भारत जोड़ी यात्रा के बीच कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी कर दी गई है. परंतु अधिसूचना के जारी होने से पहले सबके मन में ये सवाल उठता था क्या सही मायनों में कांग्रेस में लोकतंत्र है? क्या कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार का ही कोई सदस्य होगा? पर अब लोगों के सवालों के जवाबों को ना दे पाने की वजह से कांग्रेस में चुनाव करने का फैसला लिया गया था. इसके साथ ही कांग्रेस कार्यालय में भी हलचल तेज हो गई है. यह आंदोलन कांग्रेस के लिए स्वाभाविक है, जो अपने राजनीतिक अस्तित्व की जमीन तलाश रही है. वंशवाद की राजनीति को लेकर बीजेपी लगातार कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधती रही है, लेकिन राहुल के अध्यक्ष न बनने के फैसले से न सिर्फ ये हमले रुकेंगे, बल्कि ये भी साफ हो गया है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का अध्यक्ष 24 साल बाद गैर-गांधी होगा.
अब नहीं चलेगी तानाशाही
जब कांग्रेस नेताओं का क्रोध इस बात को लेकर हद पार कर गया कि कांग्रेस अब परिवार की पार्टी हो गई है, यहां न्याय की कोई जगह नहीं है. यहां तक कि राहुल पर आरोप लगते रहे हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने पुराने कांग्रेसियों को दरकिनार करना शुरू कर दिया. कांग्रेस में जी-23 समूह हो या पुराने कांग्रेसी, एक वर्ग हमेशा राहुल गांधी के नेतृत्व और उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाता रहा है. इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए और पार्टी में सभी का विश्वास जीतने के लिए राष्ट्रपति पद के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती बन गई है. वहीं गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी पर अपरिपक्व और बचकाना व्यवहार करने का भी आरोप लगाया था. कांग्रेस छोड़ चुके नेता चाहे कपिल सिब्बल हों या जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, बलराम जाखड़, लगभग सभी नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं. वो लोग कहते हैं कि इसके साथ ही उन्होंने अपनी टीम में गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को प्राथमिकता दी.
सम्बंधित : – जानिए क्या है कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा का उद्देश्य
नेताओं का भड़का गुस्सा
दरहसल, कांग्रेस के आंतरिक चुनाव को लेकर पार्टी के भीतर ही सवाल उठ रहे थे. कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर पिछले दो दशकों से गांधी परिवार का कब्जा है. कभी भी किसी गैर-गांधी परिवार के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनने का मौका ही नही दिया गया. ये बात सभी जानते ही है सन 1998 में सीताराम केसरी के बाद से ही सोनिया गांधी सन 2017 तक अध्यक्ष बनी रहीं. चुनाव होने के मुद्दे को तब और हवा मिली जब कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ दी. उन्होंने अपने त्याग पत्र में नाराजगी जगाते हुए कहा कि कांग्रेस नेतृत्व आंतरिक चुनाव के नाम पर धोखा दे रहा है.
सम्बंधित : – पीएम नरेंद्र मोदी की वो खूबियां जो बनाती है उन्हें सर्वाधिक लोकप्रिय नेता
कांग्रेस पार्टी के समक्ष बड़ी चुनौती
विपक्ष पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस पर पारिवारिक पार्टी होने का आरोप भी लगता रहा है. बीजेपी के लोग साफ कहते हैं कि कांग्रेस मां-बेटे की पार्टी बन गई है. भाजपा ने रविवार को कांग्रेस के इस दावे का भी मजाक उड़ाया कि वह एकमात्र पार्टी है जिसमें आंतरिक चुनाव होते हैं. जब चुनाव की तारीख तय हो गई, तो सत्तारूढ़ दल ने इस बात का ‘मजाक’ बनाते हुए पूछा कि क्या वह अक्टूबर में ‘अप्रैल फूल दिवस’ मना रहे है. वहीं भाजपा ने कहा कि राष्ट्रपति का चुनाव मुगल सल्तनत शैली से ज्यादा कुछ नहीं है या ताज पहनाया जाता है, जिसे चुनावी रूप दिया गया है. ऐसे में अगर कांग्रेस को 2024 में बीजेपी से मुकाबला करना है तो अब से कांग्रेस के लिए कहानी तय करनी होगी. इसके अलावा विपक्षी दल को यह संदेश भी देना होगा कि कांग्रेस एक परिवार नहीं बल्कि एक ऐसी पार्टी है जो सभी कार्यकर्ताओं का सम्मान करती है. इसके लिए जरूरी है कि इस बार पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर हो. इसके अलावा यह भी बहुत जरूरी है कि जो नया अध्यक्ष चुना जाता है वह ‘कठपुतली अध्यक्ष’ बना रहे. यह आशंका पार्टी के भीतर से भी व्यक्त की गई है.