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मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के घरेलू उपाय

बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य सामग्री की आवश्यकता भी बढ़ रही है। जिसकी पूर्ति करने के लिए कम समय में अधिक उत्पादन किया जा रहा है। जिससे मृदा को काफी नुकसान हो रहा है। मृदा खेती करने का मुख्य आधार है। जिससे कम समय में अधिक लाभ पाने के लिए रासायनिक तरीकों का उपयोग किया जा रहा है। लगातार रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करने से मृदा की उत्पादन क्षमता धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है। मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हम कुछ घरेलू उपाय भी कर सकते हैं।

मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के उपाय –

  1. दलहनी फसलों का उपयोग।
  2. जैविक खाद का उपयोग।
  3. हरी खाद का उपयोग अधिक से अधिक करना।
  4. समय-समय पर मृदा की जांच कराना।

दलहनी फसलों का उपयोग – लगातार अधिक लाभ देने वाली फसलों की खेती करने के कारण मृदा की उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसकी भरपाई करने के लिए दलहनी फसलों की खेती करना मृदा के लिए बहुत लाभकारी माना गया है। क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन उचित मात्रा में पाया जाता है। जो मृदा के लिए लाभदायक माना गया है। दलहनी खेती करके किसान अनेक प्रकार का लाभ उठा भी उठा सकते हैं।

  1. मृदा की उर्वरक शक्ति को बढ़ाता है।
  2. दलहनी फसलों को अधिक पानी की भी जरूरत नहीं होती है।
  3. मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाता है।

जैविक खाद का उपयोग – जैविक खाद का उपयोग करने से ना सिर्फ मृदा की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है। साथ ही जैविक खाद के उपयोग से फसलों की उपज को भी बढ़ा सकते हैं। जैविक खाद को तैयार करने के लिए पशुओं के मल मूत्र व पेड़ पौधों से निकलने वाले पत्तियों को एकत्रित कर बनाया जा सकता है। इससे मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही अणुजीवियों की वृद्धि के लिए अच्छा वातावरण बनाता है। जैविक खाद कई प्रकार से बनाई जा सकती है। रासायनिक खाद की अपेक्षा जैविक खाद से अधिक लाभ होता है। इससे ना सिर्फ फसलों की अच्छी पैदावार होती है। साथ ही मिट्टी की उर्वरता हमेशा बनी रहती है।

हरी खाद का उपयोग अधिक से अधिक करना – हरी खाद का उपयोग करने से मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक दशा में सुधार आता है। इसका उपयोग करने से ना सिर्फ मृदा की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही वातावरण को भी स्वच्छ बनाया जा सकता है। हरी खाद का उपयोग करने से भूमि उपजाऊ बनी रहती है।

समय-समय पर मृदा की जांच कराना – भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हर 3 से 4 साल के अंदर मिट्टी की जांच करवाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अधिक रासायनिक खाद का उपयोग करने वाली भूमि में एक फसल चक्र के बाद मृदा की जांच कराना लाभदायक माना गया है। अगर मिट्टी नुकसानदेह है। तो उसमें जैविक खाद का उपयोग करें। साथ ही दलहनी फसलों की खेती अधिक से अधिक करें।

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  2. जैविक खाद का उपयोग।
  3. हरी खाद का उपयोग अधिक से अधिक करना।
  4. समय-समय पर मृदा की जांच कराना।

दलहनी फसलों का उपयोग - लगातार अधिक लाभ देने वाली फसलों की खेती करने के कारण मृदा की उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसकी भरपाई करने के लिए दलहनी फसलों की खेती करना मृदा के लिए बहुत लाभकारी माना गया है। क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन उचित मात्रा में पाया जाता है। जो मृदा के लिए लाभदायक माना गया है। दलहनी खेती करके किसान अनेक प्रकार का लाभ उठा भी उठा सकते हैं।

  1. मृदा की उर्वरक शक्ति को बढ़ाता है।
  2. दलहनी फसलों को अधिक पानी की भी जरूरत नहीं होती है।
  3. मृदा में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाता है।

जैविक खाद का उपयोग - जैविक खाद का उपयोग करने से ना सिर्फ मृदा की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है। साथ ही जैविक खाद के उपयोग से फसलों की उपज को भी बढ़ा सकते हैं। जैविक खाद को तैयार करने के लिए पशुओं के मल मूत्र व पेड़ पौधों से निकलने वाले पत्तियों को एकत्रित कर बनाया जा सकता है। इससे मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही अणुजीवियों की वृद्धि के लिए अच्छा वातावरण बनाता है। जैविक खाद कई प्रकार से बनाई जा सकती है। रासायनिक खाद की अपेक्षा जैविक खाद से अधिक लाभ होता है। इससे ना सिर्फ फसलों की अच्छी पैदावार होती है। साथ ही मिट्टी की उर्वरता हमेशा बनी रहती है।

हरी खाद का उपयोग अधिक से अधिक करना - हरी खाद का उपयोग करने से मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक दशा में सुधार आता है। इसका उपयोग करने से ना सिर्फ मृदा की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही वातावरण को भी स्वच्छ बनाया जा सकता है। हरी खाद का उपयोग करने से भूमि उपजाऊ बनी रहती है।

समय-समय पर मृदा की जांच कराना - भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हर 3 से 4 साल के अंदर मिट्टी की जांच करवाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अधिक रासायनिक खाद का उपयोग करने वाली भूमि में एक फसल चक्र के बाद मृदा की जांच कराना लाभदायक माना गया है। अगर मिट्टी नुकसानदेह है। तो उसमें जैविक खाद का उपयोग करें। साथ ही दलहनी फसलों की खेती अधिक से अधिक करें।

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