नए संसद भवन के लोकार्पण समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेंगोल दिया जाएगा. बता दे, यहां राजदंड है जो सत्ता के सत्ताअधिकारी को दिया जाता है. भारत की आजादी से पहले मध्य रात्रि को इसी सेंगोल को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सत्ता हस्तांतरण के तौर पर इसे स्वीकार किया था. गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को सेंगोल के बारे में विस्तार से बताते हुए यह कहा है कि भारत के इतिहास में इसका बहुत ही महत्व है. उन्होंने सेंगोल के आजादी से जुड़े इतिहास और सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बनने के बारे में भी जानकारी प्रदान की है.
सेंगोल पर विराजमान नंदी किसका है प्रतीक
सेंगोल का आशय राजदंड से है, 14 अगस्त 1947 के मध्य रात्रि में पं. जवाहर लाल नेहरू को जो सेंगोल सौंपा गया था उस पर ऊपर भगवान शिव के सेवक नंदी की प्रतिमा बनी हुई थी. जो कि एक गोले आकार के वस्तु पर विराजमान थी. सेंगोल में इस गोले का अर्थ संसार को माना गया है. इसके ऊपर विराजमान शिव के वाहन नंदी की सुंदर नक्काशी है, जिन्हें सर्वव्यापी, धर्म व न्याय के रक्षक के वाहन के रूप विराजमान किया गया है. साथ ही इसमें भारत के तिरंगे का भी चित्र बनाया गया है.
चोल वंश में भी होता था इस राजदंड का प्रयोग
सेंगोल राजदंड का उपयोग चोल वंश के राजा किया करते थे, उस समय एक राजा दूसरे चोल राजा को सत्ता हस्तांतरण इसी सेंगोल के माध्यम से करता था. जो बेहद ठोस, सुंदर नक्काशी वाला सुनहरा राजदंड होता था. और मुख्य बात यह है कि प्राचीन समय के भी राजदंड में भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा स्थापित की जाती थी, इतिहासकारों के मुताबिक चोल भगवान शिव को अपना इष्ट देव मानते थे, इसीलिए राजदंड में उनके परम भक्त नंदी की आकृति बनवाते थे. सेंगोल के अति सुंदर कृति है, इसकी लंबाई पांच फीट है जो शिल्प कौशल से संपन्न है.
सेंगोल राजदंड के निर्माता
सेंगोल राजदंड को उस समय के तमिलनाडु के प्रसिद्ध स्वर्णकार वुम्मिडी एथिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर ने 10 शिल्पकारों के दल के साथ मिलकर बनाया था. इस राजदंड को चांदी से तैयार किया गया है, और इसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई थी. इस काम में 10 से 15 दिन लगे थे. सेंगोल बनाने वाले वुम्मिडी भाइयों के मुताबिक यह बहुत गर्व की बात थी.