा कि मैं लोगों के प्राणों को लेने वाला हूं , कोई मुझे अपने घर क्यों बुलाना चाहेगा. अगर मेरी बहन ने इतने प्यार से मुझे बुलाया है तो मैं अपने धर्म का पालन करूंगा. उसी समय यमराज ने अपनी बहन के घर जाते हुए सभी प्राणियों को नर्क से मुक्त कर दिया. यमराज को अपने घर में देख यमुना खुशी से उछल पड़ी. उन्होंने अपने भाई का स्वागत किया और उनके सामने कई व्यंजन परोसे. यमुना के इस आतिथ्य से प्रसन्न होकर यमराज ने अपनी बहन से वरदान मांगने को कहा. यमुना ने यमराज को हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को घर आने को कहा. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर उनके जैसी कोई बहन इस दिन अपने भाई पर तिलक करती है तो उसे यमराज यानी मौत से नहीं डरना चाहिए. यमराज मुस्कुराए और अस्तु कहा और यमुना को वरदान देकर यमलोक लौट गए. तब से लेकर आज तक हिंदू धर्म में भाई दूज की परंपरा चली आ रही है.
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